कोल्हान का 250 साल पुराना रहस्यमी शिव मंदिर, गुप्तगंगा से होता है भगवान का अभिषेक, अनोखा है यहां स्थित कुआं

पूर्वी सिहंभूम (झारखंड). झारखंड में रहस्यमयी मंदिर और स्थानों का भंडार है। यहां की धरती कई रहस्य को अपने अंदर समेटी हुई है। राज्य के कोल्हान प्रमंडल की बात करें तो यहां कई ऐसी अनोखी मंदिर देखने को मिलती है जिस पर विश्वास करना भी मुश्किल हो जाता है। कोल्हान के कई जगह ऐसे हैं जहां अभी तक विकास पहुंच भी नहीं पाया है। न तो सरकार का ध्यान वहां जाता है और न ही उन जगहों और वहां के लोगों के बारे में कोई सोचता है। लेकिन इन जगहों में ही कई ऐसे रहस्य छिपे है जो अविश्वसनीय लगते हैं। यहां के पहाड़, जंगलों में ऐसी कई कहानियां छुपी हैं, जिनका संबंध सैकड़ों वर्ष पुराने इतिहास व धर्मग्रंथ से रहा है। इस तरह से पहुंच सकते है इसके दर्शन के लिए...

Sanjay Chaturvedi | Published : Sep 22, 2022 10:34 AM IST / Updated: Sep 22 2022, 10:59 PM IST
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कोल्हान का 250 साल पुराना रहस्यमी शिव मंदिर, गुप्तगंगा से होता है भगवान का अभिषेक, अनोखा है यहां स्थित कुआं

पूर्वी सिंहभूम में बसा है 250 साल पुराना कालेश्वर मंदिर
बता दें कि पूर्वी सिंहभूम के आसनबनी की हाथीबिंदा पंचायत के साधुडेरा गांव में भगवान शंकर की कालेश्वर मंदिर है। यह मंदिर न केवल 250 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है। इसके बनने की कहानी भी काफी रोचक व रहस्यमयी है। इस कालेश्वर मंदिर में जोड़ा शिवलिंग है। एक ही स्थान में दो शिवलिंग यहां खुद से जागृत हुए हैं।

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खुद से जागृत हुआ है शिवलिंग
मंदिर में स्थित जोड़ा शिवलिंग अपने आप में अद्भुत है। दोनों ठीक अगल बगल में स्थापित हैं। एक साथ ऐसा शिवलिंग किसी मंदिर में होने की जानकारी नहीं मिली है। कई स्थानों में दो शिवलिंग होने की बात है, लेकिन एक ही स्थान में महज छह इंच की दूरी पर खुद से जागृत दो शिवलिंग अपने आप में अनोखा है।

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जमशेदपुर से 15 किलोमीटर दूरी पर है मंदिर
बता दें कि जमशेदपुर शहर से यह 15 किलोमीटर दूरी पर है। गोविंदपुर रेलवे फाटक से खैरबनी होते हुए आसनबनी के रास्ते यह मुख्य सड़क से करीब चार किलोमीटर अंदर साधुडेरा गांव है। आसनबनी रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी एक से डेढ़ किलोमीटर पर है। यहां आने के लिए सार्वजनिक वाहन की कोई सुविधा नहीं है। खुद की बाइक, कार या ऑटो से यहां पहुंचा जा सकता है। वर्तमान में इस मंदिर तक पक्की सड़क तो पहुंच गयी, लेकिन आज भी यह क्षेत्र काफी दुर्गम और सुदूर है। 

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जोड़ा शिवलिंग की खोज करीब 250 वर्ष पूर्व हुई थी। उसके करीब 100 साल बाद हावड़ा-मुंबई रेल लाइन (टाटानगर होते हुए) बिछाने का काम शुरू हुआ था। उस लाइन बिछाने के लिए लगे ठेकेदार जब इस क्षेत्र में आये, तो उन्होंने अपने कार्य को सफलता पूर्वक होने के बाद शिव मंदिर बनाने की मन्नत मांगी थी। काम होने के दौरान ही ठेकेदार द्वारा मंदिर बनवाया गया था। 

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राम लखन साधु ने की थी शिवलिंग की खोज
यहां पर मोजूद जोड़ा शिवलिंग पर पाताल गंगा का जल चढ़ता है। ग्रामीण इसे गुप्त गंगा भी कहते हैं। महज तीन फुट गहरे कुएं से अनवरत पानी बहता रहता है, जो किसी आयचर्य से कम नहीं है। कुएं से निकलने वाले पानी से सामने तालाब बन गया है। इस शिवलिंग की खोज राम लखन नाम के एक साधु ने की थी। उसके बाद आसपास के गांव वाले भी पूजा अर्चना करने लगे। गुर्रा नदी के किनारे इस प्राचीन मंदिर में ऐसे तो हर दिन पूजा होती है, लेकिन सावन और शिवरात्रि में विशेष पूजा का आयोजन होता है। 

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खुद से जागृत हुआ है शिवलिंग
मंदिर में स्थित जोड़ा शिवलिंग अपने आप में अद्भुत है। दोनों ठीक अगल बगल में स्थापित हैं। एक साथ ऐसा शिवलिंग किसी मंदिर में होने की जानकारी नहीं मिली है। कई स्थानों में दो शिवलिंग होने की बात है, लेकिन एक ही स्थान में महज छह इंच की दूरी पर खुद से जागृत दो शिवलिंग अपने आप में अनोखा है। जोड़ा शिवलिंग की खोज करीब 250 वर्ष पूर्व हुई थी। उसके करीब 100 साल बाद हावड़ा-मुंबई रेल लाइन (टाटानगर होते हुए) बिछाने का काम शुरू हुआ था। उस लाइन बिछाने के लिए लगे ठेकेदार जब इस क्षेत्र में आये, तो उन्होंने अपने कार्य को सफलता पूर्वक होने के बाद शिव मंदिर बनाने की मन्नत मांगी थी। काम होने के दौरान ही ठेकेदार द्वारा मंदिर बनवाया गया था। 

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प्रचंड गर्मी में भी नहीं सूखता हैं कुंआ
स्थानीय लोग बताते हैं कि इस कुएं को किसी ने नहीं बनाया है बल्कि यह खुद से निकला है। इसलिए इसे गुप्त व पाताल गंगा का नाम दिया गया है। इसी कुएं का जल कालेश्वर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा है। प्रचंड गर्मी में भी इस कुएं में न केवल पानी रहता है बल्कि उसी धार से बाहर निकलता रहता है।
 

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