कोई जीये-मरे सरकार का क्या? इलेक्शन के वक्त 1000 वादें करते हैं नेता, बाद में 'दुनिया जाए भाड़ में'

गढ़वा, झारखंड. ये तस्वीरें देश की स्वास्थ्य सेवाओं (health services) की हकीकत दिखाती हैं, देश की बड़ी आबादी गांवों में रहती है, लेकिन उनकी जिंदगी से जैसे सरकारों को कोई वास्ता नहीं है। तमाम गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं नहीं हैं। सड़क नहीं हैं, नदी-नालों पर पुल-पुलिया नहीं हैं। ऐसे में मरीजों को खाट पर लिटाकर मीलों दूर अस्पताल तक लाना पड़ता है। यह तस्वीर गढ़वा के बंशीधर नगर ब्लॉक स्थित कोईंदी गांव के खरवारा की है। यहां की रहने वालीं बुजुर्ग सोनिया कुंवर को इलाज के लिए उनके परिजन खाट पर लिटाकर अस्पताल तक ले गए। उनके नाती ने बताया कि उनके गांव में जब भी कोई बीमार होता है, तो लोग खाट पर ही लिटाकर अस्पताल तक ले जाते हैं। बरसात में जब नदी में पानी भर जाता है, तब बड़ी परेशानी होती है। एम्बुलेंस गांव से करीब 2 किमी दूर तक ही पहुंच पाती है। आगे पढ़ें इसी खबर के बारे में...
 

Asianet News Hindi | Published : Oct 12, 2020 12:00 PM IST
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कोई जीये-मरे सरकार का क्या? इलेक्शन के वक्त 1000 वादें करते हैं नेता, बाद में 'दुनिया जाए भाड़ में'

इस गांव में झझिवा जंगल से कोलझिंकी गांव तक करीब 6 किलोमीटर लंबी नदी है। बारिश में यह भरी होती है। गांववालों ने बताया कि ये लोग कई बार प्रशासन को नदी पर पुलिया बनवाने की मांग उठा चुके हैं, लेकिन उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा। आगे पढ़ें-जिनके पास खाने को पैसे नहीं, उनसे आप 4000 रुपए मांग रहे... 70 क्या, 700 किमी भी होता, तो ये पैदल घर जाते

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यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के कांकेर में सामने आई थी। 6 सितंबर को कोयलीबेड़ा विकासखंड के गांव गट्टाकाल निवासी 45 वर्षीय अमलूराम उईके पर बैल ने हमला कर दिया था। उसकी दायीं आखं में चोट आई है। उसे तुरंत कोयलीबेड़ा अस्पताल लाया गया। वहां से उसे कांकेर जिला अस्पताल रेफर किया गया। संजीवनी ने उसे कांकेर अस्पताल छोड़ दिया। यहां उसे रायपुर के लिए रेफर किया गया। लेकिन पैसे नहीं होने पर उसने घर लौटना मुनासिब समझा। क्योंकि एम्बुलेंसवाले ने 4000 रुपए मांगे थे। आगे पढ़ें..पिता को खाट पर लिटाकर 5 किमी भागते रहे बेटा

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धनबाद, झारखंड. लिट्टीपाड़ा प्रखंड के जोराडीहा गांव के रहने वाले 50 साल के बीमार टुयलो मुर्मू की जान बचाने उसके बेटे और परिजन उन्हें खटिया पर लिटाकर अस्पताल भागे। शर्मनाक बात यह है कि ब्लॉक मुख्यालय से यह गांव सिर्फ 5 किमी दूर है। परिजनों ने कई बार 108 को कॉल किया। लेकिन एम्बुलेंस नहीं आनी थी, सो नहीं आई। सबसे बड़ी बात राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इसी इलाके से आते हैं। 

आगे पढ़ें 20 साल की दिव्यांग गर्भवती को गठरी की तरह कंधे पर उठाकर कीचड़ में भागे लोग

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बड़वानी, मध्य प्रदेश. यह मामला बड़वानी जिले के जनपद धनोरा से 35 किमी दूर चाचरिया पंचायत के नवाड़ फलिया गांव में देखने को मिला था। 20 साल की गायत्री दिव्यांग है। उसे लेबर पेन होने पर परिजन इस तरह पोटली में बैठाकर अस्पताल पहुंचे। करीब 3 किमी इस तरह उन्हें पैदल जाना पड़ा। 

आगे पढ़िए...बहू को दर्द से तड़पता देखकर सास के निकल पड़े आंसू, फिर 5 लोग गर्भवती को ऐसे लटकाकर अस्पताल की ओर भागे

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रोहतक, हरियाणा. यह दृश्य कनीना कस्बे में देखने को मिला था। यहां के वार्ड-8 में रहने वालीं सुषमा को प्रसव पीड़ा होने पर उनकी सास ने एम्बुलेंस को कॉल किया। सुषमा के पति कृष्ण कुमार ने बताया था कि जब 102 पर एम्बुलेंस के लिए कॉल नहीं उठाया गया, तो उनकी मां लक्ष्मी देवी पैदल ही सुषमा को लेकर अस्पताल के लिए निकल पड़ीं। 

आगे पढ़ें...बर्तन में बैठकर गर्भवती ने पार की उफनती नदी..फिर दर्द से कराहते हुए हॉस्पिटल तक पहुंची, लेकिन मिली बुरी खबर

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यह मामला छत्तीसगढ़ के बीजापुर में सामने आया था। बीजापुर जिले के मिनकापल्ली निवासी हरीश यालम की पत्नी लक्ष्मी को प्रसव पीड़ा होने पर 4 लोग बर्तन में बैठाकर चिंतावागु नदी पार कराकर पहले गोरला लाए थे। वहां से भोपालपट्टनम हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। लेकिन समय पर उपचार नहीं मिलने पर बच्चे ने गर्भ में ही दम तोड़ दिया।

आगे पढ़ें 28 किमी पैदल चली गर्भवती और फिर नवजात को लेकर इसी तरह लौटी...

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गढ़चिरौली, महाराष्ट्र. यह मामला भामरागढ़ तहसील में पिछले दिनों सामने आया था। इस महिला का नाम है रोशनी। इसके गांव में कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। जब इसे प्रसव पीड़ा हुई, तो 6 जुलाई को यह एक आशाकर्मी के साथ 28 किमी दूर लाहिरी हॉस्पिटल पहुंची। वहां से उसे हेमलकसा स्थित लोक बिरादरी अस्पताल पहुंचा गया। यहां उसने एक बच्ची को जन्म दिया। यहां से भी यह महिला अपनी बच्ची को गोद में लेकर पैदल ही गांव लौटी।

आगे पढ़िए ऐसी ही कुछ अन्य घटनाएं...

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कोंडागांव, छत्तीसगढ़. बल्लियों के सहारे बनाई गई पालकी पर लटकाकर इस गर्भवती को किमी दूर खड़ी एम्बुलेंस तक लाया गया। क्योंकि गांव तक रास्ता इतना ऊबड़-खाबड़ था कि एम्बुलेंस वहां तक नहीं पहुंच सकती थी। यह अच्छी बात रही कि एम्बुलेंस का ड्राइवर और नर्स अच्छे लोग निकले और उन्होंने गर्भवती को लाने के लिए यह रास्ता निकाला। मामला कोंडागांव माकड़ी विकासखंड के मोहन बेडा गांव का है।

आगे पढ़िए..ऐसी ही कुछ अन्य घटनाएं..जो सरकारी खामियों या महिलाओं की परेशानी को दिखाती हैं..

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यह मामला छत्तीसगढ़ के कांकेर में सामने आया था। 12 साल की यह लड़की मानकी कांकेर जिले की ग्राम पंचायत कंदाड़ी के आश्रित गांव आलदंड की रहने वाली है। उसके गांव में कोई स्वास्थ्य सेवा नहीं है। लिहाजा, मजबूरी में मानकी को परिजन उसे कंधों पर टांगकर इलाज के लिए लेकर गए। करीब 5 किमी उसे ऐसे ही लटकाकर नदी तक ले गए। वहां, उन्हें घंटेभर तक नाव का इंतजार करना पड़ा। नदी पार करके 6 किमी दूर छोटेबेठिया उपस्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। उनके गांव से उपस्वास्थ्य केंद्र की दूरी करीब 14 किमी है। इसके बाद उसे इलाज मिल सका।

आगे पढ़िए...खटिया को 'एम्बुलेंस' बनाया

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यह शर्मनाक तस्वीर झारखंड के पश्चिम सिंहभूम से सामने आई थी। यह मामला बिशुनपुर प्रखंड के गढ़ा हाडुप गांव का है। यहां रहने वाले बलदेव ब्रिजिया के पत्नी ललिता को प्रसव पीड़ा हुई। उस हॉस्पिटल तक ले जाने का जब कोई दूसरा साधन नहीं दिखा, तो खटिया को लोगों ने 'एम्बुलेंस' बना लिया। 

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