जब BJP की जमी जमाई सरकार को उखाड़ कर CM बन गया था निर्दलीय विधायक, फिर 3 साल जेल में रहना पड़ा
रांची। झारखंड की राजनीति में 2006 में ऐसा राजनीतिक उलटफेर हुआ, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की गई होगी। ऐसी स्थितियां बनीं कि लगभग एक गुमनाम निर्दलीय विधायक अचानक से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गया। यह करिश्मा कर दिखाने वाले शख्स का नाम मधु कोड़ा है। झारखंड में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं, मगर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा इस बार चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। उन्होंने हाई कोर्ट से लेकर देश की शीर्ष अदालत तक चुनाव लड़ने की गुहार लगाई, मगर अदालत से कोई राहत नहीं मिली। झारखंड के वजूद में आने क बाद यह पहली बार होगा कि जब मधु कोड़ा सियासी संग्राम में नजर नहीं आएंगे। खदान में मजदूरी करने से लेकर झारखंड का मुख्यमंत्री बनने तक का सफर बेहद रोमांचक है। पिछले विधानसभा चुनाव में कोड़ा चाईबासा की मंझगांव विधानसभा सीट से चुनाव हार गए थे। फिलहाल, उनकी पत्नी गीता कोड़ा चाईबासा लोकसभा सीट से कांग्रेस की सांसद हैं, जिसके चलते वो भी इस बार चुनावी रण में नहीं होंगी।
झारखंड के पश्चिम सिंहभूम के जगन्नाथपुर के पाताहातू गांव में मधु कोड़ा का जन्म 6 जनवरी, 1971 को हुआ था। मधु कोड़ा का शुरुआती जीवन संघर्षों से भरा रहा। ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले मधु कोड़ा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में सक्रिय रहे तो बीजेपी के टिकट पर पहली बार विधानसभा पहुंचे। कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के सहयोग से वह झारखंड के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने थे जो निर्दलीय जीतकर आए थे। निर्दलीय विधायक होने के बावजूद मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाने वाले कोड़ा देश के तीसरे मुख्यमंत्री हैं। झारखंड के पांचवें मुख्यमंत्री के रूप में मधु कोड़ा ने 18 सितंबर 2006 को शपथ ली थी और 27 अगस्त 2008 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे। कोड़ा ने मुख्यमंत्री के रूप में 23 महीने तक का कार्यकाल पूरा किया। देश में कोड़ा से पहले कोई भी निर्दलीय विधायक इतना लंबे समय तक सीएम पद पर नहीं रहा है। मधु कोड़ा का ये रिकॉर्ड ‘लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड’ में दर्ज है।
मधु कोड़ा ने ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन के साथ छात्र राजनीति से शुरुआत की थी। बाद में कोड़ा आरएसएस से जुड़ गये। संघ कार्यकर्ता के रूप में भी लगातार काम करते रहे। इससे पहले वह ठेका श्रमिक हुआ करते थे। फिर मजदूर यूनियन के नेता बने। आरएसएस में काम करने के दौरान कोड़ा की पहचान झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी से हुई। यहीं से कोड़ा को राजनीतिक पहचान मिली और फिर उन्होंने फिर कभी पलटकर नहीं देखा। मरांडी ने ही साल 2000 में पहली बार कोड़ा को जगन्नाथपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव के मैदान में उतारा। कोड़ा जीते और विधायक बने। मरांडी के नेतृत्व में सरकार में मधु कोड़ा को पंचायती राज मंत्री भी बनाया गया।
2003 में अर्जुन मुंडा सरकार में भी कोड़ा मंत्री रहे। झारखंड के 2005 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मधु कोड़ा का टिकट काट दिया, जिसके बाद उन्होंने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव जीता और फिर विधायक बने। 2005 के चुनाव नतीजे आए तो किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, इसके बाद अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बनने वाली बीजेपी सरकार को मधु कोड़ा ने समर्थन दिया और खनन मंत्री बने। हालांकि जल्द ही उनका अर्जुन मुंडा के साथ रिश्ता बिगड़ गया।
कांग्रेस और जेएमएम ने मौके को समझते हुए मधु कोड़ा को अपने खेमे में मिला लिया। मधु कोड़ा ने तीन अन्य निर्दलीय विधायकों को अपने भरोसे में लिया और बीजेपी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। अर्जुन मंडा के नेतृत्व में बीजेपी सरकार गिर गई। मधु कोड़ा ने साल 2006 में सरकार बनाने का दावा पेश किया। कोड़ा सरकार में जेएमएस, आरजेडी, यूनाइटेड गोमांतक डेमोक्रेटिक पार्टी, एनसीपी, फारवर्ड ब्लॉक और तीन निर्दलीय विधायक शामिल हुए। जबकि, कांग्रेस ने बाहर से समर्थन किया था। मधु कोड़ा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी खनन विभाग, ऊर्जा सहित अन्य महत्वपूर्ण विभाग अपने पास ही रखा था।
मधु कोड़ा के मुख्यमंत्री रहने के दौरान विनोद सिन्हा नामक व्यक्ति चर्चा में आया था। उस समय आयकर विभाग ने कोड़ा, विनोद व उससे जुड़े देशभर के 167 स्थानों पर छापेमारी की और कोड़ा के कार्यकाल में कोयला, आयरन और खदान आवंटन और ऊर्जा विभाग में कार्य आवंटन में भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सामने आया था। जांच एजेंसियां सक्रिय हुईं और कोड़ा व अन्य के खिलाफ मामला दर्ज हुआ। कांग्रेस को मधु कोड़ा सरकार से समर्थन वापस लेना पड़ा। जिसके बाद मधु कोड़ा को सीएम पद से हटाकर जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन ने सत्ता संभाली और मुख्यमंत्री बने।
मधु कोड़ा के खिलाफ आयकर व प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का शिकंजा कसता गया। इसका नतीजा रहा कि नवंबर 2009 को प्रवर्तन निदेशालय ने कोड़ा को गिरफ्तार कर लिया। वह तीन साल से ज्यादा समय तक जेल में भी रहे। हालांकि मधु कोड़ा ने 2009 में झारखंड की चाईबासा सीट से लड़े और जीतकर विधायक बने। चुनाव आयोग को शिकायतें मिली थीं कि कोड़ा ने चुनाव खर्च का सही ब्योरा नहीं दिया। सितंबर 2017 में चुनाव आयोग ने तीन साल के लिए मधु कोड़ा को चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया। इसी का नतीजा है कि मधु कोड़ा इस बार चुनाव मैदान से बाहर हैं। जबकि, वो जगन्नाथपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे।