बड़ी दुखद है इस खिलाड़ी की कहानी, पूरा घर गोल्ड मेडल से भरा..फिर भी पेट भरने को करनी पड़ रही मजदूरी

Published : Jul 23, 2020, 03:57 PM IST

जमशेदपुर (झारखंड). कोरोना की वजह से लागू किए लॉकडाउन का असर समाज के हर वर्ग पर पड़ा है। इस दौरान देश से कई मार्मिक की कहानियां सामने आई हैं। ऐसी ही एक बेबसी की कहानी एक झाखंड से आई है, जहां जहां देश के लिए सैंकड़ों गोल्ड मेडल जीतने वाला खिलाड़ी आज दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज है। आलम यह है कि उसको अपने पेट भरने क लिए 300 रुपए रोज दिहाड़ी करना पड़ रही है।  

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बड़ी दुखद है इस खिलाड़ी की कहानी, पूरा घर गोल्ड मेडल से भरा..फिर भी पेट भरने को करनी पड़ रही मजदूरी


दौड़ का बेताज बादशाह पेट पालने के लिए मजबूर
दरअसल, हम जिस खलाड़ी की बात कर रहे हैं, वो लंबी दौड़ का बेताज बादशाह जमशेदपुर जिले का अर्जुन टुडू है। जिसका घर गोल्ड मेडलों से भरा पड़ा हुआ है, लेकिन उसने इस समय रेस छोड़कर हाथों में फावड़ा पकड़ रखा है। जिससे मजदूरी करके अपना पेट पाल रहा है।
 

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300 रुपए के लिए बहा रहा पसीना
बता दें कि अर्जुन टुडू  ने 10 हजार मीटर की ट्रैक और मैराथन में कई मेडल जीते हैं। उसके घर में अब इतनी भी जगह नहीं बची है कि वह अपनी जीती हुई और ट्रॉफी कहां रखे। उसकी मदद करने के लिए ना तो खेल विभाग आया और नहीं सरकार ने कोई सहायता की। जिसकी बदौलत उसको 300 रुपए के लिए पसीना बहाना पड़ रहा है।
 

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कभी तालियों की गड़गड़ाहट से होता था स्वागत
वह पहले जब मेडल जीतकर अपने घर आता था तो उसके गांव वाले तालियों की गड़गड़ाहट से उसका स्वागत करते थे। लेकिन आज वही खिलाड़ी आज इतना लाचार हो गया है कि उसके भूखे मरने की नौबत आ गई है।
 

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पत्नी ने बयां किया एक खिलाड़ी का दर्द
खिलाड़ी का आज पूरा परिवार इस लॉकडाउन की वजह से आंसू बहा रहा है। पत्नी का कहना है कि अगर राज्य सरकार मेरे पति को कोई नौकरी दे देती तो एक खिलाड़ी को अपना आत्म सम्मान नहीं खोना पड़ता।

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प्राइज मनी से चलता था परिवार का खर्चा
रेसर अर्जुन ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से कहीं कोई मैराथन नहीं रही है। अब मैं कहां से पुरस्कार जीतूंगा और फिर कैसे परिवार चलेगा। मैं पूरे देश में होने वाली दौड़ में हिस्सा लेने जाता था। वहां जो प्राइज मनी मिलती थी उससे मेरा घर चलता था। 

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