UPSC जैसा सवाल था, आपके घर से कोई जगह 2 किमी दूर हो, लेकिन बीच में नदी पड़े..तो क्या करेंगे?

रांची, झारंखड. भारत में देसी जुगाड़ (Desi Jugaad) से गजब चीजें बनती रहती हैं। कहते हैं कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। ऐसी तमाम चीजें इसी के बाद सामने आईं। यह तस्वीर भी इसी का उदाहरण है। यह कोई खेलने का झूला नहीं है। यह मजबूरी से जन्मा बांस का का पुल है। इस देसी जुगाड़ ने एक-2 नहीं, दर्जनों गांवों के सैकड़ों लोगों की परेशानी दूर कर दी। यह तस्वीर कुछ समय पहले मीडिया की सुर्खियों में आई थी। इसके जरिये हम आपको यही बताना चाहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह होती है। यह मामला रांची से करीब 125 दूर लातेहार जिले के हेरहंज का है। यहां के दर्जनों गांवों के लोग बारिश और उसके कुछ समय बाद तक कटांग नदी के उफनने से घरों में कैद होकर रह जाते थे। जब सरकार से उनकी उम्मीदें टूट गईं, तो उन्होंने जिद पकड़ी और देसी जुगाड़ से बांस का यह पुल बना दिया। यह झूलता पुल बांस-तार-रस्सी और बल्लियों की जोड़तोड़ से बनाया गया है। आगे पढ़िए इसी पुल की कहानी...

Asianet News Hindi | Published : Nov 2, 2020 8:35 AM IST
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UPSC जैसा सवाल था, आपके घर से कोई जगह 2 किमी दूर हो, लेकिन बीच में नदी पड़े..तो क्या करेंगे?

इस पुल के निर्माण में लगने वाली चीजों को खरीदने के लिए गांववालों ने चंदा इकट्ठा किया। फिर नदी के दोनों छोरों पर लगे पेड़ों से तार बांधे। फिर उन पर बांस का पुल बिछा दिया। बता दें कि इसे बनाने में करीब एक महीने लगा। इस पुल के बनने के बाद 8000 की आबादी वाले कटांग और आसपास के गांवों के लोगों को फायदा हुआ है। पहले उन्हें हेरगंज जाने के लिए 25 किमी का चक्कर काटना पड़ता था, जो महज 2 किमी दूर है। कह सकते हैं कि गांववालों के लिए यह समस्या यूपीएससी में पूछे जाने वाले सवालों से भी पेंचीदा थी। आगे पढ़ें-ऐसी जुगाड़ गाड़ी कभी देखी है, बच्चा है...लेकिन कर लेती है कम खर्च में बड़े ट्रैक्टरों के काम

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पश्चिम सिंहभूम, झारखंड. हर व्यक्ति के पास दिमाग होता है, लेकिन उसका सदुपयोग कम लोग ही कर पाते हैं। 10वीं पास इस युवा किसान के लिए खेती-किसानी करना महंगा सौदा साबित हो रहा था। एक बार ट्रैक्टर को किराये पर बुलाकर खेती-किसानी करने पर उसे 300 से 400 रुपए खर्च करने पड़ रहे थे। एक दिन इसने दिमाग दौड़ाया और देसी जुगाड़ (desi jugaad ) से इस मिनी ट्रैक्टर (mini tractor) का निर्माण कर दिया। इससे लागत सीधे 5 गुना कम यानी 70-80 रुपए पर आ गई। कबाड़ की जुगाड़ से हाथ के सहारे चलने वाले इस मिनी ट्रैक्टर का निर्माण करने वाले देव मंजन बैठा के खेत पश्चिम सिंहभूम जिले के मनोहरपुर पोटका में हैं। देव मंजन ने इस मिन ट्रैक्टर का निर्माण पुरानी मोटरसाइकिल, पानी के पंप और स्कूटर के पार्ट्स को जोड़कर किया है। वे पिछले 9 सालों से इस मिनी ट्रैक्टर के जरिये खेती-किसानी कर रहे हैं। इस मिनी ट्रैक्टर के निर्माण पर मुश्किल से 5000 रुपये खर्च हुए हैं। आगे पढ़ें-बिजली के बिल ने मारा जो करंट, टीन-टप्पर की जुगाड़ से पैदा कर दी बिजली...
 

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रांची, झारखंड. इसे कहते हैं  दिमाग की बत्ती जल जाना!  ऐसा ही कुछ रामगढ़ के 27 वर्षीय केदार प्रसाद महतो के साथ हुआ। कबाड़ की जुगाड़ (Desi Jugaad) से नई-नई चीजें बनाने के उस्ताद केदार ने मिनी हाइड्रो पॉवर प्लांट (Mini hydro power plant ) ही बना दिया। टीन-टप्पर से बनाए इस प्लांट को उन्होंने अपने सेरेंगातु गांव के सेनेगड़ा नाले में रख दिया। इससे 3 किलोवाट बिजली पैदा होने लगी। यानी इससे 25-30 बल्ब जल सकते हैं।  केदार कहते हैं कि उनका यह प्रयोग अगर पूरी तरह सफल रहा, तो वो इसे 2 मेगावाट बिजली उत्पादन तक ले जाएंगे। केदार ने 2004 में अपने इस प्रयोग पर काम शुरू किया था। 

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सोनीपत, हरियाणा.  यह हैं गोहाना के गांव सैनीपुरा के रहने वाले किसान सत्यवान। इन्होंने पुराने थ्रेसर से यह देसी जुगाड़ की मशीन (Desi jugaad machine) बनाई है। इसे ट्रैक्टर से जोड़कर चलाते हैं। सत्यवान के पास 4 एकड़ जमीन है। 8 साल पहले वे मैकेनिक थे। फिर खेती-किसानी करने लगे। पहली बार 2012 में उन्होंने धान की फसल उगाई। पहली बार मजदूर मिल गए। लेकिन 2014 में मजदूर नहीं मिलने से काफी दिक्कत हुई। नुकसान भी उठाना पड़ा। इसके बाद सत्यवान ने एक छोटी-सी मशीन बनाई। यह बिजली की मोटर से चलती थी। यह मशीन उतनी सफल नहीं रही। इसके बाद उन्होंने एक पुराना थ्रेसर खरीदा। उसके अंदर के सभी पार्ट निकालकर धान झाड़ने वाली मशीन का निर्माण किया। इस मशीन के निर्माण पर करीब 4 लाख रुपए खर्च हुए। 

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भिवानी, हरियाणा. जब बिजली से चलने वाली मशीन से चारा काटा जाता है, तो चारे के कण हवा में उड़ने लगते हैं। यह सिर्फ न पॉल्युशन फैलाते हैं, बल्कि सांस के जरिये चारा काटने वाले के फेफड़ों में जाकर बीमारी भी पैदा कर सकते हैं। यही नहीं, असावधानी से अगर मशीन के ब्लेड के पास आ गए, तो शरीर कटने का डर भी बना रहता है। इस किसान ने इसका देसी जुगाड़ निकाला। उसने मशीन के ब्लेड वाले हिस्से को ट्रैक्टर के पुराने टायर से कवर कर दिया। इससे अब न चारा हवा में उड़ता है और न दुर्घटना का खतरा। इसे बनाया है बलियाली के किसान बलविंद्र ने।

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धमतरी, छत्तीसगढ़. यह हैं 67 वर्षीय रिक्शा चालक कैलाश तिवारी। ये ई-रिक्शा की बैटरी को लेकर परेशान थे। तिवारीजी ने दिमाग दौड़ाया और रिक्शा के ऊपर सोलर प्लेट (Solar Plate) लगा दी। अब इसके जरिये बैटरी लगातार चार्ज होती रहती है। ई-रिक्शा पर उनके करीब 40 हजार रुपए खर्च हुए। सोलर प्लेट लगने के बाद अब उनकी कमाई बढ़ गई है। 

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यह मामला मध्य प्रदेश के बुरहानपुर का है। निंबोला क्षेत्र के एक किसान के तीन बेटों ने बेकार पड़े पाइपों के जरिये धमाका बंदूक बना दी। दरअसल, किसान खेतों में सूअर और अन्य जानवरों के घुसने से परेशान था।  हर साल उसकी लाखों की फसल खराब हो जाती थी। पटाखे आदि काम नहीं करते थे। इस बंदूक से ऐसा धमाका होता है कि जानवर डरके भाग जाते हैं। बता दें कि यह बंदूक बनाने वाले मनोज जाधव 8वीं, पवन जाधव 7वीं  तक पढ़े हैं। सिर्फ जितेंद्र पवार ग्रेजुएट हैं। इसकी आवाज 2 किमी तक सुनाई पड़ती है। 

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यह मामला यूपी के चित्रकूट में रहने वाले दो भाइयों सुरेश चंद्र(49) और रमेश चंद्र मौर्य(45) से जुड़ा है। मऊ तहसील के ग्राम उसरीमाफी के रहने वाले इन भाइयों ने ट्रैक्टर का काम करने वाली सस्ती मशीन बनाई है। इसे 'किसान पॉवर-2020' नाम दिया है। ये दोनों भाई मूर्तियां और गमले बनाते थे। फिर किसानों की समस्या देखकर मशीन बनाने का आइडिया आया। जो गरीब किसान ट्रैक्टर नहीं खरीद सकते...उनके लिए यह मशीन फायदेमंद है।

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