ऊंचे-ऊंचे खूबसूरत हरे-भरे पर्वतों बसा केरल भारत का श्रंगार कहा जाता है। गहरे सागर तट पर बसे इस राज्य में गगन छूते नारियल के वृक्ष देखने को मिलते हैं। ऐसी ही कुछ ऊंचाई यहां वापमंथ को 64 साल पहले मिली थी, जब ईएमएस नंबूदरीपाद केरल के पहले मुख्यमंत्री(वामपंथी) बने थे। केरल भारत का ऐसा इकलौता राज्य हैं, जहां साक्षरता 100 प्रतिशत है। हालांकि यहां आतंकी संगठन ISIS के बढ़ती घुसपैठ भी चिंता का विषय है कि पढ़े-लिखे नौजवान आखिर 'चरमपंथ' या हिंसक मार्ग का रास्ता क्यों अख्तियार कर रहे हैं? बता दें कि केरल की 140 विधानसभा सीटों के लिए सिर्फ एक चरण यानी 6 अप्रैल को वोटिंग होगी। नतीजे सभी पांच राज्यों के साथ 2 मई को आएंगे। आइए जानते हैं केरल से जुड़े 10 रोचक और जानकारी से परिपूर्ण तथ्य...
पहले बात करते हैं केरल के पहले कम्यूनिस्ट मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद के बारे में। इनका नाम इतिहास में शिक्षा सुधारों(Education reforms) और जमींदारी प्रथा को बंद कराने के लिए दर्ज है। नंबूदरीपाद 5 अप्रैल, 1957 को केरल के मुख्यमंत्री बने थे। देश के शीर्ष कम्यूनिस्ट नेताओं में शुमार एलमकुलम मनक्कल शंकरन यानी ईएमएस नंबूदरीपाद का जन्म 13 जून 1909 को केरल के वर्तमान मलाप्पुरम जिले में हुआ था।
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कहने को नंबूदरीपाद ब्राह्मण थे, लेकिन वे जाति प्रथा के हमेशा खिलाफ रहे। उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत ही जाति प्रथा के खिलाफ आंदोलन से की थी।
( यह तस्वीर 1979 की है, जब रोमानिया के तत्कालीन प्रेसिडेंट और नंबूदरीपाद मुलाकात हुई थी)
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नंबूदरीपाद ने 1948 में 'केरला : मलयालीकालुडे मातृभूमि' नाम से एक किताब लिखी थी। इसमें उन्होंने उल्लेख किया था कि कैसे समाज में ऊंची जातियां हावी हैं। चीजों के उत्पादन-मार्केट पर कैसे ऊंची जाति के जमींदार बैठे हैं। उनकी नजर में केरल के पिछड़ेपन का यह प्रमुख कारण था।
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नंबूदरीपाद ने 1952 में 'द नेशनल क्वेश्चन इन केरला' में भी जाति प्रथा का उल्लेख किया था। नंबूदरीपाद पहले ऐसा नेता थे, जिन्होंने भाषा को राष्ट्रीय एकता से जोड़कर देखा। भारत में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को लेकर जो आंदोलन शुरू हुए, उनमें नंबूदरीपाद की अहम भूमिका रही।
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केरल में नंबूदरीपाद की सरकार देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी। उनकी कार्यशैली से केंद्र की सरकार को डर लगने लगा था। नतीजा 1959 में उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि 1967 में वे फिर से केरल के मुख्यमंत्री बने।
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नंबूदरीपाद किसान और समाजवादी आंदोलनों के सूत्रधार थे। जब वे बीए की पढ़ाई कर रहे थे, तब 1932 में 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' चल रहा था। वे उससे जुड़ गए। अंग्रेजों ने उन्हें तीन साल के लिए जेल पहुंचा दिया। हालांकि 1933 में रिहा कर दिया गया।
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नंबूदरीपाद का राजनीति करियर 1937 में कांग्रेस के टिकट पर मद्रास विधान परिषद में चुने गए 1936 में बने अखिल भारतीय किसान सभा के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे 1934 में कांग्रेस के भीतर बने कांग्रेस समाजवादी पार्टी के भी सदस्य रहे 1962 में एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने 1964 में सीपीआई-सीपीएम के विभाजन के बाद 1977 में वे सीपीएम के महासचिव बने,1992 तक इस पद पर रहे 19 मार्च, 1998 को उनका निधन हो गया था