करोड़पति परिवार को नहीं लुभा सकी मोह-माया, गरीबों को दान की 11 करोड़ की संपत्ति, तन पर एक कपड़ा ले चल पड़ा

बालाघाट (मध्य प्रदेश). भागमभाग वाली दुनिया में हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है। अधिकतर लोगों का उद्देशय धन-धौलत कमाना रहता है।  लेकिन आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जो शांति और अध्यात्म की चाह में सांसारिक जीवन को त्याग कर साधु या भिक्षु बन जाते हैं। कुछ ऐसी एक कहानी मध्य प्रदेश के बालाघाट से सामने आई है। जहां एक करोड़पति बिजनेसमैन परिवार अपनी 11 करोड़ की संपत्ति गोशाला और धार्मिक संस्थाओं को दान कर अध्यात्म के रास्ते पर चल पड़ा है। आइए जानते हैं इस परिवार के बारे में जिसे दुनिया की मोह-माया भी नहीं लुभा सकी...

Asianet News Hindi | Published : May 18, 2022 6:08 AM IST / Updated: May 20 2022, 09:07 AM IST
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  करोड़पति परिवार को नहीं लुभा सकी मोह-माया, गरीबों को दान की 11 करोड़ की संपत्ति, तन पर एक कपड़ा ले चल पड़ा

दरअसल, सांसारिक जीवन को त्याग कर संयम पथ पर चलने का फैसला करने वाले यह कारोबारी राकेश सुराना हैं, जो बालाघाट के एक सफल सराफा कारोबारी हैं। लेकिन अब उन्होंने सब-कुछ छोड़छाड़ अध्यात्म अपना लिया है। कारोबारी ही नहीं उनकी पत्नी लीना और 11 साल के बेटे ने भी साधु-साध्वी बनने का फैसला कर चुके हैं। यह परिवार 22 मई को जयपुर में दीक्षा लेने वाला है। दीक्षा ग्रहण करने के पहले राकेश सुराना, उनकी पत्नी लीना सुराना और बेटे अमय सुरानाको शहर के लोगों ने शोभायात्रा निकालकर विदाई दी।

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बता दें कि सुराना परिवा की गिनती बालाघाट जिले का सबसे प्रतिष्ठित परिवार में होती है। यह परिवार सोने-चांदी के कारोबार के साथ ही सामाजिक कार्यो के लिए जाना जाता है। वह समय-समय पर जरुरतमदों की मदद करते रहते हैं। राकेश सुराना से पहले उनके परिवार के कई सदस्य सांसरिक मोह माया छोड़ सन्यांसी बन चुके हैं। सुराना ने बताया कि उन्हें धर्म, आध्यात्म और आत्म स्वरूप को पहचानने की प्रेरणा गुरु महेंद्र सागर महाराज और मनीष सागर महाराज से मिली है। इसलिए वह अब उन्हीं के  सानिध्य में रहना चाहते हैं।

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बता दें कि सुराना परिवा की गिनती बालाघाट जिले का सबसे प्रतिष्ठित परिवार में होती है। यह परिवार सोने-चांदी के कारोबार के साथ ही सामाजिक कार्यो के लिए जाना जाता है। वह समय-समय पर जरुरतमदों की मदद करते रहते हैं। राकेश सुराना से पहले उनके परिवार के कई सदस्य सांसरिक मोह माया छोड़ सन्यांसी बन चुके हैं। सुराना ने बताया कि उन्हें धर्म, आध्यात्म और आत्म स्वरूप को पहचानने की प्रेरणा गुरु महेंद्र सागर महाराज और मनीष सागर महाराज से मिली है। इसलिए वह अब उन्हीं के  सानिध्य में रहना चाहते हैं।

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राकेश सुराना ने बताया कि वह उनकी पत्नी ने बचपन में ही ठान लिया था कि एक दन वह संयम पथ पर जाएंगी। वह मुझसे कई बार कह सांसरिक मोह माया छोड़ सन्यांस धारण की इच्छा जाहिर कर चुकी थीं। एक बार तो उन्होंने बेटे अमय महज चार साल की उम्र में ही संयम के पथ पर जाने का मन चुकी थीं। लेकिन बेटे के कारण और 7 साल इंतजार करना पड़ा। बता दें कि राकेश सुराना की पत्नी लीना सुराना की प्रारंभिक शिक्षा अमेरिका से पूरी हुई है। जिसके बाद में बेंगलुरु यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। 

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बता दें कि राकेश सुराना ने बालाघाट में कभी छोटी-सी दुकान से ज्वेलरी का कारोबार शुरू किया था। लेकिन इनकी मेहनत और ईमानारी के चलते वह जल्द ही उनका यह कारोबार करोड़ों का बन गया। राकेश ने सराफा क्षेत्र में नाम और शोहरत दोनों कमाई। लेकिन अब इनसे भी मन भर गया तो पूरा परिवार वैराग्य की राह पर चल पड़ा। इससे पहले  2008 में राकेश सुराना की बहन नेहा सुराना सन्यासी बन चुकी हैं। 2017 में मां चंदादेवी सुराना ने दीक्षा प्राप्त कर सांसारिक जीवन का त्याग कर दिया था।

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