700 साल पुराने इस रहस्यमयी मंदिर में आकर किन्नर भी हो गया था गर्भवती, लेकिन फिर मिला यह श्राप

बड़वानी, मध्य प्रदेश है. नागलवाड़ी शिखरधाम स्थित 700 साल पुराने भीलटदेव मंदिर में इस नागपंचमी पर सन्नाटा पसरा रहेगा। आमतौर पर नागपंचमी पर यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन कोरोना ने इस बार यह सुअवसर छीन लिया है। किवदंती है कि बाबा भीलटदेव यहां नाग देवता बनकर रहते हैं। नागपंचमी पर लोग नाग देवता की पूजा अर्चना करने यहां पहुंचते रहे हैं। इस बार यहां मेला नहीं लगेगा। शुक्रवार से यहां 5 दिनों के लिए पट बंद कर दिए गए हैं। नागलवाड़ी शिखरधाम घने जंगल और एक विशाल पहाड़ी पर स्थित है। यह राजपुर तहसील में आता है। किवदंती है कि बाबा के दरबार में एक बार कोई किन्नर आया। उसने अपने लिए संतान मांग ली। बाबा ने उसे आशीर्वाद दिया। किन्नर गर्भवती हो गया था। लेकिन कोई बच्चे के जन्म के लिए वो शारीरिक तौर पर सक्षम नहीं था, लिहाजा बच्चे की गर्भ में ही मौत हो गई। इस किन्नर की यहां समाधि है। उसके बाद बाबा ने श्राप दिया कि कोई भी किन्नर नागलवाड़ी में नहीं रुकेगा। जानिए इस अद्भुत और रहस्यमयी जगह की कहानी...

Asianet News Hindi | Published : Jul 24, 2020 4:53 AM IST
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700 साल पुराने इस रहस्यमयी मंदिर में आकर किन्नर भी हो गया था गर्भवती, लेकिन फिर मिला यह श्राप

पहले जानें कौन हैं  भीलटदेव बाबा
बताते हैं कि 853 साल पहले मध्य प्रदेश के हरदा जिले में नदी किनारे स्थित रोलगांव पाटन के एक गवली परिवार में बाबा भीलटदेव का जन्म हुआ था। इनके माता-पिता मेदाबाई और नामदेव शिवजी के भक्त थे। इनके कोई संतान नहीं थी, तो उन्होंने शिवजी की कठोर तपस्या की। इसके बाद बाबा का जन्म हुआ। कहानी है कि शिव-पार्वती ने इनसे वचन लिया था कि वो रोज दूध-दही मांगने आएंगे। अगर नहीं पहचाना, तो बच्चे को उठा ले जाएंगे। एक दिन इनके मां-बाप भूल गए, तो शिव-पार्वती बाबा को उठा ले गए। बदले में पालने में शिवजी अपने गले का नाग रख गए। इसके बाद मां-बाप ने अपनी गलती मानी। इस पर शिव-पावर्ती ने कहा कि पालने में जो नाग छोड़ा है, उसे ही अपना बेटा समझें। इस तरह बाबा को लोग नागदेवता के रूप में पूजते हैं।
 

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किवंदती है कि बाबा भीलटदेव तंत्र-मंत्र और जादू की कला में पारंगत थे। उन्होंने अपना लंबा समय कामख्या देवी मंदिर के आसपास गुजारा। उन्होंने तंत्र-मंत्र से लोगों को परेशान करने वाले देश के कई बड़े तांत्रिकों का अंत किया था।

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भीलटदेव मंदिर का मौजूदा स्वरूप 2004 में तैयार हुआ। इसे गुलाबी पत्थरों से बनाया गया। यह बड़वानी से 74 किमी दूर और खरगोन से 50 किमी दूर है।

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सतपुड़ा के घने-ऊंघते और अनमने जंगल में एक विशाल शिखर पर बना यह मंदिर देशभर में प्रसिद्ध है।

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कहते हैं कि नागपंचमी पर यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। हालांकि इस साल कोरोना के कारण नागपंचमी पर लगने वाला मेला स्थगित कर दिया गया है।
 

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कहते हैं कि बाबा भीलटदेव का विवाह बंगाल की राजकुमारी राजल के साथ हुआ था। लेकिन उन्होंने अपनी शक्तियों के जरिये लोगों की सेवा करने के लिए शिखरधाम को चुना।

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यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र हैं। यहां 12 महीने आसानी से पहुंचा जा सकता है। अभी यहां आवागमन रोक दिया गया है।

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श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यहां टीन शेड आदि का निर्माण करा दिया गया है।

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