एक रात में होना था इस शिव मंदिर का निर्माण, लेकिन डरके मारे मुर्गे ने दे दी बांग और अधूरा रह गया मंदिर

भोपाल, मध्य प्रदेश. महाशिवरात्रि पर शिवमंदिरों में काफी भीड़ उमड़ेगी। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना से मन वांछित फल मिलते हैं। इस बार शिवरात्रि 21 फरवरी यानी शुक्रवार को है। इस मौके भोपाल से करीब 32 किमी दूर स्थित भोजपुर गांव के शिवमंदिर में भव्य मेला लगता है। इसे गांव के नाम पर ही भेाजपुर मंदिर कहते हैं। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को दुनिया का सबसे बड़ा प्राचीन शिवलिंग माना जाता है। इसकी ऊंचाई 18 फीट है। यह मंदिर 40-40 फीट के चार स्तंभों पर टिका हुआ है। हालांकि समय के साथ-साथ यह मंदिर खंडहर होने की स्थिति में पहुंच गया था, लेकिन पुरातत्व विभाग ने इसका जीर्णोद्वार कराया। इस मंदिर का निर्माण धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज(1010-1053 ई.) ने कराया था। इसीलिए इस मंदिर को भोजेश्वर मंदिर भी कहते हैं। इस मंदिर को लेकर एक किवदंती भी जुड़ी हुई है। कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण एक रात में करना था। लेकिन किसी अज्ञात डर से मुर्गे ने सुबह से पहले बांग दे दी। लिहाजा मंदिर का निर्माण अधूरा छोड़ दिया गया। आइए जानते हैं, मंदिर के बारे में कुछ और जानकारियां..
 

Asianet News Hindi | Published : Feb 20, 2020 6:46 AM IST
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एक रात में होना था इस शिव मंदिर का निर्माण, लेकिन डरके मारे मुर्गे ने दे दी बांग और अधूरा रह गया मंदिर
भोजपुर मंदिर देश के प्रसिद्ध प्राचीन शिव मंदिरों में शुमार है। यह मंदिर एक ही पहाड़ी पर बना है। यहां स्थापित शिवलिंग भी एक ही पत्थर को तराशकर बनाया गया है। किवदंती है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में कराया गया था। लेकिन मुर्गे की बांग देने के कारण मजदूरों को लगा कि सुबह हो गई और काम अधूरा छोड़ दिया गया। मंदिर का निर्माण भारत में इस्लाम के आने से पहले हुआ था।
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इस मंदिर को भारत की पहली गुंबदीय(गोलाकार) छत वाली इमारत माना जाता है। इस मंदिर का दरवाजा भी आम दरवाजों से कई गुना बड़ा है। संभवत: बाहर से ही शिवलिंग साफ दिखे, इसलिए इतना बड़ा दरवाजा रखा गया होगा।
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यह मंदिर के चबूतरे का आकार ही 32 मीटर है। यह मध्य प्रदेश के रायसेन जिले की गौहरगंज तहसील के औबेदुल्लागंज विकास में आता है।
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कुछ लोग मानते हैं कि इस मंदिर का निर्माण द्वापर युग में पांडवों ने कराया था, ताकि उनकी माता कुंती पूजा कर सकें। बाद में उसे राजा भोज ने दुरुस्त कराया। यहां साल में दो बार मेला लगता है- संक्रांति व महाशिवरात्रि।
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मंदिर से कुछ ही दूरी पर कुमरी गांव के निकट सघन वन में वेत्रवती नदी का उद्गम स्थल है। यह नदी एक कुण्ड से निकलकर बहती है।
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