इस संस्था के सदस्यों ने 21 क्विंटल घंटा स्थापित करने की योजना बनाई। हर रविवार जिले में यात्रा निकाली जाती। डेढ़ सौ यात्राओं के माध्यम से गांव-गांव तक जाकर तांबा-पीतल जमा किया गया। इसके बाद गुजरात (Gujarat) के अहमदाबाद (Ahmedabad) की एक कंपनी को महाघंटा बनाने का ठेका दिया गया।