औरंगाबाद हादसे का भयावह मंजर!चश्मदीद बोला-चीखों ने तोड़ी मेरी नींद,आंख खुलीं तो सामने पड़ी थीं लाशें


शहडोल (मध्य प्रदेश). महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हुए रेल हादसे में मारे जाने वाले सभी 16 मजदूरों के शव स्पेशल ट्रेन से शहडोल और उमरिया लाए गए। जिसमें 11 शव शहडोल और वहीं 5 शव को उमरिया उतारे गए। लेकिन इस दर्दनाक एक्सीडेंट के चश्मदीद और हादसे में मारे गए मजदूरों के साथी श्रमिक सज्जन सिंह ने जब उस भयावह मंजर का आंखों देखा हाल बयां किया तो सुनने वालों की आंखों भी नम हो गईं।

Asianet News Hindi | Published : May 9, 2020 3:31 PM IST / Updated: May 09 2020, 09:24 PM IST

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औरंगाबाद हादसे का भयावह मंजर!चश्मदीद बोला-चीखों ने तोड़ी मेरी नींद,आंख खुलीं तो सामने पड़ी थीं लाशें

दरअसल, मंडला के रहने वाले सज्जन सिंह ने कहा-मैं कितना किस्मत वाला हूं जो इस भयानकर हादसे में जिंदा बच गया। मौत मुझको छूते हुए निकल गई और मेरे 16 साथी मेरे ही सामने मर गए और में उनकी जान तक नहीं बचा सका। जिनके साथ रोज का उठना बैठना था, अक्सर हम सुख-दुख बातें करते थे, रात को हम सब एक साथ खाना खाकर सोए थे। लेकिन जब सुबह देखा तो उनकी बिखरी हुईं लाशें मेरे सामने पड़ी हुईं थी।

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मजदूर सज्जन सिंह आपबीती बताते-बताते रोने लगा, बोला-मैं भी अगर मेरे साथियों की तरह पटरी पर सो गया होता तो शायद मेरी लाश भी आज गांव पहुंची होती। जिंदा बचे हम चार लोग इतने खुशकिस्मत हैं कि चारों पटरी पर नहीं पास में पड़ी गिट्टी पर सोए थे। इसलिए आपके सामने हैं। सज्जन सिंह ने बताया कि अचानाक सुबह साढ़े पांच बजे साथियों की चीख से मेरी नींद खुली, देखा तो सभी की लाशें बिखरी हुई ट्रेक पर पड़ी थीं। यह खौफनाक मंजर देखकर मैं भी बेसुध हो गया।

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सज्जन सिंह ने बताया कि हम सभी जालना की एक फैक्ट्री में काम करते थे, लेकिन  लॉकडाउन के चलते काम-धाम सब बंद हो गया था। जो जमा पूंजी बची हुई थी वह भी खाने-पीने में खर्च हो गई थी। बस हम सभी साथी किसी तरह वहां गुजर-बसर कर रहे थे। आलम यह था कि भुखमरी जैसे हालात हो गए थे। ऐसे में अपने घर आने के अलावा और कुछ रास्ता हमारे पास नहीं बचा था। 

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मजदूर सज्जन सिंह बोला-बस ट्रेन सब बंद थे, हमारे पास पैदल चलने के सिवाय कोई उपाय नहीं था। हम लोग जालना से करीब 45 किलोमीटर चलकर आ  रहे जब हम करमाड़ पहुंचे तो थक चुके थे, सभी लोगों ने साथ में जो रोटी और चटनी लाए थे पहले उनको खाया।  फिर रेल पटरियों को ही अपनी आरामगाह बना लिया। लेकिन, सुबह जब उस मंजर को देखा तो मैं अपने साथियों को नहीं पहचान पाया।

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इस भयानक हादसे ने किसी का पति तो किसी का पिता छीन लिया। मासूम बच्चों के सिर से पिता का साया उठने के बाद भी उन्हें अपने पापा से नये कपड़े और खाने खिलोने की आस लगा रखी थी। वह सोच रहे होंगे पापा आएंगे तो कुछ  लेकर आएंगे, लेकिन अब उनका सीधा शव घर पहंचा।
 

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इस हादसे में किसी का बेटा तो किसी का भाई मौत की नींद सो गया। हादसे की खबर लगने के बाद शहडोल जिसे में मृतक के परिजन इस हालत में उनको याद कर बिलख रहे हैं।

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उमरिया जिले के ममान गांव में मातम पसरा है। पूरे गांव में मौत का गहरा सन्नाटा है। ये वही गांव है जिसके कई बेटे उस हादसे में अपनी जान गंवा बैठे।

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