यहां है देश का एकमात्र ट्राइबल म्यूजियम,देश-विदेश से आते हैं लोग,आदिवासी संस्कृति की दिखती है झलक,जानें खासियत

भोपाल : 15 नवंबर का दिन मध्यप्रदेश (madhya pradesh) के लिए खास होगा। भोपाल (bhopal) का नजारा बदला-बदला सा नजर आएगा। राजधानी जनजातीय संस्कृति के रंग में रंगी होगी। जंबूरी मैदान पर आदिवासियों का मेला लगेगा, उसक दिन यहां जनजातीय गौरव महासम्मेलन होगा। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (narendra modi) भी शामिल होंगे। इस समारोह में प्रदेश से करीब 2 लाख आदिवासी भाग लेंगे। आदिवासी संस्कृति को सहेजने सरकार का यह कदम काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है लेकिन क्या आपको पता है कि देश का एकमात्र जनजातीय संग्रहालय भी भोपाल में ही स्थित है। जहां आदिवासी कल्चर को सहेजकर रखा गया है। आइए आपको दिखाते हैं इस खूबसूरत म्यूजियम की झलक और बताते हैं क्या है इसकी खासियत...

Asianet News Hindi | / Updated: Nov 12 2021, 07:00 AM IST
110
यहां है देश का एकमात्र ट्राइबल म्यूजियम,देश-विदेश से आते हैं लोग,आदिवासी संस्कृति की दिखती है झलक,जानें खासियत

देश का एकमात्र जनजातीय संग्रहालय (tribal museum) मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में है। यहां आदिवासी कल्चर की झलक दिखती है। यहां जो भी वस्तुएं हैं, उनका निर्माण पारंपरिक और अनोखा है। इस म्यूजियम को बनाने का उद्देश्य मध्यप्रदेश की जनजातियों की जीवनशैली से लोगों को परिचित कराना है।

210

भोपाल के श्यामला हिल्स पर बना मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय 6 जून 2013 को बनाया गया था। यह करीब 2 एकड़ में फैला है। इसे बनाने में 35 करोड़ 20 लाख रुपए खर्च हुए थे। इस संग्रहालय का प्रतीक चिन्ह बिरछा है। जो धरती की उर्वरा शक्ति और जीवंतता का प्रतीक माना जाता है।

310

यह जनजातीय संग्रहालय देश की आदिवासी संस्कृति और जनजातीय जीवन और कला का अद्भुत केंद्र है। इस संग्रहालय की अलग-अलग कला दीर्घाओं के जरिए जनजातीय जीवन शैली को देखा और महसूस किया जा सकता है।

410

जनजातीय संग्रहालय में मध्यप्रदेश की बैगा, सहरिया, गोंड, भील, कोरकू, कोल और भारिया जनजातियों की झलकियां दिखती हैं। गोंड और अन्य जनजातियों की महिलाएं गुदना-बिरछा जेहका यानी वृक्ष का जेवर अपने शरीर पर धारण करती हैं। इसमें ऊपर बने बिंदु अन्न की ढेरियों को दर्शाते हैं। इन्हें धारण करना घर-परिवार के लिए अक्षुण्ण अन्न की ढेरियों की कामना करना है।

510

इस म्यूजियम में नजातियों की जीवनशैली को 6 दर्शक दीर्घाओं में दर्शाया गया है। बैगा घर, गोंड स्थापत्य, भील घर, सहरिया आंगन, मग रोहन, गोंड घर, पत्थर का घर, कोरकू घर। 

610

संग्रहालय में आदिवासी बच्चों के खेलों पर अलग से कलादीर्घा बनाई गई है, जिसमें विभिन्न खेलों को शामिल किया गया है। जिसमें मछली पकड़िया, चौपड़, गिल्ली-डंडा, बुड़वा चक्ताक गोंदरा, पोशंबा, घर-घर, पंच गुट्टा, गेड़ी, पिट्ठू, गूछू हुड़वा शामिल हैं।

710

संग्रहालय में जनजातीय देवलोक को दिखाया गया है, जिसमें बाबा देव, पिठौरा, सहरिया देव गुड़ी, गातला, माड़िया खाम, मढ़ई, मेघनाद खाम्भ, सरग नसैनी, सनेही, महारानी और मरही माता, लिंगो गुड़ी, लोहरीपुर के राजा, रजवार आंगन हैं।

810

कभी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ एक ही राज्य हुआ करते थे, इसलिए यहां की जनजातियों के जीवन को भी इस संग्रहालय में बताया गया है। इन जातियों का एक बड़ा समूह बस्तर क्षेत्र में रहता है। मुरिया, माड़िया, हल्बा, भतरा, घुरवा, पनिका कई जनजातियां यहां रहती आई हैं। इस दीर्घा में सिंह ड्योढ़ी, दशहरा रथ, डंगई लाट, शीतला माता, मावली माता गुड़ी, बिमन दीया, बुनकर घर, घड़वा झारा शिल्पी, कुम्हार घर, घोटुल, करमसेनी वृक्ष, रजवार भित्ति चित्र मौजूद है।
 

910

जनजातीय लोगों की कला क्या है, इसको भी विस्तार से बताया गया है। बांसिन कन्या, धरती जगाने की कथा, बाना, पूर्वजों की कथा, विवाह मंडप, कंगन, पूर्वजों का लोक, कंटक वन, औजार बनाने की कथा को बड़े अनोखे तरीके से बताया गया है।

1010

यहां हर रविवार आदिवासी लोक संगीत और सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन होता है। इसमें मध्यप्रदेश की जनजातियों के गायक और कलाकारों अपनी-अपनी प्रस्तुति देते हैं। यहां होने वाले कार्यकर्मों को देखने का प्रवेश फ्री होता है।

Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos