Round-up 2021: इस साल राजनीति ने खोए कई दिग्गज, यूपी-बिहार समेत इन राज्यों के नेताओं ने दुनिया को कहा अलविदा

भोपाल : साल 2021 किसी के लिए खुशहाली भरा रहा तो किसी के लिए दुखों वाला। कोरोना संकट के चलते साल 2020 दुनियाभर के देशों मुश्किलों का सामना किया। साल  2021 से सभी को उम्मीदें थी लेकिन इस साल भी दुनिया को कोरोना के दंश से जूझना पड़ा। पिछला एक साल भारतीय राजनीति में काफी दुख भरा रहा। हमने कई राज्यों और देश से दिग्गज नेताओं को खोया है। इनमें ऐसे नेता रहे हैं जो राज्य ही नहीं देशभर में अपनी विशेष पहचान रखते थे और जिन्होंने देश के अहम पदों पर रहते हुए खास जिम्मेदारियां निभाईं। आइए जानते हैं ऐसे ही नेताओं के बारें में जिन्होंने इस साल दुनिया को अलविदा कह दिया..

Asianet News Hindi | / Updated: Dec 23 2021, 08:00 AM IST

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Round-up 2021: इस साल राजनीति ने खोए कई दिग्गज, यूपी-बिहार समेत इन राज्यों के नेताओं ने दुनिया को कहा अलविदा

मध्यप्रदेश, नंदकुमार चौहान
खंडवा-बुरहानपुर से 5 बार भाजपा से सांसद रहे नंदकुमार सिंह चौहान (Nand Kumar Singh Chauhan) का 2 मार्च को निधन हो गया। 11 जनवरी को कोरोना पॉजिटिव होने के बाद से 68 वर्षीय नंदकुमार सिंह का भोपाल के अस्पताल में इलाज चल रहा था। नंदकुमार सिंह चौहान का राजनीतिक सफर साल 1978 में शाहपुर नगर परिषद से शुरू हुआ था। इसके बाद वो 1985 से 1996 तक विधायक रहे और साल 1996 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़कर लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। इसके बाद साल 1998. 1999, 2004, 2014 व 2019 में भी खंडवा से वो सांसद चुने गए।

कलावती भूरिया
मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले की जोबट विधानसभा सीट से विधायक और कांग्रेस नेत्री कलावती भूरिया 24 अप्रैल को कोरोना से जंग हार गईं। कांग्रेस विधायक कलावती भूरिया 2018 में पहली बार विधानसभा सदस्य बनीं थीं। इसके पहले वे झाबुआ और आलीराजपुर जिले के विभिन्न सामाजिक, स्वास्थ्य और अन्य समितियों में सदस्य रहीं। कलावती भूरिया 1990 में सरपंच बनीं थीं। इसके बाद 2000-2018 तक झाबुआ जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं। कलावती कांग्रेस सांसद कांतिलाल भूरिया की भतीजी थीं। 

ब्रजेंद्र सिंह राठौर
कांग्रेस (congress) के कद्दावर नेता और कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे बृजेंद्र सिंह राठौर (Brajendra Singh Rathore) का 2 मई को कोरोना से निधन हो गया। 
उनका का जन्म 1 जनवरी 1957 को टीकमगढ़ जिले के पृथ्वीपुर में हुआ था। उन्होंने 1982 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा और 1998 में पहली बार निवाड़ी विधानसभा से निर्दलयी प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतकर विधायक बने थे। इसके बाद 2005 में दूसरी बार निवाड़ी से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतकर विधायक बने। 2013 में पृथ्वीपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकिट पर विधायक चुने गए। राठौर साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट पर पृथ्वीपुर विधानसभा से विधायक चुने गए और कमलनाथ सरकार में वह वणिज्यकर मंत्री रहे। 

लक्ष्मीकांत शर्मा
मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दिग्गज नेता रहे लक्ष्मीकांत शर्मा (Laxmikant Sharma) का 31 मई को कोरोना से निधन हो गया था। वो 11 मई को कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे, जिसके बाद उन्हें भोपाल के एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था लेकिन 31 मई को कोरोना से जंग हार गए। शर्मा का नाम व्यापम घोटाले में सामने आया था। 60 वर्षीय शर्मा 1993 में पहली बार विधायक चुने गए थे। इसके बाद 1998, 2003 और 2008 में सिरोंज विधानसभा क्षेत्र से लगातार विधायक चुने गए। 2018 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट न देकर उनके छोटे भाई उमाकांत शर्मा को टिकट दिया था। जो अभी सिरोंज से विधायक हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) के पहले कार्यकाल में लक्ष्मीकांत शर्मा खनिज मंत्री थे। शिवराज सरकार के दूसरे कार्यकाल 2008 से 2013 में लक्ष्मीकांत शर्मा उच्च शिक्षा जनसंपर्क एवं संस्कृति जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री रहे। 2013 में लक्ष्मीकांत शर्मा कांग्रेस के उम्मीदवार गोर्वधन उपाध्याय से चुनाव हारने के बाद राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गए थे।

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छत्तीसगढ़, देवव्रत सिंह
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ विधानसभा सीट से विधायक और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के नेता देवव्रत सिंह का दिल का दौरा पड़ने से 4 नवंबर को निधन हो गया। वह 52 साल के थे। खैरागढ़ राजपरिवार के सदस्य देवव्रत सिंह पहली बार वर्ष 1995 में अविभाजित मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। बाद में वह वर्ष 1998 और छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद वर्ष 2003 में कांग्रेस के टिकट पर तथा वर्ष 2018 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के टिकट पर निर्वाचित हुए थे। सिंह ने वर्ष 2007 में राजनांदगांव लोकसभा सीट का भी प्रतिनिधित्व किया था। इस सीट पर हुए उपचुनाव में वह निर्वाचित हुए थे। वह कांग्रेस के तेज तर्रार नेता माने जाते थे। राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी (Ajit Jogi ) के करीबी रहे सिंह ने दिसंबर 2017 में पार्टी नेतृत्व पर उपेक्षा का आरोप लगाकर कांग्रेस छोड़ दी थी। बाद में वह वर्ष 2018 में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) में शामिल हो गए थे। सिंह ने इस चुनाव में जोगी की पार्टी से विधानसभा चुनाव लड़ा और खैरागढ़ से चौथी बार विधायक निर्वाचित हुए। साल 2020 में अजीत जोगी के निधन के बाद मरवाही विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव के दौरान देवव्रत सिंह ने पार्टी के विरोध में जाकर सत्ताधारी कांग्रेस का साथ दिया था। जबकि इस उपचुनाव में पार्टी ने मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देने का फैसला किया था। इस चुनाव के बाद देवव्रत सिंह के कांग्रेस में वापसी के भी कयास लगाए जा रहे थे।

रमेश वर्ल्यानी
छत्तीसगढ़ के कांग्रेस वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक रमेश वर्ल्यानी (Ramesh Warlyani) का 19 दिसंबर को निधन हो गया। उन्होंने हरियाणा के गुरुग्राम में एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया। 15 नवम्बर 1947 को जन्मे रमेश वर्ल्यानी समाजवादी धड़े के नेता थे। दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा के करीबियों में शामिल वर्ल्यानी अभी प्रदेश कांग्रेस में प्रवक्ता थे। उन्हें आर्थिक और कर संबंधी मामलों की विशेषज्ञता थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का घोषणा पत्र बनाने में भी वर्ल्यानी की भूमिका चर्चा में रही है। 1977 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान रायपुर ग्रामीण सीट से वे जनता पार्टी के उम्मीदवार थे। उन्होंने कांग्रेस के स्वरूप चंद जैन को हराकर वह सीट जीती थी। हालांकि 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर दोबारा वापसी की। बाद में उन्होंने जनता दल के टिकट पर धरसीवां से भी चुनाव लड़ा। रमेश वर्ल्यानी ने बाद में कांग्रेस जॉइन कर लिया। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में भी वे कई महत्वपूर्ण पदों पर सेवा दे चुके हैं। रमेश वर्ल्यानी सामाजिक क्षेत्र में भी काफी सक्रिय थे। वे सिंधी पंचायत जैसे कई संगठनों से जुड़े हुए थे। उनके ही प्रयासों से छत्तीसगढ़ में सिंधी परिषद का गठन किया गया था। जीएसटी, आर्थिक नीतियों और सामाजिक सरोकारों को लेकर वे सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय थे।

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उत्तर प्रदेश, कल्याण सिंह
राजस्थान के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह (Kalyan Singh) ने 21 अगस्त, 2021 को लंबी बीमारी से संघर्ष के बाद 89 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहने के दौरान कल्याण सिंह ज्यादा सुर्खियों में रहे थे। कल्याण सिंह ने 30 साल की उम्र में 1962 में राजनीति में कदम रखा था। जनसंघ से जुड़े रहे कल्याण सिंह  साल 1975-76 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान 21 महीने जेल में रहे थे। अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में उनकी भी भूमिका रही थी। 1991 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। इनके कार्यकाल के दौरान 6 दिसंबर, 1992 के दिन अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया था। 1992 में अयोध्या में उपद्रव के समय यूपी के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक एसएम त्रिपाठी ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से कारसेवकों पर गोली चलाने की अनुमति मांगी थी। लेकिन, कल्याण सिंह ने गोली चलाने के बजाय लाठी चार्ज, आंसू गैस जैसे अन्य तरीकों का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया। और देखते ही देखते ही बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया गया। 221 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत होने के बावजूद बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के बाद कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। साल 1997 में कल्याण सिंह दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। साल 1999 में मतभेदों के कारण कल्याण सिंह ने भाजपा से नाता तोड़ लिया। साल 2013 में कल्याण सिंह भाजपा में वापस लौटे। 2014 में कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल बनाए गये थे।

चौधरी अजित सिंह
मई, 2021 में राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह (Ajit Singh) का निधन हो गया। 86 साल की उम्र में 22 अप्रैल कोरोना संक्रमण के कारण चौधरी अजित सिंह की तबीयत बिगड़ी और अस्पताल में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह (Charan Singh) के बेटे चौधरी अजित सिंह उत्तर प्रदेश की बागपत लोकसभा सीट से 7 बार सांसद चुने गए थे। इसके अलावा वे एक बार राज्य सभा सदस्य भी बने। केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री रह चुके चौधरी अजित सिंह जाट समुदाय के बड़े नेता थे। उनका पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी दबदबा था। अजित सिंह 1986 में पहली बार राज्यसभा सांसद बने थे। वे चार बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल रहे। साल 1986 में जब चौधरी अजित सिंह के पिता चौधरी चरण सिंह बीमारी से ग्रसित हुए तो अजित सिंह ने अपनी सियासी पारी शुरू की।  पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा कहा जाता है। अपने पिता चौधरी चरण सिंह की ही तरह ही चौधरी अजित सिंह भी किसानों के मुद्दों को लेकर सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष करते रहे। किसानों के मुद्दे पर संघर्ष के बाद अलग पहचान हासिल करने वाले चौधरी अजित सिंह ने आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। अजित सिंह बिल गेट्स की कंपनी IBM में नौकरी करने वाले पहले भारतीय थे। 

विजय कश्यप 
मुजफ्फरनगर के चरथावल विधानसभा क्षेत्र से विधायक विजय कश्यप का 18 मई को कोरोना से निधन हो गया। उन्हें संघ का करीबी माना जाता था और अगस्त 2019 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने अपनी कैबिनेट का विस्तार किया था तो उसमें विजय कश्यप को भी शामिल किया था। चरथावल सीट से विजय कश्यप ने बीजेपी के टिकट पर 2007 और 2012 में भी चुनाव लड़ा था, मगर जीत नहीं मिली थी। इसके बाद मोदी लहर में वह पहली बार 2017 के विधानसभा चुनाव में विजयी हुए। विजय कश्यप बीजेपी में पिछड़ा वर्ग का बड़ा चेहरा माने जाते थे। 21 अगस्त 2019 को मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान सीएम योगी ने उन पर भरोसा किया था और विजय कश्यप को राजस्व राज्यमंत्री के रूप में शामिल किया था। विजय कश्यप मुख्यमंत्री कार्यालय से संबद्ध राज्यमंत्री भी थे।

रमेश दिवाकर
औरैया जिले के सदर से भाजपा विधायक रमेश दिवाकर की कोरोना से निधन हो गया। भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में रमेश दिवाकर को औरैया सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया था। 56 साल रमेश दिवाकर पिछले दो दशक से ज्यादा समय से भाजपा से जुड़े हुए थे। भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष रहे रमेश दिवाकर ने 2009 और 2014 में इटावा सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी से टिकट की मांग की थी।

केसर सिंह गंगवार
उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के नवाबगंज विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी विधायक केसर सिंह गंगवार का 28 मई को कोरोना वायरस संक्रमण से निधन हो गया। वो 64 साल के थे। गंगवार साल 2009 में बसपा से विधान परिषद के लिए चुने गए थे और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में वह बीजेपी में शामिल हो गए थे। पार्टी ने उन्हें नवाबगंज सीट से टिकट दिया था, जिस पर उन्होंने जीत दर्ज की थी।

दल बहादुर कोरी
रायबरेली के डीह ब्लॉक के पदनमपुर बिजौली गांव के निवासी दल बहादुर कोरी (62) मौजूदा समय में सलोन विधानसभा से विधायक थे। 7 मई को कोरोना के कारण उनका निधन हो गया।
दल बहादुर कोरी पहली बार 1993 में विधायक बने थे। इसके बाद 1996 में दूसरी बार जीत हासिल करके वह राजनाथ सिंह (Rajnath singh) के मुख्यमंत्री काल में राज्य मंत्री बने। 2004 में दल बहादुर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। हालांकि 2014 में वह फिर BJP में शामिल हो गए थे। 2017 विधानसभा चुनाव में उन्होंने शानदार जीत हासिल की। 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अमेठी में स्मृति ईरानी (Smriti Irani) को जीताने में बड़ी भूमिका अदा की थी। यही कारण है कि स्मृति ईरानी के बेहद करीबी लोगों में दल बहादुर भी शामिल थे। 

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उत्तराखंड, इंदिरा हृदयेश
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता एवं उत्तराखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का 13 जून को नई दिल्ली में निधन हो गया था। वह 80 साल की थीं। 7 अप्रैल 1941 को जन्मीं इंदिरा हृदयेश 
33 साल की उम्र में पहली बार विधान परिषद की सदस्य बनीं। पहली बार 1974 में यूपी विधान परिषद की सदस्य बनीं। उस समय उत्तराखंड अलग राज्य नहीं हुआ करता था। उसके बाद 1986, 1992 और 1998 में भी वो विधान परिषद की सदस्य चुनी गईं। विधान परिषद की सदस्य रहते कई समितियों की सदस्य भी रहीं। मार्च 2002 में उत्तराखंड में पहली विधानसभा के लिए चुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई और एनडी तिवारी मुख्यमंत्री बने। हलद्वानी सीट से इंदिरा पहली बार विधायक बनीं। एनडी तिवारी की सरकार में इंदिरा हृदयेश PWD, फाइनेंस, संसदीय कार्य जैसे अहम विभागों की मंत्री बनाई गईं। 2007 के चुनावों में इंदिरा हृदयेश चुनाव हार गईं, लेकिन 2012 के चुनाव में फिर से हलद्वानी से जीतीं। 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बुरी हालत हो गई। कांग्रेस 70 में से सिर्फ 11 सीट ही जीत सकी। इन 11 विधायकों में से एक इंदिरा हृदयेश भी थीं।

हरबंस कपूर
देहरादून के कैंट क्षेत्र से भाजपा विधायक हरबंस कपूर (Harbans Kapoor) का 13 दिसंबर को निधन हो गया है। वह 75 साल के थे। कपूर लगातार आठ बार विधायक चुने गए थे। सात जनवरी 1946 को जन्मे हरबंस कपूर एक कुशल राजनीतिज्ञ रहे हैं। वे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और कैंट विधानसभा सीट से विधायक थे। कैंट क्षेत्र में उनका ही दबदबा रहा है। हरबंस कपूर 2007 से 2012 तक उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 1985 में उन्हें पहली हार मिली थी, लेकिन इसके बाद से वे कभी विधानसभा चुनाव नहीं हारे और लगातार आठ बार विधायक बने।
 

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बिहार, रघुवंश प्रसाद सिंह 
पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) का भी निधन साल 2021 शुरू होने से पहले 2020 के अंतिम दिनों में हो गया। वह RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के बेहद करीबी थे। निधन से पहले उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दिया था, जिसे लालू ने अस्वीकार कर दिया था। आरजेडी का प्रमुख चेहरा रहे रघुवंश प्रसाद को पोस्ट कोविड केयर के लिए दिल्ली एम्स लाया गया था। हालत खराब होने के बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था जिसके बाद उनका निधन हो गया। 1977 से सक्रिय सियासत का हिस्सा बने रघुवंश प्रसाद, लालू प्रसाद यादव के संकटमोचक माने जाते रहे। वे लगातार चार बार वैशाली से सांसद रहे। UPA की सरकार में मंत्री भी रहे।  

सदानंद सिंह
8 सितंबर को बिहार (Bihar) कांग्रेस के सबसे बड़े नेता का निधन हो गया। 76 साल के सदानंद सिंह (Sadanand Singh) बिहार कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता थे। पिछले कुछ सालों में बिहार कांग्रेस ने बुरा से बुरा वक्त देखा, लेकिन सदानंद सिंह हमेशा हर सियासी तूफान के आगे डटे रहे। सदानंद सिंह पहली बार 1969 में विधायक बने थे। कहलगांव सीट से उन्होंने 12 बार चुनाव लड़ा और 9 बार जीत हासिल की। वो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के अलावा लंबे समय तक बिहार विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे थे.

गौरीशंकर नाग दंश
पूर्व विधायक एवं प्रसिद्ध साहित्यकार गौरीशंकर नाग दंश ने भी इस साल दुनिया को अलविदा कह दिया। लोक दल का जनता दल में विलय होने के बाद 1990 के चुनाव में नाग दंश मेजरगंज विधायक बने थे। राजनीतिक उथल-पुथल में साल 2000 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते। नाग दंश ने साहित्य की दुनिया में भी अपनी प्रतिभा दिखाई। वे एक सरल और मृदुभाषी व्यक्तित्व के धनी थे।

खालिद रशीद सबा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री खालिद रशीद सबा का 27 सितंबर को निधन हो गया। खालिद रशीद डॉ. जगन्नाथ मिश्रा, बिन्देश्वरी दूबे और सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के मुख्यमंत्रित्व काल में तीन बार मंत्री रहे। इसके साथ ही विधान परिषद सदस्य के रूप में दो बार चुने गये और प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे थे।

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झारखंड, लक्ष्मण गिलुआ
झारखंड के सिंहभूम के पूर्व सांसद व झारखंड भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा का भी कोरोना से निधन हो गया। 20 दिसंबर 1964 में जन्में गिलुवा ने रांची विश्विवद्यालय से बीकॉम तक पढ़ाई की थी। गिलुवा ने राजनीति में सक्रिय रहते हुए लंबा सफर तय किया। वे 13वीं लोकसभा सदस्य थे। वे झारखंड के सिंहभूम सीट से भाजपा के टिकट पर जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचे थे। गिलुवा भाजपा के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। हालांकि, वे पिछला चुनाव झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रत्याशी गीता कोडा से हार गए थे। गिलुवा साल 1999-2000 में संसद की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी,पर्यावरण एवं बन विभाग की कमेटी के सदस्य रहे। इसके अलावा रेलवे सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे।

कमल किशोर
झारखंड (Jharkhand) के लोहरदगा विधानसभा के पूर्व विधायक और आजसू नेता कमल किशोर भगत (Kamal Kishore Bhagat) की 17 दिसंबर को संदेहास्पद स्थिति में मौत हो गई। कमल किशोर अपने घर में ही मृत पाए गए, जबकि उनकी पत्नी नीरू शांति भगत बेहोशी की हालत में मिलीं। कमल किशोर भगत लोहरदगा विधानसभा से वर्ष 2009 में विधायक बने थे। उसके बाद वर्ष 2014 में फिर लोहरदगा विधानसभा से विजयी हुए थे, लेकिन डॉ केके सिन्हा से जुड़े मामले में उन्हें अदालत से सजा सुनाई थी। इसके कारण उनकी सदस्यता रद्द हो गई थी। कमल किशोर भगत ने जून 2015 में नीरू शांति भगत से शादी करने के बाद न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया था। जेल से रिहा होने के बाद कमल किशोर भगत फिर से सियासत में सक्रिय हो गए थे।

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पंजाब, रघुनंदन लाल भाटिया
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और अमृतसर से छह बार सांसद रहे रघुनंदन लाल भाटिया का 15 मई को निधन हो गया। वह 100 साल के थे। रघुनंदन अमृतसर संसदीय सीट से सबसे पहले 1972 में लोकसभा सांसद बने थे और इसके बाद इसी सीट से 1980, 1985, 1992, 1996 और 1999 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते। रघुनंदन भाटिया 2004 से 2008 तक केरल के राज्यपाल भी रहे। वह 2008 से 2009 तक बिहार के राज्यपाल भी रह।. उन्होंने 1992 में विदेश राज्यमंत्री के तौर पर भी काम किया। कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य के तौर पर वह पार्टी में पंजाब इकाई के अध्यक्ष और महासचिव समेत कई पदों पर रहे। 

सेवा सिंह सेखवां
पंजाब की राजनीति में अहम स्थान रखने वाले और अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सदस्य सेवा सिंह सेखवां का 6 अक्टूबर को निधन हो गया। उन्होंने 1997 को पहली बार अकाली दल ने चुनाव लड़कर विधायक बनवाया था। इसके बाद 2018 तक अकाली दल में काम करने के बाद उन्होंने रणजीत सिंह ब्रहमपुरा के साथ मिलकर अकाली दल टकसाली पार्टी बनाई। जबकि 2021 में सेखवां ने अकाली दल टकसाली को भी छोड़कर आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया था।

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हिमाचल प्रदेश , वीरभद्र सिंह
2021 में दुनिया को अलविदा कहने वाले राजनेताओं में वीरभद्र सिंह का नाम भी शामिल है। हिमाचल प्रदेश के छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह लंबी बीमारी के बाद दुनिया से रुखसत हो गए। वीरभद्र सिंह 87 साल के थे। माना जाता है कि वीरभद्र सिंह के बिना हिमाचल की राजनीति की चर्चा पूरी नहीं हो सकती। प्रदेश में विकास का ढांचा खड़ा करने का श्रेय उन्हीं को जाता है। 
छह बार सीएम पद ग्रहण करने वाले  सिंह 9 बार विधायक और पांच बार सांसद भी रहे। इसके लावा वीरभद्र सिंह, केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री समेत कई पदों अहम पदों पर रहे।  वीरभद्र सिंह ने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव के साथ अलग-अलग पदों पर काम किया। उन्होंने पहली बार केंद्रीय कैबिनेट में वर्ष 1976 में पर्यटन व नागरिक उड्डयन मंत्री का पदभार संभाला और फिर 1982 में उद्योग राज्यमंत्री बने। साल 2009 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वे केंद्र की यूपीए सरकार में इस्पात मंत्री बने। बाद में उन्हें केंद्रीय सूक्ष्म, लघु व मध्यम इंटरप्राइजेज मंत्री भी बनाया गया।

जीएस बाली
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जीएस बाली का लंबी बीमारी के बाद 67 साल की उम्र में 30 अक्टूबर को निधन हो गया। 27 जुलाई 1954 को जन्में जीएस बाली नगरोटा बगवां से चार बार विधायक और दो बार मंत्री रहे। हिमाचल सरकार में महत्वपूर्ण विभागों में दो बार मंत्री रहे। बाली 1990 से 1997 तक कांग्रेस के विचार मंच के संयोजक, सेवादल के अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संयुक्त सचिव जैसे पदों पर रहे। वर्ष 1998 में पहली बार नगरोटा बगवां विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। 1998 से लगातार 4 बार 2003, 2007 और 2012 में जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे। 2003 और 2012 में कांग्रेस सरकार में वरिष्ठ मंत्री रहे।

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राजस्थान, सरदार बूटा सिंह
दो जनवरी, 2021 को भारत के पूर्व गृह मंत्री बूटा सिंह (Buta Singh) ने 86 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान बूटा सिंह गृह मंत्री रहे थे। बूटा सिंह बिहार के राज्यपाल भी रहे थे। बूटा सिंह कांग्रेस के ऐसे नेता रहे, जिन्होंने देश के चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। बूटा सिंह राजस्थान की जालोर सीट से 8 बार सांसद रहे थे। आजादी के बाद 1952-1971 तक ‘दो बैलों की जोड़ी’ कांग्रेस का चुनाव चिह्न रहा। इसके बाद पार्टी में पड़ी फूट के कारण इंदिरा गांधी ने 1971-1977 तक कांग्रेस की अलग इकाई- इंदिरा कांग्रेस (आर) का गठन किया। इसका चुनाव चिह्न ‘गाय का दूध पीता बछड़ा’ बना। हालांकि, जब इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ जोड़ कर इस चुनाव चिह्न की खिल्ली उड़ाई गई, तो चुनाव चिह्न बदलने का निर्णय लिया गया। इस समय बूटा सिंह कांग्रेस पार्टी के प्रभारी महासचिव थे। उन्होंने इंदिरा गांधी के सामने हाथी, साइकिल और हाथ (पंजा छाप) के चुनाव चिह्न का विकल्प रखा। इंदिरा ने पंजा छाप का चुनाव चिह्न चुना, जो आज भी कांग्रेस की चुनावी पहचान है। 

जगन्नाथ पहाड़िया 
राजस्थान (Rajasthan) के पहले दलित मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया का 19 मई को कोरोना से निधन हो गया। वे 93 साल के थे। 15 जनवरी 1932 को जन्मे पहाड़िया 6 जून 1980 से जुलाई 1981 तक 11 महीने राजस्थान के सीएम रहे थे। पहाड़िया को 1957 में सबसे कम उम्र में सांसद बनने का अवसर मिला था। जब वे सांसद चुने गए तब उनकी उम्र 25 साल 3 माह थी। पंडित नेहरू, दिल्ली में उनसे पहली मुलाकात में ही प्रभावित होकर उन्हें कांग्रेस का टिकट दिया था। बाद में इंदिरा गांधी और फिर संजय गांधी के बेहद करीबी होने की वजह से उन्हें राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला था। लेकिन वह मुख्यमंत्री पद पर लंबे समय तक नहीं रह पाए। मुख्यमंत्री बनने से पहले 1965 में जगन्नाथ पहाड़िया राज्यसभा से सांसद चुने गए थे इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में उन्हें मंत्री बनने का भी मौका मिला था। 1989 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया था। 2009 से 2014 तक हरियाणा के राज्यपाल रहे थे। जगन्नाथ पहाड़िया के निधन से राजस्थान में कांग्रेस ने सबसे वरिष्ठ नेता को खो दिया है।

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दिल्ली, एके वालिया
शीला दीक्षित (Sheila Dikshit) सरकार में मंत्री रहे वरिष्ठ कांग्रेस नेता एके वालिया का 22 अप्रैल को निधन हो गया था। एके वालिया कोरोना से संक्रमित थे। डॉ. अशोक कुमार वालिया (Ashok Kumar Walia) का जन्म दिल्ली में 8 दिसंबर 1948 को हुआ था। उन्होंने 1972 में इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज से MBBS की डिग्री हासिल की और पेशे से फिजिशियन थे। वह दिल्ली की पहली, दूसरी, तीसरी और चौथी विधानसभा के सदस्य रहे। वह अपने चौथे कार्यकाल में लक्ष्मी नगर से विधायक रहे। वहीं पहले से लेकर तीसरे कार्यकाल तक वह गीता कॉलोनी से विधायक रहे।

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महाराष्ट्र, राजीव सातव
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राजीव सातव का 16 मई को निधन हो गया था। वो कोरोना से जूझ रहे थे। उनकी उम्र 46 साल थी। राजीव सातव की गिनती कांग्रेस के बड़े नेताओं में होती थी। उन्हें राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का करीबी भी माना जाता था। राजीव सातव महाराष्ट्र (Maharashtra) से आते थे। वो विधायक से लेकर लोकसभा और राज्यसभा के सांसद तक रह चुके थे। उनका जन्म 21 सितंबर 1974 को पुणे में हुआ था। राजीव 2008 से 2010 तक महाराष्ट्र युवा कांग्रेस और 2010 से 2014 तक युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके थे। राजीव पहली बार 2009 से 2014 तक महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य रहे। 2014 में हिंगोली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीते। उसके बाद अप्रैल 2020 में उन्हें राज्यसभा सांसद चुना गया था।

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बंगाल, सुब्रत मुखर्जी 
तृणमूल कांग्रेस (TMC) के वरिष्ठ नेता सुब्रत मुखर्जी का 5 नवंबर को निधन हो गया। सुब्रत मुखर्जी को राज्य के इतिहास में एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर याद रखा जाएगा, जिन्होंने बंगाल की राजनीति में एक कुशल राजनीतिज्ञ के अलावा एक सक्षम प्रशासक के रूप में 50 से भी अधिक वर्षों तक काम किया और अपनी एक विशेष पहचान बनाई। उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत 1960 के दशक में एक छात्र नेता के रूप में की थी। 

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गुजरात, माधव सिंह सोलंकी
गुजरात (Gujrat) के पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी (Madhav Singh Solanki ) का 9 जनवरी को निधन हो गया। माधव सिंह सोलंकी कांग्रेस के बड़े नेता थे और वह चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके थे। वह भारत के विदेश मंत्री भी रह चुके थे। गुजरात की राजनीति और जातिगत समीकरणों के साथ प्रयोग कर सत्ता में आने वाले माधव सिंह सोलंकी KHAM थ्योरी के जनक माने जाते हैं। KHAM यानी कि क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम। 1980 के दशक में उन्होंने इन्ही चार वर्गों को एक साथ जोड़ा और प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आए। माधव सिंह सोलंकी के इस समीकरण ने गुजरात की सत्ता से अगड़ी जातियों को कई साल के लिए बाहर कर दिया। माधव सिंह सोलंकी पेशे से वकील थे। वह आनंद के नजदीक बोरसाड के क्षत्रिय थे। वह पहली बार 1977 में अल्पकाल के लिए मुख्यमंत्री बने। 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को राज्य में जोरदार बहुमत मिला। 1981 में सोलंकी ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण लागू किया। इसके विरोध में राज्य में हंगामा हुआ। कई मौतें भी हुईं।

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