बताते हैं कि यहां पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद धर्मेंद्र गायब हो गया। जब लौटा, तो गांव में हनुमानजी की मढ़िया के पास बैठकर पूजा-अर्चना करने लगा। आज इसी जगह पर उसका आश्रम है। इसके बाद गांववालों ने श्मशान भूमि का एक टुकड़ा इसके परिवार को रहने के लिए दे दिया। लेकिन यह सरकारी जमीनों पर कब्जा करने लगा। फिर 2010 में आश्रम की नींव रखी।