जब 2 साल के बेटे को गोद में लेकर पति की चिता को देखते हुए वीरांगना ने लिया था एक बड़ा फैसला

मुंबई, महाराष्ट्र. शनिवार रात जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में आतंकियों से हुई मुठभेड़ में भारत के 5 जांबाज शहीद हो गए। ऐसा पहला मौका नहीं है, जब भारत के सपूतों ने देश पर अपनी कुर्बानी दी है। आइए सुनाते हैं आपको शहीद मेजर कौस्तुभ की कहानी। इसे बताने का सिर्फ यही मकसद है कि आप देश के इन वीरों को हमेशा याद रखें। मेजर कौस्तुभ राणे 7 अगस्त 2018 में जम्मू-कश्मीर के गुरेज सेक्टर में शहीद हो गए थे। इस दौरान उनकी उम्र महज 29 साल थी।

Asianet News Hindi | Published : May 4, 2020 12:20 PM IST / Updated: May 04 2020, 05:58 PM IST
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जब 2 साल के बेटे को गोद में लेकर पति की चिता को देखते हुए वीरांगना ने लिया था एक बड़ा फैसला

मुंबई के मीरा रोड पर रहने वाले मेजर की पत्नी कनिका के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। इस दौरान उनकी उम्र महज 29 साल थी। उनका एक बेटा है अगस्त्य। जब उसके पापा को अंतिम सलामी दी जा रही थी, तब उसकी उम्र बमुश्किल 2 साल थी। वो कभी अपनी मां से लिपट जाता..तो कभी एकटक पापा के पार्थिव शरीर को देखने लगता था। कनिका पति की पार्थिव देह से उतारे गए तिरंगे को अपने हाथों में लेकर फूट-फूटकर रो पड़ी थीं। वे आंसू जब तिरंगे पर टपके..तभी उन्होंने फैसला कर लिया था कि वे भी आर्मी ज्वाइन करेंगी। अब कनिका आर्मी ज्वाइन कर चुकी हैं। 
 

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बता दें कि शहीद मेजर कौस्तुभ राणे की वीरता के कई किस्से हैं। उन्हें दो बार सेना मेडल से नवाजा गया। पहला 2017 में दिया गया था। दूसरा 2018 में। हालांकि तब वे यह मेडल लेने के लिए खुद जीवित नहीं थे। कनिका गर्व से कहती हैं कि वे आज पति की प्रेरणा से ही आर्मी में हैं।

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आर्मी ज्वाइन करने से पहले कनिका एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर थीं। इसके बाद उनका सिलेक्शन सेवा चयन बोर्ड (एसएसबी) की परीक्षा में हो गया। अक्टूबर 2019 में वह 49 हफ्ते के प्रशिक्षण के लिए चेन्नई में अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए) चली गई थीं।
(तस्वीर कौस्तुभ राणे के अंतिम संस्कार के दौरान की।)
 

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बता दें कि मेजर कौस्तुभ राणे ने पुणे से कंप्यूटर ऐप्लिकेशन में ग्रेजुएशन किया था। कनिका के मुताबिक, कौस्तुभ का सपना था कि वो आर्मी में जाएं। उनका सपना पूरा हुआ। 

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मेजर कौस्तुभ की प्रारंभिक शिक्षा मीरा-भाईंदर, मुंबई और पुणे में हुई थी। वे 2008 में सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर भर्ती हुए हुए थे। 2011 में कैप्टन और 2018 में मेजर बने थे। जब कौस्तुभ की अंतिम यात्रा निकाली गई, तब पूरे इलाके को पीले फूलों से सराबोर कर दिया था। पीले फूल उम्मीद का रंग माने जाते हैं। कनिका ने इसी उम्मीद को जिंदा रखा।

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कनिका वरिष्ठ सेना अधिकारी के पद पर चयनित हुई थीं। कनिका कहती हैं कि वे अपने बेटे के सामने उसके पिता को ही आदर्श के तौर पर रखना चाहेंगी। इसी आस को लेकर वे भी आर्मी में आईं।

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कनिका कहती हैं कि कौस्तुभ की कमी कभी नहीं भर सकती, लेकिन जो उन्होंने चाहा..वे उसे पूरा कर रही हैं। देश सेवा के लिए उन्होंने आर्मी की वर्दी पहनी है।

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कनिका भारतीय महिलाओं की ताकत का प्रतिनिधित्व करती हैं। इमोशनल वे भी हैं, लेकिन कॉन्फिडेंट भी। कनिका ने कहा कि कौस्तुभ मुझे रोते नहीं देख सकते थे और अब वे हंसते-हंसते देश सेवा करना चाहेंगी।

(यह तस्वीर मेजर के अंतिम संस्कार के दौरान की है)

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 शनिवार रात जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में आतंकियों से हुई मुठभेड़ में भारत के 5 जांबाज शहीद हो गए। 

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