एक कुम्हार ने सुनाई अपने गधे को 'राम कहानी', सामने आई समाज के मुंह पर तमाचा मारने वाली फिल्म

मुंबई. अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में आए फैसले के बीच डाक्यू-फिक्शन फिल्म 'मेरा राम खो गया' चर्चा का विषय बन गई है। इसमें एक गरीब कुम्हार अपने गधे को 'राम कहानी' सुनाता है। दरअसल, यह कहानी नहीं, उसके जीवन की पीड़ा है। इस फिल्म में अपने-अपने भगवान के लिए सामाजिक कुप्रथाओं और ऊंच-नीच के भेदभाव का दंश झेल रहे गरीब और पिछड़े वर्ग की पीड़ा को मार्मिक अंदाज में उठाया गया है। कैसे लोगों को जात-पात, अमीरी-गरीबी और सवर्ण-दलित के आधार पर भगवान से दूर रखा जाता है। उन्हें मंदिर में आने की मनाही होती है। मंदिरों में छप्पन भोग चढ़ाए जाते हैं, लेकिन भूखों को खाने को रोटी तक नसीब नहीं होती। सारी जिंदगी फटेहाल गुजर जाती है। इस फिल्म में ऐसे ही विषय पर गहरा कटाक्ष किया गया है। इस फिल्म को निर्देशित किया है प्रभाष चंद्रा ने। प्रभाष ने asianetnews हिंदी  से शेयर की फिल्म से जुड़ीं खास बातें...

Amitabh Budholiya | Published : Nov 25, 2019 12:56 PM IST / Updated: Nov 26 2019, 11:50 AM IST
15
एक कुम्हार ने सुनाई अपने गधे को 'राम कहानी', सामने आई समाज के मुंह पर तमाचा मारने वाली फिल्म
यह फिल्म कलाकारों की एक चर्चित संस्था सिनेमा ऑफ रेसिस्टेंट(Cinema of Resistance ) देशभर में दिखा रही है। पिछले दिनों इसे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा(NSD) के अलावा तमाम स्कूल-कॉलेजों में दिखाया गया। फिल्म को एशियन फिल्म फेस्टिवल, लिफ्ट ऑफ फिल्म फेस्टिवल-यूके के अलावा कई अन्य फेस्टिवल में सराहा जा चुका है। इस फिल्म को अब लांस एंजेलिस फिल्म फेस्टिवल में दिखाया जाएगा। 105 मिनट की इस फिल्म की दिसंबर में उदयपुर के अलावा तमाम शहरों में स्क्रीनिंग होगी।
25
प्रभाष चंद्रा बताते है कि दुनियाभर में वाल्मीकि और रामचरित मानस के अलावा 300 से ज्यादा रामायण प्रचलित हैं। सरल भाषा में कह सकते हैं कि राम के 300 रूप प्रचलित हैं। यह फिल्म राम की असली आइडियोलॉजी को समझने की कोशिश है। राम कौन हैं, कैसे हैं और क्या हैं? यह फिल्म इसी विषय को उठाती है। राम के जरिये हमने लोगों की पीड़ाओं को भी उठाने की कोशिश है। यानी लोग राम को मानते हैं, लेकिन उनके भक्तों को उनकी हैसियत, जात-पात, ऊंच-नीच और अमीरी-गरीबी के हिसाब से तवज्जो देते हैं।
35
इस फिल्म का आइडिया ऐसे ही भुक्तभोगी रामनामी समाज को देखकर आया। छत्तीसगढ़ के दलितों को जब सर्वणों ने मंदिरों में घुसने नहीं दिया, उन्हें प्रताड़ित किया, तो उन्होंने रामनामी समाज की स्थापना की। इस समाज में पिछले 100 सालों से एक परंपरा चली आ रही है, ये लोग अपने पूरे शरीर पर राम नाम का टैटू गुदवाते हैं। यह सिर्फ इनकी भक्ति नहीं दिखाता, बल्कि एक विरोध का प्रतीक भी है।
45
फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे राम जाति और धर्म को प्रभावित करता है। कहानी तीन मुख्य किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। तीनों दोस्त हैं। इंदू(सुकीर्ति खुराना) सोशल वर्कर है। एक मुस्लिम युवक साहिर(अनंत विजय जोशी) जर्नलिस्ट है, जबकि दलित सवी(राजेश) पेंटर और रिसर्च स्कॉलर है। तीनों अपने-अपने कामकाज के दौरान लोगों की जो परेशानियां देखते हैं, रोटी-कपड़ा और मकान के लिए मायूस लोगों को भटकते देखते हैं, वो उन्हें द्रवित कर देता है। ये सभी भगवान राम को मानते हैं, लेकिन हर व्यक्ति के राम के अपने-अपने मायने हैं। इसमें एक कुम्हार(दिवाकर पी. सोनकरिया) भी अपने गधे को राम की कहानी सुनाता है। कह सकते हैं कि इंसानियत से बड़ा धर्म हो गया है, यह जीवन की सबसे बड़ी विडंबना है।
55
फिल्म में दिल्ली यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग के प्रोफेसर अपूर्वानंद, बधाई हो फेम अभिनेता अरुण कालरा, सामाजिक कार्यकर्ता पदमश्री डॉ. सैय्यद हमीद, शिक्षाविद और रंगमंच की जानी-मानी कलाकार जया अय्यर, सीनियर थियेटर आर्टिस्ट लोकेश जैन और सामाजिक कार्यकर्ता इंदू प्रकाश ने अभिनय किया है। उल्लेखनीय है कि प्रभाष चंद्रा की यह पहली फिल्म है। मूलत: पटना के रहने वाले प्रभाष रिसर्चर हैं। वे भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में रहकर रिसर्च कर चुके हैं। चूंकि थियेटर से गहरा लगाव था, इसलिए फिल्म लाइन में आ गए।
Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos

Recommended Photos