वजन, लंबाई, रस्सी और तख्त में निकली ये कमियां तो नहीं होगी निर्भया के चारों दरिंदों को फांसी!

नई दिल्ली. निर्भया गैंगरेप के चारों दोषियों को एक ट्रायल कोर्ट ने मंगलवार को 22 जनवरी को सुबह 7 बजे फांसी देने के आदेश दिए हैं। 23 वर्षीय फिजियोथेरेपी छात्रा के साथ राजधानी में चलती बस में गैंगरेप कर उसके साथ दरिंदगी की हदें पार कर दी गई थीं। इसके बाद 21 दिन के अंदर लड़की की मौत हो गई थी। अब 7 साल बाद इस मामले में फैसला आया है। सभी चारों अपराधियों को फांसी दी जानी है। पर फांसी देने के लिए भारत में क्या नियम है? आइए हम आपको निर्भया गैंगरेप के दोषियों की फांसी से पहले दिल्ली की जेलों का मैनुअल बताते हैं.....

Asianet News Hindi | Published : Jan 8, 2020 5:11 AM IST / Updated: Jan 08 2020, 11:08 AM IST

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वजन, लंबाई, रस्सी और तख्त में निकली ये कमियां तो नहीं होगी निर्भया के चारों दरिंदों को फांसी!
16 दिसंबर साल 2012 की रात को दिल्ली में एक चलती बस में लड़की के बस बलात्कार किया गया था। अब चारों अपराधी दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है, लंबे समय से फांसी के फरमान का इंतजार था। अब फैसला आ चुका है। दिल्ली जेल नियमों के अनुसार इन दरिंदों को फांसी दी जाएगी लेकिन नियम के हिसाब से इसकी व्यवस्था होना भी जरूरी है।
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विभिन्न राज्यों में जेलों के अलग-अलग कानून हैं। सभी राज्यों की जेलों को मैनुअल अलग होता है। चूंकि ये कैदी तिहाड़ जेल में बंद हैं, इसलिए दिल्ली जेल नियम, 2018 इस प्रक्रिया को नियंत्रित करेगा। तिहाड़ जेल के नियमों के अनुसार ही दोषियों को फांसी दी जाएगी। तिहाड़ जेल के नियम काफी सख्त नियम कहे जाते हैं। इनका सीधा संपर्क सरकार से भी होता है।
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अक्षय, विनय, पवन और मुकेश- इन चार लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने अपराध के लिए दोषी ठहराया, उनकी समीक्षा याचिका को भी खारिज कर दिया। छह लोग ऐसे थे जिन्हें अदालत ने दोषी ठहराया था, लेकिन उनमें से एक जुवेनाइल था। जबकि एक अन्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली।
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फांसी की प्रक्रिया- दिल्ली जेल नियम अधीक्षक को फांसी दिए जाने से पहले सभी जरूरी सबूत और दस्तावेज इक्ट्ठा करने का अधिकार देता है। यह भी साफ तौर पर लिखा हुआ है कि फांसी सुबह सूरज निकलने से पहले दी जानी चाहिए। हर साल फांसी का समय सरकार द्वारा अलग से पारित आदेशों के अनुसार होता है।
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पीडब्ल्यूडी का काम- लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के एक इंजीनियर को अधीक्षक द्वारा सूचित किए जाने पर फांसी की तारीख से पहले और उसके बाद फांसी तख्त आदि का निरीक्षण करने का काम सौंपा जाता है। फांसी से पहले अलग रस्सी, तख्त में कोई कमी निकल जाएं तो दोषियों की फांसी को तुरंत रोक दिया जा सकता है। इसलिए इन सभी उपकरणों की बारिकी से जांच की जाती है। री
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मैनुअल कहता है कि, "फांसी का निरीक्षण किया जाए और सजा दिए जाने से पहले शाम को अधीक्षक की मौजूदगी में रस्सी-तख्त आदि की जांच-पड़ताल की जाए। इस सब के लिए पीडब्ल्यूडी इंजीनियर व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होगा कि व्यवस्था ठीक से की गई है या नहीं।" (फाइल फोटो)
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अब बात आती है फांसी दी जाने वाले कैदियों की। कैदी के वजन और लंबाई की जांच होना बेहद जरूरी है। फांसी से पहले कैदी के वजन और उसकी लंबाई के बारे में भी विस्तार से जाना जाता है। उदाहरण के लिए, मैनुअल कहता है कि अगर किसी व्यक्ति का वजन 45.360 किलोग्राम से कम है, तो उसे 2.4440 मीटर की ऊंचाई से गिराया जाना चाहिए। अगर कैदी की लंबाई के हिसाब से व्यवस्था नहीं की गई तो फांसी पर रोक लग सकती है ताकि पहले जरूरी व्यवस्था कर ली जाए।
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फांसी के दौरान कौन-कौन मौजूद होगा? जेल नियमों का कहना है कि अधीक्षक, उपाधीक्षक, चिकित्सक अधिकारी प्रभारी और निवासी चिकित्सा अधिकारी सभी फांसी के दौरान मौजूद होने चाहिए। नियमों में जिला मजिस्ट्रेट की मौजदू होना जरूरी है। अगर जिला मजिस्ट्रेट न हो तो उनकी अनुपस्थिति में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट पहुंच सकते हैं।
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फांसी से पहले कैदी की आखिरी इच्छा- नियम कहते हैं, अगर कोई कैदी मरने से पहले आखिरी इच्छा जाहिर करे तो इसका भी इंतजाम होता है। कैदी अगर कोई आखिरी इच्छा बताता है तो एक पुजारी या उसके धर्म से जुड़ा धर्मगुरू वहां मौजूद रहता है ताकि वो पूरी की जा सके। ऐसे में कैदी के किसी रिश्तेदारों या अपने को फांसी के दौरान मौजूद रहने की अनुमति दी जा सकती है। हालांकि जेल नियम स्पष्ट रूप से कहते हैं, यह करते हुए अधीक्षक, सामाजिक वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञानिकों आदि ही अनुमति दे सकते हैं लेकिन सरकार से परमिशन लेने के बाद ही।
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