84 के दंगे में घर छोड़ने पर मजबूर हुए थे बूटा सिंह, पॉलिटिक्स में आने से पहले जर्नलिस्ट थे

स्व. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल (1986 से 1989) में केंद्रीय गृहमंत्री रहे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार सरदार बूटा सिंह 2 जनवरी, 2021 को इस दुनिया को छोड़कर चले गए। वे 2004 से 2006 तक बिहार के राज्यपाल भी रहे। 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। बता दें कि 1967 से 84 तक बूटा सिंह पंजाब के रोपड़ से सांसद का इलेक्शन लड़ते रहे। लेकिन 84 के दंगे में पंजाब ऐसे झुलसा कि इलेक्शन संभव नहीं हुए। ऐसे में बूटा सिंह को राजीव गांधी ने राजस्थान के जालौर में शिफ्ट कर दिया। बूटा सिंह यहां से जीतकर राजीव कैबिनेट में दो साल कृषि मंत्री रहे। इसके बाद उन्हें गृहमंत्री बनाया गया। हालांकि 2004 के इलेक्शन में वे इलेक्शन हार गए थे। पढ़िए बूटा सिंह की कहानी...
 

Asianet News Hindi | Published : Jan 2, 2021 6:29 AM IST / Updated: Jan 02 2021, 12:14 PM IST
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84 के दंगे में घर छोड़ने पर मजबूर हुए थे बूटा सिंह, पॉलिटिक्स में आने से पहले जर्नलिस्ट थे

पहले बता दें कि 86 वर्षीय बूटा सिंह (Buta Singh Passes Away) का लंबी बीमारी के बाद नई दिल्ली में शनिवार को निधन हो गया। 

21 मार्च, 1934 को पंजाब के जालंधर जिले के मुस्ताफपुर में जन्मे बूटा सिंह राजस्थान की जालौर लोकसभा सीट से 4 बार सांसद रहे। बूटा सिंह गांधी परिवार के करीबी थे। राजीव गांधी की प्रधानमंत्री कार्यकाल में उन्हें खूब मौका मिला। वे रेल मंत्री, खेल मंत्री और बिहार के राज्यपाल के अलावा राष्ट्रीय अनूसूचित जाति कमिशन के चेयरमैन भी रहे।

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बूटा सिंह ने अपना पहला चुनाव हरियाणा की साधना सीट से लड़ा था। बूटा सिंह ने 1984 के इलेक्शन में जालौर से जीत दर्ज की। लेकिन 1989 में वे कैलाश मेघवाल से हार गए। 1991 में वे फिर जीते। इसके बाद 1999 में सिरोही से सांसद रहे।

पूर्व रेलमंत्री सुरेश प्रभु के साथ बूटा सिंह। यह तस्वीर मई 2016 को रेलवे मंत्रालय ने ट्वीट की थी।

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राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय गृहमंत्री रहे बूटा सिंह मौजूदा मोदी सरकार के गृहमंत्री अमित शाह की तरह नंबर-2 की पोजिशन रखते थे।

फरवरी, 2015 में जब नीतीश कुमार दूसरी बार पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बने, तब बूटा सिंह ने उन्हें शपथ दिलाई थी।

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1998 में बूटा सिंह निर्दलीय चुनाव लड़े थे। तब उन्हें अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। उन्हें दूरसंचार मंत्रालय सौंपा गया था। लेकिन एक रिश्वत कांड के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।

राहुल गांधी और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के साथ बूटा सिंह। यह तस्वीर मार्च, 2014 की है।
 

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मुंबई के गुरु नानक खालसा कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री लेने वाले बूटा सिंह राजनीति में आने से पहले पत्रकार थे। उन्होंने अपना पहला चुनाव अकाली दल के टिकट पर लड़ा था। लेकिन 1960 के दशक में पार्टी टूटने के बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

नेशनल कमिशन फॉर शेड्यूल कास्ट की वार्षिक रिपोर्ट के विमोचन अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के साथ बूटा सिंह। यह तस्वीर 30 मार्च, 2010 की है।

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बूटा सिंह दलितों के मसीहा के तौर पर जाने जाते थे। उन्होंने भारत और दूसरे देशों में अकाल तख्त साहिब के निर्माण में विशेष भूमिका निभाई।

यह तस्वीर जनवरी, 2006 की है।

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