भारत पर आंख उठाने वाले मुस्लिम हमलावरों के लिए काल बनकर सामने आए थे हिंदू राजा सुहेलदेव

लखनऊ, यूपी. प्रधानमंत्री ने बसंत पंचमी पर श्रावस्ती के महान योद्धा राजा सुहेलदेव की 4.20 मीटर ऊंची प्रतिमा के निर्माण सहित स्मारक बनाने का ऐलान किया है। सुहेलदेव को 20वीं शताब्दी के बाद के तमाम हिंदू राष्ट्रवादी समूहों ने सुहेलदेव को हिंदू राजा की उपाधि दी थी। सुहेलदेव के आगे मुस्लिम आक्रमणकारी पानी मांगते थे। 11 शताब्दी की शुरुआत में बहराइच में गजनवी के सेनापति सैयद सालार मसूद गाजी को सुहेलदेव ने हराकर मार डाला था। 17वीं शताब्दी के फारसी में लिखी गई कथा-मिरात-ए-मसूदी में इसका उल्लेख मिलता है। आइए जानते हैं सुहेलदेव से जुड़ीं कुछ बातें...
 

Asianet News Hindi | Published : Feb 16, 2021 6:42 AM IST

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भारत पर आंख उठाने वाले मुस्लिम हमलावरों के लिए काल बनकर सामने आए थे हिंदू राजा सुहेलदेव

गजनवी के सेनापति सालार मसूद और सुहेलदेव की कहानी फारसी के जिस कथा संग्रह-मिरात-ए-मसूदी में पढ़ने को मिली, वो मुगल सम्राट जहांगीर (1605-1627) के शासनकाल के दौरान अब्द-उर-रहमान चिश्ती ने लिखी थी। सुहेलदेव श्रावस्ती के राजा के सबसे बड़े बेटे थे।

(पहली तस्वीर लेखक अमिश की किताब-सुहेलदेव-द किंग हू सेव्ड इंडिया का कवर पेज है)

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पौराणिक कहानियों के अनुसार सुहेलदेव को सकरदेव, सुहीरध्वज, सुहरीदिल, सुहरीदलध्वज, राय सुह्रिद देव, सुसज और सुहारदल के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि सालार मसूद गाजी महमूद गजनवी का भतीजा था। 16 साल की आयु में उसने सिंधु नदी पार करके भारत पर आक्रमण किया था। उसने मुल्तान, दिल्ली और मेरठ सहित कई इलाकों को जीत लिया था। लेकिन 1034 में सुहेलदेव ने मसूद को धूल चटा दी थी।

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सुहेलदेव के बारे में और भी कई कहानियां प्रचलित हैं। उन्हें भर थारू समुदाय से माना जाता है। हालांकि कुछ लेखकों ने उन्हें भर राजपूत, राजभर, थारू और जैन राजपूत के रूप में भी माना है।


(सुहेलदेव पर डाक विभाग ने एक टिकट जारी किया था)

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आर्य समाज, राम राज्य परिषद और हिंदू महासभा जैसे संगठनों ने सुहेलदेव को हिंदू नायक के रूप में प्रदर्शित किया। 1950 में इन संगठनों ने सालार मसूद की दरगाह पर सुहेलदेव के सम्मान में एक मेला की योजना बनाई थी। लेकिन साम्प्रदायिक तनाव को देखते हुए प्रशासन ने ऐसा नहीं करने दिया। हालांकि बाद में यहीं 500 बीघा जमीन पर सुहेलदेव के एक मंदिर को अनुमति दी गई।

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1950-60 में सुहेलदेव को राजनीति के तौर पर भुनाने की कोशिश हुई। उन्हें पासी राजा बताकर दलित समुदाय से जोड़ दिया गया। सभी राजनीति दलों से सुहेलदेव को वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया।

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