एक हाथ और दोनों पैर काटने पड़े, 17 यूनिट खून चढ़ा...ये हैं कारगिल हीरो दीपचंद, जिनसे डरता है दुश्मन

नई दिल्ली. देशवासियों के लिए 26 जुलाई का दिन गर्व से भर देने वाला है। इसी दिन देश के वीर जवानों ने जान की बाजी लगाकर दुश्मन को सरहद से पीछे धकेल दिया था। कारगिल विजय दिवस खुद में भारत के वीर सपूतों का इतिहास समेटे हुए है। इतिहास के उन्हीं पन्नों में से ऐसे वीर की कहानी, जिसने अपना एक हाथ और दोनो पैर खो दिए। नाम है नायक दीपचंद। 
 

Asianet News Hindi | Published : Jul 22, 2020 10:10 AM IST / Updated: Jul 22 2020, 03:43 PM IST

112
एक हाथ और दोनों पैर काटने पड़े, 17 यूनिट खून चढ़ा...ये हैं कारगिल हीरो दीपचंद, जिनसे डरता है दुश्मन

8 मई 1999 को शुरू हुई कारगिल जंग 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान की हार के साथ खत्म हुई थी।

212

नायक दीपचंद ने कारगिल की याद को साझा किया। उन्होंने बताया, मेरी बटालियन ने युद्ध के दौरान 10000 राउंड फायर किए। मुझे इस बात पर गर्व है। उस वक्‍त हमारे सामने बस एक ही लक्ष्‍य था, दुश्‍मन को तबाह करना।

312

हरियाणा के हिसार में पैदा हुए दीपचंद पबरा गांव में बड़े हुए। दादा से युद्ध की कहानियां सुनकर बड़े हुए। दीपचंद ने एक इंटरव्यू में बताया था कि दादा उन्हें जंग की कहानियां सुनाया करते थे। 

412

दीपचंद के मुताबिक, दादा ने बताया था कि युद्ध में कैसे खाने के पैकेट आसमान से गिराए जाते हैं। कैसे जवान गश्त करते हैं। जवान कैसे सरहद की रक्षा करते हैं। यही कहानियां सुनकर दीपचंद बड़े हुए थे। यही वजह है कि वह बचपन से सेना की वर्दी पहनना चाहते थे।

512

दीपचंद ने 1889 लाइट रेजिमेंट में गनर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी।

612

जब जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी पैर पसार रहे थे, तब वहां दीपचंद की पोस्टिंग हुई। उनकी रेजीमेंट को जब युद्ध में जाने का आदेश हुआ तब वो गुलमर्ग में तैनात थे।

712

5 मई 1999 को पता चला कि पाकिस्तानी घुसपैठियों ने सरहद में घुसने की हिम्मत की है तब दीपचंद और उनके दल के जवानों ने 120 मिमी मोटर्स के हथियार के साथ चढ़ाई की।

812

दीपचंद कहते हैं हम अपने कंधे पर भारी हथियार और गोला बारूद ले कर ऊंची पहाड़ी पर चढ़ने लगे। कई जगह पहाड़ पर चढ़ना बहुत मुश्किल था क्योंकि पहाड़ की चोटी बहुत नुकीली थी।

912

उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था, युद्ध के दौरान हमने कहा था कि हमें राशन नहीं गोला बारूद चाहिए। जो जवान हमारे लिए खाना और राशन का इंतजाम करते थे उनसे मैं और मेरे साथी राशन नहीं बल्कि गोला-बारूद लाने के लिए कहते थे।

1012

उन्होंने कहा था, युद्ध में आपको भूख नहीं लगती। सैनिकों के लिए देश पहले आता है। सेना में कोई आराम नहीं कर सकता है।

1112

कारगिल के 2 साल बाद संसद पर हमला हुआ। हमें राजस्थान बॉर्डर पर तैनात किया गया। उसी वक्त बारुद के स्टोर में रखा एक गोला गलती से फट गया और उस हादसे में दीपचंद ने अपने हाथ ही उंगलियां खो दी। इतना ही नहीं बल्कि कुछ ही दिनों बाद उन्हे उनके दोनो पैर भी कटवाने पड़े।

1212

धमाके में दीपचंद बुरी तरह घायल हो गए थे।  24 घंटे और 17 यूनिट खून चढ़ने के बाद मुझे होश आया था। लेकिन आज वे खुश हैं कि ड्यूटी के दौरान उन्होंने अपने दोनों पैर और एक हाथ खो दिया। 

Share this Photo Gallery
click me!
Recommended Photos