ये हैं हरियाणा के सबसे ताकतवर घराने, हमेशा इनके हाथ में रही है सत्ता की चाभी
हरियाणा की सियासत में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल, पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल, भजनलाल, रणबीर सिंह हुड्डा, राव बिरेंद्र और चौधरी छोटूराम बेताज बादशाह कहलाते थे। इसी के चलते हरियाणा की सियासत इन्हीं राजनीतिक परिवारों के इर्द-गिर्द सिमटी रही। हरियाणा की राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले ये नेता अब दुनिया में नहीं रहे हैं, लेकिन अभी इनके वारिस प्रदेश की सियासत में अभी वर्चस्व कायम हैं।
चौधरी भजनलाल परिवार- हरियाणा की राजनीति के बेताज बादशाह कहलाने वाले चौधरी भजनलाल ने पंचायत चुनाव से अपनी पारी की शुरुआत कर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक का सफर तय किया था। वो तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। पहली बार 1968 में चुनाव जीतकर राजनीति में आए और 9 बार विधायक चुने गए, पार्टी बदलकर भी चुनाव लड़ा लेकिन कभी हारे नहीं। भजनलाल की राजनीतिक विरासत चंद्रमोहन बिश्नोई और कुलदीप बिश्नोई संभाल रहे हैं। चंद्रमोहन हरियाणा के डिप्टी सीएम भी रह चुके हैं और 2014 में वो चुनाव हार गए। हरियाणा जनहित कांग्रेस की कमान कुलदीप बिश्नोई के हाथ में थी, जिन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में विलय कर दिया है। कुलदीप बिश्नोई अपने पिता की सीट आदमपुर से मौजूदा विधायक रहे हैं, उनकी पत्नी रेणुका बिश्नोई हांसी से विधायक रही हैं। इस बार कांग्रेस ने भजनलाल के दोनों बेटों को सियासी रणभूमि में उतारा।
छोटू राम का परिवार- चौधरी छोटू राम को कोई बेटा नहीं था, लेकिन उनकी बेटी की शादी चौधरी नेकीराम से हुई थी। चौधरी नेकीराम कांग्रेस के सदस्य थे और वे संयुक्त पंजाब में लोकसभा सदस्य रहे, जबकि राज्यसभा के सदस्य भी रहे। उनकी राजनीतिक विरासत बेटे चौधरी बीरेंद्र सिंह ने संभाली, जो खुद को छोटूराम का वंशज कहते हैं। बीरेंद्र सिंह 5 बार विधायक रहे फिर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। 2014 में पत्नी प्रेमलता को चुनाव लड़वाया और वह विधायक बन गईं। इसके बाद भाजपा ने उन्हें राज्यसभा सांसद के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री बना दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव आए तो बेटे को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे, आईएएस की नौकरी छोड़कर आए बिजेंद्र सिंह हिसार सीट से चुनाव जीते और संसद पहुंचे।
देवीलाल परिवार- हरियाणा की सियासत में ताऊ चौधरी देवीलाल ने 1987 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में 90 में से 85 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था। हालांकि उन्होंने अपना सियासी सफर कांग्रेस से शुरू किया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पार्टी गठन कर लिया था। देवीलाल दो बार हरियाणा के सीएम रहे। हरियाणा के साथ-साथ पंजाब में विधायक रहे देवीलाल दो अलग-अलग सरकारों में देश के डिप्टी प्रधानमंत्री भी बने। उनकी राजनीतिक विरासत बेटे ओमप्रकाश चौटाला ने संभाली और चार बार हरियाणा के सीएम रहे। देवीलाल की विरासत संभाल रहा चौटाला परिवार दो धड़ों में बंट चुका है। ओम प्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला ने इनेलो से अलग होकर जननायक जनता पार्टी बना ली है। जबकि इनेलो की कमान ओम प्रकाश चौटाला और उनके छोटे बेटे अभय चौटाला के हाथों में है। अजय चौटाला जेल में हैं तो उनकी विरासत उनके दोनों बेटे दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला संभाल रहे हैं। इस बार के चुनान में चौटाला परिवार के लिए अपने वजूद को बचाए रखने की चुनौती थी।
बंसीलाल परिवार- हरियाणा की सियासत में चौधरी बंसीलाल की तूती बोलती थी। चौधरी बंसीलाल को हरियाणा का निर्माता कहा जाता है। वह कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे हैं। वह तीन बार हरियाणा के सीएम रहे। उनकी राजनीतिक विरासत छोटे बेटे सुरेंद्र चौधरी ने संभाली और वह विधायक व सांसद चुने गए, लेकिन 2005 में हेलीकॉप्टर हादसे में उनकी मौत हो गई। इसके बाद अपने पति और ससुर की विरासत को संभालने के लिए किरण चौधरी ने राजनीति में कदम रखा। वह तीन बार विधायक चुनी गई। बंसीलाल की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए किरण चौधरी ने अपनी बेटी श्रुति चौधरी को 2009 में उतारा और वह भिवानी से चुनकर संसद पहुंचीं, लेकिन इसके बाद वो जीत नहीं पाईं। हालांकि किरण चौधरी एक बार चुनावी मैदान में उतरी।
राव बीरेंद्र का परिवार: हरियाणा के मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र ओबीसी के कद्दावर नेता माने जाते थे। दक्षिण हरियाणा के बड़े नेता माने जाते थे। हरियाणा के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। वे संयुक्त पंजाब में कई बार विधायक चुने गए। उनकी राजनीतिक विरासत बेटे राव इंद्रजीत ने संभाली। राव इंद्रजीत चार बार हरियाणा विधानसभा में विधायक चुने गए वे अभी तक कुल 5 बार सांसद भी चुने जा चुके हैं, जिसमें पहली तीन बार कांग्रेस की सीट पर और 2014 व 2019 में बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा। मौजूदा समय में मोदी सरकार में मंत्री है। राव इंद्रजीत अपनी बेटी आरती के लिए विधानसभा का टिकट मांग रहे थे, लेकिन सफलता नहीं मिली।
हुड्डा परिवार- स्वतंत्रता सेनानी रहे रणबीर हुड्डा आजादी के बाद पहली लोकसभा में रोहतक सीट से बड़ी जीत हासिल कर संसद पहुंचे थे। इसके बाद दूसरी लोकसभा में भी चुने गए, 1962 में पंजाब में रोहतक सीट से एमएलए चुने गए। 1968 में हरियाणा का गठन हुआ तो वे फिर विधायक चुने गए। इसके बाद राज्यसभा सदस्य चुने गए। रणबीर हुड्डा की विरासत भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने संभाली और वो दो बार हरियाणा के सीएम रहे। एक बार फिर कांग्रेस हुड्डा के चेहरे के सहारे चुनावी मैदान में उतरी। भूपेंद्र हुड्डा ने अपनी राजनीतिक विरासत के तौर पर अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को आगे बढ़ाया। वो तीन बार सांसद रह चुके हैं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव हार गए।