लाखों की नौकरी छोड़ अनाथ बच्चे के लिए 'मां' बना यह शख्स, अब मिला 'दुनिया की बेस्ट मॉम' का अवार्ड
नई दिल्ली. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आज देश भर के तमाम महिलाओं को सम्मान दिया जा रहा है। महिलाओं के वीरता को सलाम किया जा रहा है। इसके साथ ही महिलाओं और महत्ता को लेकर तमाम कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इन सब के बीच एक पुरूष ने दुनिया को 'बेस्ट मॉम' बनकर दिखाया है। हैरान करने वाली बात यह है कि एक पुरूष यानी एक पिता 'बेस्ट मॉम' कैसे बन सकता है। लेकिन पुणे के आदित्य तिवारी ने यह कारनामा कर दिखाया है। उनके इस नए कीर्तिमान के लिए आज बेस्ट मॉम के अवार्ड से सम्मानित किया गया।
बच्चों की जिंदगी में मां की भूमिका निभाने वाला हर पुरुष एक ‘मॉम’ है। आदित्य ने साल 2016 में डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त एक बच्चे को गोद लिया था, जिसके लिए उन्होंने एक लंबी कानूनी और सामाजिक लड़ाई लड़ी। हालांकि, उनकी ममता के आगे सब हार गए! अब उन्हें ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ यानी 8 मार्च के दिन देशभर की कई महिलाओं के साथ बेंगलुरु के एक इवेंट में World’s Best Mommy के टाइटल से सम्मानित किया गया।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक आदित्य तिवारी 'दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मम्मियों’ में से एक के रूप में सम्मानित होने पर बहुत खुश हैं। इस दौरान उन्होंने दूसरों के साथ स्पेशल बच्चे को संभालने का अपना अनुभव भी बांटा।
आदित्य ने अपने बेटे को सिंगल पैरेंट के रूप में गोद लिया था। वह 22 महीने के अवनीश को एडोप्ट करने के बाद सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़कर देशभर में स्पेशल बच्चों के पेरेंट्स को काउंसिलिंग देने और मोटिवेट करने के काम में जुट गए।
आदित्य ने साल 2016 में अवनीश को गोद लिया था, जो डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त है। हालांकि, उसे अपना बेटा बनाने में आदित्य को एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। करीब डेढ़ साल के संघर्ष के बाद वह अवनीश को घर लाने में सफल हुए। हालांकि, इस फैसले के कारण उन्हें पारिवारिक व सामाजिक विरोध भी सहना पड़ा।
अवनीश की मां उसे एक आश्रम के सामने छोड़ कर चली गई थी। जिसके बाद आदित्य ने अवनीश को गोद लेने की जिद्द ठान ली। इन सब के बीच आदित्य ने बच्चे को कभी भी उसकी मां की कमी महसूस नहीं होने दी।
बाप-बेटे की यह जोड़ी 22 राज्यों में रह चुकी है। जहां उन्होंने लगभग 400 जगहों पर मीटिंग्स, वर्कशॉप्स, टॉक्स और कॉन्फ्रेंस कीं। आदित्य कहते हैं, ‘हम दुनियाभर के 10,000 पेरेंट्स से जुड़ें। साथ ही, हमें संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए बुलाया गया, जहां intellectual disabilities के साथ जन्में बच्चों को संभालने पर बोलना था।
आदित्य एक बेटे की परवरिश बखूबी कर रहे हैं। 1 जनवरी 2016 को उन्होंने 22 महीने के बच्चे को गोद लिया था, जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है। बच्चे को गोद लेने के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई।
आदित्य अपने बेटे को हमेशा अपने साथ ही रखते हैं। वह जहां भी जाते हैं उनका साथ देते हैं। आदित्य के बेटे का नाम अवनीश है। उन्होंने बताया मैं जब भी ऐसे माता- पिता को मोटिवेट करता हूं जिनके स्पेशल बच्चे हैं तो उस दौरान अवनीश भी साथ में होते हैं। वह बोल नहीं सकते, लेकिन उनकी उपस्थिति माता-पिता के लिए एक प्रमुख प्रेरणा का स्रोत बन जाती है।
आदित्य ने बताया कि उनके जीवन में अवनीश की उपस्थिति ने उन्हें यह महसूस करने में मदद की कि भारत में बौद्धिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए न तो कोई अलग श्रेणी थी और न ही सरकार ने उनके लिए विकलांगता प्रमाण पत्र प्रदान किया था। हमने केंद्र के साथ इस मुद्दे को उठाया और एक ऑनलाइन याचिका भेजी। परिणामस्वरूप, सरकार को ऐसे बच्चों के लिए एक अलग श्रेणी बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब उन्हें विकलांगता प्रमाणपत्र भी मिलते हैं।
अवनीश बालवाड़ी के एक स्कूल में जाते हैं। उन्हें डांस, म्यूजिक, फोटोग्राफी और इंस्ट्रूमेंट बजाना काफी पसंद है। अवनीश को जंक फूड नहीं दिया जाता है। उनके खाने-पीने पर खास ध्यान दिया जाता है। आदित्य ने बताया,'अवनीश के दिल में दो छेद थे, लेकिन बिना किसी मेडिकल मदद के छेद गायब हो गए हैं। हालांकि,उन्हें कुछ चिकित्सा समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और उसे दो सर्जरी से गुजरना पड़ रहा है।