70 साल बाद बदली बीटिंग रिट्रीट की परंपरा, पहली बार हुआ वंदे मातरम का गान, जानिए क्यों होता है खास

नई दिल्ली. देश की राजधानी दिल्ली में हर वर्ष गणतंत्र दिवस के बाद 29 जनवरी की शाम को 'बीटिंग द रिट्रीट' सेरेमनी का आयोजन किया जाता है। इसी क्रम में आज यानी 29 जनवरी को रायसीना रोड पर राष्ट्रपति भवन के सामने इसका आयोजन किया गया। इस आयोजन के बाद चार दिनों तक चलने वाले गणतंत्र दिवस समारोह का समापन होता है। इस समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद थे। इसके साथ ही उप राष्ट्रपति एम वैंकया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला समेत अन्य लोग  शामिल हुए। इसके साथ ही यह पहली बार हुआ है कि इस कार्यक्रम में पहली बार वंदे मातरम् का गान किया गया है। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 29, 2020 1:22 PM IST
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70 साल बाद बदली बीटिंग रिट्रीट की परंपरा, पहली बार हुआ वंदे मातरम का गान, जानिए क्यों होता है खास
बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में सेना का बैंड मार्च वापस जाते समय 'सारे जहां से अच्‍छा हिंदोस्तां...' की धुन बजाई जाती है।
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बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी बहुत पुरानी परंपरा है। इसे सूरज ढलने के बाद मनाते हैं। भारत में बीटिंग रिट्रीट की शुरुआत साल 1950 में हुई थी।
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1950 के बाद बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम को दो बार रद करना पड़ा था। पहली बार 26 जनवरी 2001 को गुजरात में आए भूकंप के कारण और दूसरी बार 27 जनवरी 2009 को 8 वें राष्ट्रपति वेंकटरमन का लंबी बीमारी के बाद निधन होने के कारण रद हुआ था।
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विजय चौक पर बीटिंग रिट्रीट समारोह का आयोजन किया जाता है। जिसमें भारत की तीनों सेनाएं हिस्सा लेती है। यह समारोह सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है। दुनियाभर में बीटिंग रिट्रीट की परंपरा रही है।
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लड़ाई के दौरान सेनाएं सूर्यास्त होने पर हथियार रखकर अपने कैंप में जाती थीं, तब एक संगीतमय समारोह होता था, इसे बीटिंग रिट्रीट कहा जाता है।
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बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी को मुख्य रूप से गणतंत्र दिवस का समापन समारोह कहा जाता है। यह सेना का अपने बैरक में लौटने का प्रतीक भी माना जाता है। बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी गणतंत्र दिवस की नई परंपरा नहीं है।
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यह अंग्रेजों के समय से आयोजित होती आ रही है। बीटिंग द रिट्रीट दिल्ली के विजय चौक पर आयोजित की जाती है। इस मौके पर राष्ट्रपति भवन को रंग बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है।
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क्या-क्या होता है खासः बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी के मुख्य अतिथि राष्ट्रपति होते हैं। इसका मुख्य आकर्षण तीनों सेनाओं (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) का एक साथ मिलकर सामुहिक बैंड का कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है।
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इस कार्यक्रम में ड्रमर 'एबाइडिड विद मी' धुन बजाते हैं जो महात्मा गांधी के सबसे प्रिय धुनों में से एक थी। इसके बाद रिट्रीट का बिगुल बजता है। इस दौरान बैंड मास्‍टर राष्‍ट्रपति के नजदीक जाते हैं और बैंड वापस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। इसी के बाद यह माना जाता है कि समापन समारोह पूरा हो गया है।
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बैंड मार्च वापस जाते समय 'सारे जहां से अच्‍छा गाने' की धुन के साथ कार्यक्रम का समापन होता है। अंत में राष्‍ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता हैं।
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