मां को मजदूरी करते देख खौला बेटे का खून, 16 साल की उम्र में उठाई परिवार को पालने की जिम्मेदारी

नई दिल्ली. देश की राजधानी दिल्ली एक भागता-दौड़ता शहर है। यहां हजारों जिंदगियां दिन-रात दो वक्त की रोटी जुटाने की जद्दोहद में लगी हैं। दिल्ली में हाइवे के बीचों-बीच बनी बारकोडिंग में झुग्गी-झोपड़ियां बसी होती हैं। सड़क किनारे गरीब बेसहारा लोग अपनी जिंदगी गुजर-बसर कर रहे होते हैं। ऐसे ही एक मात्र 16-17 साल का लड़का अपने परिवार को पाल रहा है। इतनी कम उम्र में इस बच्चे पर पूरे परिवार का बोझ है। वह दिन-रात कड़ी मेहनत से काम करता है और ख्वाहिश एक ही है अपनी मां के लिए घर बनाना.....

Asianet News Hindi | Published : Jan 3, 2020 10:40 AM IST / Updated: Jan 03 2020, 04:18 PM IST

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मां को मजदूरी करते देख खौला बेटे का खून, 16 साल की उम्र में उठाई परिवार को पालने की जिम्मेदारी
हम बात कर रहे हैं दिल्ली में रह रहे एक गरीब परिवार की। 16 साल के इस लड़के की कहानी सोशल मीडिया पर सामने आई है। इस कहानी को सुन हर किसी का दिल धड़क उठा, लोग मां के लिए ऐसा प्यार देख हैरान रह गए।
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उसने बताया कि, मेरे दो भाई और एक बहन है। जब हम बहुत छोटे थे तभी हमारे पिता ने हमें बेसहारा छोड़ दिया। मेरी मां ने हमें पालने के लिए मजदूर की तरह काम किया। वह दिन-रात मजदूरी करती है, यहां तक की हमारी पढ़ाई-लिखाई के लिए वह रात को भी कुछ न कुछ घरेलू काम करती रहती है ताकि हमें कोई कमी महसूस न हो। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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मेरी मां सड़क किनारे दूसरों की दुकानों पर बर्तन मांजने से लेकर झाड़ू आदि के काम करने लगी। वह बहुत थकी हुई रहती थी लेकिन फिर भी कभी आराम नही करती थी। मैंने अपनी मां से पूछा उन्होंने क्यों हमारे लिए अपने परिवार को छोड़ दिया तो वो बोली कि, तुम मेरे बच्चे ही मेरी दुनिया हो। ये बात मुझे भीतर तक कचोटती रही जिसके बाद मैंने भी काम में जुट जाने की सोची। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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मेरी मां कई-कई घंटे काम करती तो मैंने सोचा क्यों न उसकी मदद करूं, इसलिए मैंने भी दुकानों पर काम करना शुरू कर दिया। बचपन से काम करते-करते मुझे आज तीन साल हो गए हैं। आज भी जब मैं काम से घर लौटता हूं तो मेरी मां मुझे जरूर पूछती है तेरा दिन कैसा रहा? जबकि वो वहीं मेरे आस-पास ही तो होती है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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मैं और मेरी मां हम दिन भर एक ही दुकान में काम करते हैं लेकिन इतने व्यस्त होते हैं कि मां-बेटा एक दूसरे का हाल-चाल भी नहीं पूछ पाते। फिर हमने अलग-अलग जगह काम करना शुरू कर दिया। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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मां को सपोर्ट और छोटे-भाई बहनों का पेट पालने की वजह से मैं स्कूल नहीं जा पाया लेकिन मैंने रोज के ग्राहकों की बातचीत से काफी कुछ सीखा है। अंग्रेजी भी सीखने की कोशिश करता हूं। मैं बिजनेस के गुर सीख रहा हूं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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मैंने सोच लिया है अब मैं जो भी करूंगा अपनी मां और भाई-बहन के लिए ही करूंगा। मैं अपनी को उसका फेवरट आलू का परांठा खिलाउंगा, फिर उस समय उसकी मुस्कुराहट देखूंगा, वो बहुत खुश होगी। मैंने पैसे जोड़ना शुरू कर दिया है, पाई-पाई जोड़कर अपनी मां के लिए घर बनाउंगा ताकि हम सब दोबारा एक साथ रह सकें। मैं इसके लिए कड़ी मेहनत कर रहा हूं। ये पूरी कहानी बच्चे ने ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे पेज पर साझा की है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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