सिख साम्राज्य की राजधानी 'लाहौर' पाकिस्तान में चले जाने का गुस्सा है 'खालिस्तान'

नई दिल्ली. गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराने की घटना ने सबको हैरान कर दिया है। किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी समर्थक सिखों ने जिस तरह हिंसा फैलाई, पुलिसवालों पर हमला किया, वो सतर्क करती है। 1980 के दशक में पंजाब में खून-खराब करने वाले खालिस्तानी आतंकवादियों के फिर से सिर उठाने की कहानी 15 अगस्त, 1947 में हुए बंटवारे से शुरू होती है। बंटवारे के बाद पंजाब राज्य का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया। बंटवारे में हिंदू-मुस्लिमों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन सिखों को जैसे सदमा लगा। लाहौर को कभी सिख साम्राज्य की राजधानी कहा जाता था, लेकिन वो मुस्लिम राष्ट्र के खाते में चला गया। इस घटना ने सिखों के दिलो-दिमाग में अलग राष्ट्र की मांग जोर पकड़ ली।

Asianet News Hindi | Published : Jan 27, 2021 7:11 AM IST
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सिख साम्राज्य की राजधानी 'लाहौर' पाकिस्तान में चले जाने का गुस्सा है 'खालिस्तान'

आजादी के बाद से ही पंजाबी भाषा के आधार पर एक अलग राज्य की मांग लगातार उठती आ रही थी। इसी राजनीति से जन्मा अकाल दल। अकाली दल ने इस मांग को आग लगा दी। पंजाब में जबर्दस्त प्रदर्शन होने लगे। 1966 में इस मांग को मानकर भाषा के आधार पर पंजाब, हरियाणा और केंद्र शासित चंडीगढ़ की नींव पड़ी।
(यह तस्वीर रायटर्स से साभार ली गइ है, गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर हंगामा करते सिख)

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भाषा के आधार पर खालिस्तान समर्थकों ने कुछ और भी मांगे रखीं। जैसे- हरियाणा में जहां-जहां पंजाबी भाषी बाहुल्य है, वो इलाका पंजाब को देना। पंजाब में भूमि सुधार और उद्योग को अलग से बढ़ावा देना। पूरे देश गुरुद्वारा समिति का निर्माण, सेना में सिखों की ज्यादा भर्ती। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्रीइ इंदिरा गांधी ने इन्हें देश के खिलाफ माना और एक सिरे से खारिज कर दिया। बता दें सिख समुदाय में देशभक्ति कूट-कूटकर भरी होती है। आप उनके नामों जैसे जरनैल(जनरल), करनैल(कर्नल) आदि से समझ सकते हैं। ब्रिटिश सेना भी सिखों की भर्ती को तरजीह देती थी।
(फोटो क्रेडिट-Dinesh Joshi/AP)

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एक समय पंजाब को ब्रितानी-भारतीय सेना में भर्ती के लिए सबसे उपजाऊ जमीन माना जाता था। ये एक अजीब इत्तेफाक है कि जिस व्यक्ति को 1980 के दशक में सिख चरमपंथ का जन्मदाता माना जाता है, उनके माता-पिता ने उनका नाम जरनैल सिंह रखा था। 1980 के दशक में खालिस्तान की मांग हिंसक होने लगी और पंजाब में आतंकवाद का जन्म हुआ। 'दमदमी टकसाल' के जरनैल सिंह भिंडरावाला खालिस्तान का बड़ा नेता बनकर सामने आया। उसका मकसद हिंसा फैलाकर सरकार को झुकाना था। भिंडरावाला कट्टर सिख था। वो सिखों में पनप रहीं शराब, बाल कटाने जैसी बुराइयों के सख्त खिलाफ था। (बीच में भिंडरावाला)
 

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पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद 80 से 84 तक चरम पर रहा। 83 की घटना के बाद खालिस्तान देश के लिए एक सिरदर्द बन गया। तब पंजाब में डीआईजी अटवाल की खालिस्तानी आतंकवादियों ने स्वर्ण मंदिर परिसर में ही हत्या कर दी थी। साथ ही भिंडरावाले के अनुयायियों ने स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया। हालांकि इंदिरा गांधी ने आतंकवादियों को मार गिराने का आदेश दिया। इसके बाद भारतीय सेना ने 3-6 जून, 84 तक चले ऑपरेशन ब्लू स्टार में भिंडरावाले और उसके समर्थकों का मार गिराया।


(ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद स्वर्ण मंदिर में इंदिरा गांधी)

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क्या है दमकली टकसाल
यह सिख धर्म ग्रंथों के बारे में शिक्षा देने वाली संस्था है। इसका हेड ऑफिस अमृतसर से 25 किमी दूर चौक मेहता शहर में है। जरनैल सिंह जब 30 साल का था, तब वो इसका अध्यक्ष चुना गया। 1977 में जब भिंडरावाले इसका अध्यक्ष चुना गया, तब पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल थे। वहीं, सिखों की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष गुरचरण सिंह तोहड़ा थे। दोनों ने भिंडरावाले को अपना समर्थन दिया था। (दिल्ली उपद्रव की तस्वीर फोटो क्रेडिट-Altaf Qadri/AP)
 

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ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद सिख समुदाय में गुस्सा भड़क उठा। वे स्वर्ण मंदिर को अपवित्र करने को लेकर इंदिरा गांधी से नाराज थे। तब कैप्टन अमरिंदर सिंह भी कांग्रेस के खिलाफ हो उठे थे। खुशवंत सिंह जैसे लेखकों ने अपने अवार्ड लौटा दिए थे। इसी गुस्से का नतीजा था 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या। 
( दिल्ली उपद्रव की तस्वीर फोटो क्रेडिट-Altaf Qadri/AP)

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इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिखों के प्रति हिंसा फैल गई। हालात जैसे-तैसे काबू में आए। लेकिन खालिस्तान खत्म नहीं हुआ। 23 जून 1985 को एयर इंडिया के विमान में विस्फोट करके 329 लोगों को मार दिया गया।  10 अगस्त 1986 को पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल एएस वैद्य की खालिस्तान समर्थक  उग्रवादियों ने हत्या कर दी। 31 अगस्त 1995 को पंजाब सिविल सचिवालय के पास हुए बम विस्फोट में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी गई थी। अब किसान आंदोलन की आड़ में दिल्ली में हिंसा फैलाकर खालिस्तानी समर्थकों ने फिर से अलर्ट किया है।
(84 के दंगे की तस्वीर)

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