12 दिन जिंदा रही थी बेटी, लेकिन मैं उसे पानी तक नहीं पिला सकी...जब निर्भया की मां ने बताई पूरी कहानी
नई दिल्ली. 7 साल के लंबे इंतजार के बाद निर्भया से दरिंदगी करने वाले चारों दोषियों (मुकेश, विनय, अक्षय और पवन) को 20 मार्च की सुबह 5.30 बजे फांसी दे दी गई। हालांकि, इससे पहले गुरुवार को दोषियों ने फांसी को टालने के लिए तमाम दांव पेंच चले। लेकिन सभी फेल हो गए। पवन जल्लाद ने तिहाड़ जेल में चारों दोषियों को फांसी पर लटकाया। निर्भया की मां दोषियों को सजा दिलाने के लिए 7 साल तक कोर्ट के चक्कर काटे। हर बार उम्मीद जगती फिर किसी कानूनी दांवपेंच इस उम्मीद पर पानी फेर देता। जब-जब निर्भया की मां कोर्ट पहुंचती तो उन्हें दिसंबर 2012 में हुई इस घटना की पूरी याद आ जाती। फांसी से कुछ दिन पहले एक इंटरव्यू में निर्भया की मां आशा देवी का दर्द सामने आया था।
निर्भया की मां का छलका दर्दः निर्भया की मां आशा देवी ने एक टीवी इंटरव्यू में अपनी बेटी के साथ हुई दरिंदगी को याद करते हुए कहा था कि उन्हें आज भी वह वक्त नहीं भूलता है जब हादसे के बाद अस्पताल में पहली बार उन्होंने अपनी बेटी को देखा था।
16 दिसंबर 2012 को बेटी ने दो-तीन घंटे में लौटने का वादा किया था लेकिन जब वह 4-5 घंटे बाद भी नहीं लौटी तो आशा देवी ने उसे कॉल किया था। जब उसने फोन नहीं उठाया तो परिजनों ने उसकी तलाश शुरू की थी।
कई घंटों बाद उन्हें सूचना मिली थी कि उनकी बेटी को सफदरजंग हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है। जब परिवार के साथ आशा देवी अस्पताल पहुंची तो उन्हें देखकर निर्भया रोने लगी थी।
आशा देवी बताती हैं कि उनकी बेटी खून से लथपथ थी। उस वक्त अपनी बेटी के साथ हुई दरिंदगी का अहसास भी नही था। हमें बताया गया कि 6 लोगों ने उसके साथ कुछ गलत किया है।
होश में आने के बाद मांगा था पानीः इंटरव्यू के दौरान निर्भया की मां ने बताया कि उनकी बेटी की हालात बेहद खराब थी और वह भगवान से प्रार्थना कर रहीं थी कि वह जल्द ठीक हो जाए। कुछ दिनों बाद निर्भया को होश आया और उसने सबसे पहले पानी मांगा, लेकिन वह उस हालत में नहीं थी कि पानी पी सके।
आशा देवी कहती हैं 'आज भी मैं इस पछतावे के साथ जी रहीं हूं कि मेरी बेटी 10-12 दिनों तक जिंदा रही लेकिन मैं उसे पानी की एक बूंद भी नहीं पिला सकी। उस दर्द के साथ मैं आज भी जी रही हूं।'
कुछ इस तरह हुई थी दरिंदगीः निर्भया से दरिंदगी करने वाले आरोपियों ने चेहरे पर दांत से काटा था। छाती और गले पर नाखून से काटने के निशान मिले थे। इतना ही नहीं पेट पर नुकीले हथियार से गंभीर चोट लगा हुआ था।
वहीं, इलाज कर रहे डॉक्टरों को प्राइवेट पार्ट्स पर तेज चोट के निशान लोहे की रॉड शरीर के अंदर डाले जाने के जख्म मिले थे। जिसके कारण बच्चेदानी का कुछ हिस्सा प्रभावित हुआ था। वहीं, रॉड की वजह से छोटी आंत पूरी तरह से बाहर आ गई थी। जबकि बड़ी आंत का भी काफी हिस्सा प्रभावित हुआ था। (इसी बस में हुई थी निर्भया के साथ दरिंदगी।))
एक दोषी ने जेल में लगा ली फांसीः निर्भया के साथ दरिंदगी 6 लोगों ने की थी। इस मामले में कोर्ट ने 5 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। और 6 वां दोषी नाबालिग था, जिसके कारण उसे तीन साल के सुधार गृह भेजा दिया गया था। जहां से वह अब छूट चुका है।
निर्भया गैंगरेप का मुख्य दोषी रामसिंह ने फांसी की सजा पाने के बाद तिहाड़ जेल में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। शेष बचे 4 दोषियों को फांसी पर लटकाया गया।
कौन हैं निर्भया के चारों दोषी? निर्भया (Nirbhaya) के पहले दोषी का नाम अक्षय ठाकुर था। यह बिहार का रहने वाला था। इसने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और दिल्ली चला आया। शादी के बाद ही 2011 में दिल्ली आया था। यहां वह राम सिंह से मिला। घर पर इस पत्नी और एक बच्चा है।
दूसरे दोषी को नाम मुकेश सिंह था। यह बस क्लीनर का काम करता था। जिस रात गैंगरेप की यह घटना हुई थी उस वक्त मुकेश सिंह बस में ही सवार था।
गैंगरेप के बाद मुकेश ने निर्भया और उसके दोस्त को बुरी तरह पीटा था। तीसरा दोषी पवन गुप्ता था। पवन दिल्ली में फल बेंचने का काम करता था। वारदात वाली रात वह बस में मौजूद था। पवन जेल में रहकर ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था। चौथा दोषी विनय शर्मा था। विनय जिम ट्रेनर का काम करता था। वारदात वाली रात विनय बस चला रहा था। इसने पिछले साल जेल के अंदर आत्महत्या की कोशिश की थी लेकिन बच गया।
दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका बस स्टॉप पर 16-17 दिसंबर 2012 की रात पैरामेडिकल की छात्रा अपने दोस्त को साथ एक प्राइवेट बस में चढ़ी। उस वक्त पहले से ही ड्राइवर सहित 6 लोग बस में सवार थे। किसी बात पर छात्रा के दोस्त और बस के स्टाफ से विवाद हुआ, जिसके बाद चलती बस में छात्रा से गैंगरेप किया गया। लोहे की रॉड से क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं।
दरिंदों ने निर्भया से दरिंदगी तो की ही इसके साथ ही उसके दोस्त को भी बेरहमी से पीटा। बलात्कारियों ने दोनों को महिपालपुर में सड़क किनारे फेंक दिया गया। पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में चला, सुधार न होने पर सिंगापुर भेजा गया। घटना के 13वें दिन 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में छात्रा की मौत हो गई।