Indian Men's Hockey Team के 16 हीरोः किसी ने 16 की उम्र में घर छोड़ा-किसी के पास नहीं थे 1 टाइम खाने के पैसे

स्पोर्ट्स डेस्क: टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympics 2020) में गुरुवार को भारत ने इतिहास रच दिया। जर्मनी (India vs Germany) के साथ हुए कांस्य पदक मुकाबले में भारत ने 5-4 से शानदार जीत दर्ज की और 41 साल बाद भारत को हॉकी में मेडल दिलाया। भारतीय हॉकी टीम ने आखिरी बार मास्को ओलंपिक खेल-1980 में गोल्ड मेडल जीता था। आज भारत ने एक बार फिर इतिहास रचा और ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। आइए आज हम आपको बताते हैं, भारतीय टीम को ये जीत दिलाने वाले 16 हीरोज के बारे में....

Asianet News Hindi | Published : Aug 5, 2021 5:39 AM IST

116
Indian Men's Hockey Team के 16 हीरोः किसी ने 16 की उम्र में घर छोड़ा-किसी के पास नहीं थे 1 टाइम खाने के पैसे

मनप्रीत सिंह संधू भारत की पुरुष हॉकी टीम के कप्तान हैं। उनकी कप्तानी में ही भारत ने 41 साल बाद ये इतिहास रचा है। उनकी कप्तानी में भारतीय टीम एशिया कप और एशियन चैम्पियंस ट्रॉफी में गोल्ड, चैम्पियंस ट्रॉफी में सिल्वर और 2018 एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीत चुकी है। मनप्रीत सिंह ने 10 साल की उम्र में हॉकी स्टिक थाम ली थी। उन्हें हॉकी खेलने की प्रेरणा पूर्व कप्तान परगट सिंह से मिली थी।
 

216

मनदीप सिंह एक भारतीय पेशेवर फील्ड हॉकी खिलाड़ी हैं, जो वर्तमान में फॉरवर्ड के रूप में खेलते हैं। जालंधर के 25 साल के मनदीप पिछले साल कोरोना संक्रमित भी हो गए थे। 

316

वरुण कुमार एक भारतीय पेशेवर फील्ड हॉकी खिलाड़ी हैं जो डिफेंडर के रूप में खेलते हैं। जब वह स्कूल में थे, तभी से उन्होंने हॉकी खेलना शुरू कर दिया था। 2012 में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन किया था।

416

सुरेंदर कुमार टीम के लिए डिफेंडर के रूप में खेलते हैं। वह 2016 के समर ओलंपिक में भाग लेने वाली राष्ट्रीय टीम का हिस्सा थे। बचपन में सुरेंदर ने पिता से हॉकी स्टिक की मांग की लेकिन उन्होंने हॉकी स्टिक खरीदने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उनके पड़ोसी ने 500 रुपये की हॉकी खरीदकर दी और सुरेंदर ने हॉकी खेलना शुरू किया।

516

सुमित हॉकी टीम के लिए मिडफील्डर के रूप में खेलते हैं। वह 2016 पुरुष हॉकी जूनियर विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे। सुमित का हॉकी खिलाड़ी बनने का सपना काफी मुश्किलों भरा रहा है। सोनीपत के गांव कुराड़ के हॉकी खिलाड़ी सुमित कुमार ने जिस वक्त ये सपना देखा उस वक्त घर में खाने तक के लिए पैसे नहीं थे। 2004-2005 के दौरान सुमित के बड़े भाई अमित जूते मिलने का लालच देकर उनको गांव में ही चल रही हॉकी अकादमी के ग्राउंड तक लेकर पहुंचे थे। कोच ने जूते व हॉकी स्टिक देने का वादा किया तो लालच में सुमित हर रोज ग्राउंड तक पहुंचने लगे। देखते ही देखते हॉकी खेलना उनका सपना बन गया।

616

जर्मनी के खिलाफ सिमरनजीत सिंह ने भारत के लिए पहला गोल दागकर टीम को बराबरी दिलवाई। वह वैसे तो बटाला के रहने वाले सिमरजीत का परिवार अब उत्तर प्रदेश में रहता है।  
 

716

दिलप्रीत सिंह हॉकी टीम के लिए फॉरवर्ड के रूप में खेलते हैं। दिलप्रीत के पिता 3 साल की उम्र से ही उन्हें हॉकी के मैदान पर ले जाने लगे और वहीं से उन्हें इस खेल में दिलचस्पी आई। उन्होंने अपने हॉकी करियर की शुरुआत अंडर-21 टीम के साथ की। इसके बाद साल 2018 में उन्हें सीनियर टीम में जगह मिली। 

816

शमशेर सिंह हॉकी में फॉरवर्ड के रूप में खेलते हैं। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह हॉकी में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। उनके पिता हरदेव सिंह एक किसान थे और मां हाउसवाइफ थी। अटारी गांव पाकिस्तान-भारत के अमृतसर बॉर्डर पर रहने वाले शमशेर ने शौक के तौर पर हॉकी खेलना शुरू किया था। धीरे-धीरे इस खेल में उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई और उन्होंने इसे अपना जनून बना लिया।

916

हरमनप्रीत सिंह अमृतसर के जंडियाला गुरु के छोटे से गांव तीमोवाल के रहने वाले हैं। भारतीय टीम के ड्रैगफ्लिकर ने जर्मनी के खिलाफ इस मैच में पेनाल्टी कॉर्नर को गोल में बदलकर भारत को 3-3 की बराबरी ला खड़ा किया और यहां से भारत बढ़त बनाती गई। हरमनप्रीत सिंह अब तक देश के लिए 120 करीब मैच खेल चुके हैं। जब वह 10 साल के थे तभी से उन्होंने अपने पिता के साथ खेतों पर जाकर ट्रैक्टर चलाना शुरू कर दिया था। ट्रैक्टर चलाने के कारण उनके हाथ काफी मजबूत हो गए थे जो आगे चलकर उनके शानदार ड्रैगफ्लिकर बनने की बड़ी वजह बना।

1016

हार्दिक सिंह ने भी जर्मनी के खिलाफ शानदार गोल किया है। वह पंजाब के जालंधर के रहने वाले हैं। उनका पूरा परिवार हॉकी से ताल्लुख रखता है। उनके रिश्तेदार पूर्व ड्रैग फ्लिकर जुगराज सिंह ने उन्हें प्रेरित किया।

1116

शांगलाकपम नीलकांत शर्मा टीम के लिए मिडफील्डर के रूप में खेलते हैं। नीलकांत के पिता पंडित थे और घर में बहुत तंगी रहती थी। उन्होंने 16 साल की उम्र में हॉकी के लिए घर छोड़ दिया था और यह तय कर लिया था कि चाहे जो भी वह खाली हाथ नहीं लौटेंगे।

1216

पंजाब के फरीदकोट के रहने वाले रूपिंदर पाल सिंह ने जर्मनी के खिलाफ शानदार गोल किया और टोक्यो 2020 में अपने नाम कुल 4 गोल किए हैं। बेहतरीन डैगफ्लिकर रुपिंदर एक समय पैसे बचाने के लिए केवल एक ही समय खाना खाया करते थे। तमाम परेशानियों के बावजूद और अपने भाई के त्याग को उन्होंने व्यर्थ नहीं जाने दिया और न सिर्फ टीम में जगह बनाई बल्कि खुद को भारतीय टीम का एक अटूट हिस्सा बनाया।

1316

विवेक सागर प्रसाद टीम के लिए मिडफील्डर के रूप में खेलते हैं। जनवरी 2018 में वह 17 साल, 10 महीने और 22 दिनों में भारत के लिए डेब्यू करने वाले दूसरे सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने थे। मप्र के रहने वाले विवेक को  2019 के लिए राइजिंग स्टार ऑफ द ईयर चुना गया था।

1416

श्रीजेश परत्तु रवींद्रन एक गोलकीपर और पूर्व कप्तान हैं। जर्मनी के खिलाफ उन्होंने बैक-टू-बैक कई पेनाल्टी कॉर्नर को गोल में तब्दील होने से रोका। वे एक किसान फैमिली से आते हैं। वे साल 2006 से भारतीय हॉकी टीम के नियमित सदस्य है और हमेशा एक दीवार की तरह खड़े रहते हैं।
 

1516

गुरजंत सिंह भारतीय टीम में फॉरवर्ड के रूप में खेलते हैं। गुरजंत सिंह के परिवार में कोई हॉकी नहीं खेलता था। हालांकि उनके ननिहाल में हॉकी का बहुत क्रेज था। वह जब अपने ननिहाल बाटाला जाते थे तो वहां अपने भाईयों को खेलते देखते थे। एक बार वह वहां गए और तीन महीने वही रहकर हॉकी खेला और यही से उन्होंने इसे अपने करियर के रूप में चुना।

1616

अमित रोहिदास भारतीय टीम के लिए डिफेंडर के रूप में खेलते हैं। वह ओडिशा के सुंदरगढ़ में उसी गांव के रहने वाले हैं जहां तीन बार के ओलिंपियन और पूर्व भारतीय कप्तान दिलीप टिर्की का जन्म हुआ था। उन्हीं को देखकर अमित को हॉकी खेलने की प्रेरणा मिली। 

Share this Photo Gallery
click me!
Recommended Photos