गुजरात दंगा: 17 साल पहले और अब, डर के आगे जिंदगी है
अहमदाबाद. इनमें से कुछ तस्वीरें 17 साल पहले यानी 2002 में हुए दंगों के दौरान की हैं, तो कुछ ताजा। आप जब भी इंटनेट पर गुजरात दंगों के बारे में कुछ भी सर्च करेंगे ,तो अशोक मोची की दिल दहलाने वाली, जबकि कुतुबुद्दीन अंसारी की ह्रदयविदारक तस्वीर सामने आ जाएगी। ये वो दो तस्वीरें हैं, जो गुजरात दंगों के भयानक मंजर और बाद के दर्द की पूरी कहानी बयां कर देती हैं। कहते हैं कि जब तक किसी के दिल पर नहीं बीतती, तब तक वो दूसरों का दर्द नहीं समझ सकता। गुजरात दंगे ने कइयो के परिवार खत्म कर दिए, तो तमाम लोगों को जिंदगीभर का दु:ख विरासत में दे दिया। लेकिन अशोक मोची और कुतुबुद्दीन की नई तस्वीर बयां करती है कि 'अंत भला, तो सब भला!' अशोक ने जब जूते-चप्पलों की शॉप खोली, तो उसका उद्घाटन करके अंसारी को बुलाया। आइए जानते हैं, क्या है इसके पीछे की कहानी..
अशोक मोची और कुतुबुद्दीन अंसारी एक ही मार्केट में शॉप चलाते हैं। पिछले दिनों जब अशोक ने जूते-चप्पलों की अपनी शॉप खोली, तो उसका फीता काटने अंसारी को बुलाया। मकसद लोग अपने किए पर पछताएं। जो हुआ, उसे न दुहराएं।
गुजरात दंगा 2002 की यह तस्वीर अशोक मोची की है। हाथ में तलवार, माथे पर भगवा पट्टी, आंखों में उतराता खून और पीछे धूं-धूं करके जलता शहर। यह तस्वीर दंगों का खौफनाक चेहरा बनकर सामने आई थी। लेकिन दंगों के बाद अशोक मोची जब भी अपनी इस तस्वीर को देखते, तो उन्हें खुद पर शर्म आती। धर्म के नाम पर उनसे ऐसा अधर्म क्यो हुआ? धीरे-धीरे अशोक मोची ने खुद को बदला। एक नेक इंसान के तौर पर ढालना शुरू किया। आज अशोक मोची साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बनकर सामने आए हैं। कैसे पहले जानते हैं दूसरी तस्वीर यानी कुतुबुद्दीन अंसारी के बारे में...
गुजरात दंगों के दौरान दंगाइयों से रहम की भीख मांगते कुतुबुद्दीन अंसारी की इस तस्वीर ने सारी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। यह अकेली तस्वीर गुजरात दंगों का खौफ बयां करने के लिए काफी थी। उंगुली में पट्टी और शर्ट पर खून के छींटे। शायद अंसारी को भी उम्मीद नहीं होगी कि दंगाई उन्हें छोड़ देंगे। अंसारी के मन में हिंदुओं के प्रति नफरत हो सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज अंसारी और अशोक मोची सगे भाइयों की तरह पेश आते हैं।
बताते हैं कि दंगों के बाद अशोक फिर से अपने कामधंधे में लग गए। वे जूते-चप्पल सुधारने लगे। वहीं कुतुबुद्दीन अंसारी कपड़े सिलने लगे। हालांकि दोनों के जेहन में दंगों की तस्वीरें अब भी जिंदा थीं। लेकिन कहते हैं कि 'बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेय!' दोनों ने भी खुद को बदला और आज एक ही मार्केट में अपनी-अपनी दुकानें चला रहे हैं।
कुछ समय पहले तक अशोक मोची दूसरों का दुकान पर काम करते थे। वहीं कुतुबुद्दीन अंसारी दंगों के बाद पश्चिम बंगाल चले गए थे। आज दोनों एक ही मार्केट में अपनी-अपनी दुकान चलाते हैं। अशोक ने अपनी शॉप का उद्घाटनन अंसारी से कराकर एक मिसाल पेश कर दी।
अशोक मोची ने अपनी दुकान का नाम‘एकता चप्पल घर’ रखा है। मकसद लोग अपनी गलतियों को न दुहराएं। मिलजुलकर रहें। जब कुतुबुद्दीन अंसारी अशोक की दुकान के उद्घाटन का फीता काटने पहुंचे, तो दोनों यूं लगे जैसे सगे भाई हों।