900 साल पुरानी इस इमारत में मिलीं थी चांदी की ईंटे, अब सामने आई रहस्यमयी सुरंग

भुवनेश्वर. श्रीमंदिर से सटे रहस्यों से भरे एमार मठ को आखिरकार ध्वस्त कर दिया गया। इस मठ में कुछ साल पहले चांदी की ईंटें मिली थी। माना जाता है कि भवन के नीचे सांपों की बस्ती हो सकती है। यह प्राचीन मठ करीब 900 साल पुराना माना जाता है। श्रीमंदिर की सुरक्षा एवं श्रीक्षेत्र धाम के विकास के मद्देनजर सरकार ने इस मठ को गिराने का आदेश दिया था। मठ को गिराने के लिए पुरी प्रशासन ने कड़ी चौकसी बरती। यह मठ सबसे अधिक धनी माना जाता रहा है। हालांकि यहां से दान भी काफी किया जाता रहा है। बुधवार से इसे तोड़ने का काम शुरू हुआ था। 4 मंजिला इस मठ को तोड़न के लिए 10 से अधिक ब्रेकर और बुल्डोजर का इस्तेमाल किया जा रहा है। वहीं बड़ी संख्या में पुलिस बल भी तैनात किया गया है।

Asianet News Hindi | Published : Aug 30, 2019 6:25 AM IST
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900 साल पुरानी इस इमारत में मिलीं थी चांदी की ईंटे, अब सामने आई रहस्यमयी सुरंग
एमार मठ के अंदर सुरंग मिली है। इसे लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं। कोई कह रहा है कि तलघर में अकूत धन-सम्पदा भरी हो सकती है। दरअसल, इसके पीछे एक पुरानी कहानी मानी जा रही है। कुछ समय पहले मठ से 400 से अधिक चांदी की ईंटें मिली थीं। 12वीं सदी का यह मठ सबसे अधिक सम्पन्न माना जाता रहा है। हालांकि पुरी के एडिशनल कलेक्टर विनय दास इन अफवाहों का खंडन करते हैं। उनका तर्क है कि तलघर में खाने-पीने की चीजों का भंडार किया जाता था। उधर, मठ तोड़े जाने का विरोध भी हो रहा है। मठ के महंत राजगोपाल रामानुज दास मठ विरोधस्वरूप ध्यान मुद्रा में बैठ गए हैं।
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इतिहासकारों की मानें तो श्रीसंप्रदाय (रामानुज संप्रदाय) के आदि प्रचारक श्रीरामानुज 900 साल पहले पुरी आए थे। श्रीरामानुज ने 1122 से 1137 के बीच यहां मठों का निर्माण कराया था। हालांकि वक्त के साथ मठ में कई तरह के बदलाव आते गए। पुरी में रामनुज ने दो मठ बनवाए थे। इनमें एक मठ का नाम उनके ही नाम पर, जबकि दूसरे का नामकरण शिष्य गोविन्द के नाम पर रखा था। एक मठ बासेलीसाही, जबकि दूसरा सिंहद्वार के सामने है। सिंहद्वार वाले मठ को एमार मठ कहते हैं। एमार मठ के मंदिर में श्रीरघुनाथजी की मूर्ति विराजी है।
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यह मठ दान-दक्षिणा और सहायता में भी सबसे आगे रहा है। बताते हैं कि जब गदाधर रामानुज इस मठ के महंत थे, तब उड़ीसा में आपदा आई थी। तब मठ ने लोगों के खाने-पीने का खासा प्रबंध किया था। श्रीमंदिर के प्रबंधन में भी यह मठ काफी योगदान देता रहा है। हालांकि अब मठ इतिहास में दफन हो जाएगा।
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