2 महीने तक फिर सुर्खियों में रहेगा महिलाओं की 'नो एंट्री' वाला यह मंदिर
तिरुवनंतपुरम(केरल).मासिक धर्म वाली महिलाओं( आमतौर पर10 से 50 वर्ष) को मंदिर में प्रवेश न देने के कारण सुर्खियों में बने सबरीमाला मंदिर के पट हर साल की तरह इस बार भी शनिवार शाम को खोल दिए गए। यहां दर्शन करने लाखों श्रद्धालु पहुंचेंगे। यह तीर्थ यात्रा मकर संक्रांति तक यानी 2 महीने चलेगा। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटा दिया था। यानी मंदिर में किसी भी उम्र की महिलाओं को प्रवेश से नहीं रोका जा सकता है। यह और बात है कि अभी भी ज्यादातर महिलाएं मंदिर में प्रवेश से दूरी बनाए हुए हैं। एक सामाजिक कार्यकर्ता तृप्ति देसाई ने यह मुद्दा उठाया था। उन्होंने ही कोर्ट में इसके खिलाफ आवाज उठाई थी। तृप्ति देसाई ने कहा कि केरल सरकार ने महिलाओं को सुरक्षा देने की बात कही थी, लेकिन उन्हें सुरक्षा नहीं मिली। वहीं अब भी महिलाओं को अंदर जाने से रोका जा रहा है। खैर, इस विवादित मुद्दे से परे आइए जानते हैं सबरीमाला की कहानी...
Asianet News Hindi | Published : Nov 18, 2019 7:37 AM IST / Updated: Nov 18 2019, 01:15 PM IST
इन दिनों लाखों श्रद्धालु नंगे पैर पैदल सैकड़ों मील की यात्रा करके यहां पहुंचते हैं। भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार केरल के तिरुवनंतपुर जिले में स्थित सबरीमाला मंदिर को दुनिया के एक बड़े तीर्थ स्थल के तौर पर जाना जाता है। इसमें भगवान अयप्पा स्वामी विराजे हैं। सबरीमाला का नाम शबरी के नाम पर पड़ा है। इसका जिक्र रामायण में भी मिलता है। यह मंदिर 18 पहाड़ियों के बीच बना है।
कहते हैं कि इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में एक दिव्य ज्योति जलते दिखाई देती है। इसी ज्योति को देखने यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां मकर संक्रांति के 2 महीने पहले से तीर्थ यात्रा शुरू होती है। मान्यता है कि यह दिव्य ज्योति खुद भगवान अयप्पा जलाते हैं। इसीलिए इसे मकर ज्योति का नाम दिया गया है।
कहते हैं कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे। इसलिए मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जाता। यानी यहां उन बच्चियों को ही प्रवेश दिया जाता है, जिनका मासिक धर्म शुरू नहीं हुआ होता है। इसके बाद वे बुजुर्ग महिलाएं भी अंदर जा सकती हैं, जो मासिक धर्म से मुक्त हो गई हों।
भगवान अयप्पा को 'हरिहरपुत्र' कहा जाता है। यह विष्णु और शिव के पुत्र कहे जाते हैं। इन 2 महीनों की तीर्थ यात्रा के दौरान भक्तों को मांस-मदिरा सब छोड़ना पड़ता है।
मान्यता है कि श्रद्धालु अगर तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर व्रत रखें और अयप्पा के दर्शन करें, तो उनकी मनोकामना पूरी होती है।