'संजय की मम्मी...बड़ी निकम्मी' और 'नसबंदी के तीन दलाल, इंदिरा....संजय...बंसीलाल'...ये माजरा है क्या?

भोपाल, मध्य प्रदेश. इंदिरा गांधी ने अपनी 'कुर्सी' बचाने 26 जून 1975 को भारत में आपातकाल घोषित किया था। जगजाहिर है कि इस दौरान 62 लाख पुरुषों की जबरिया नसबंदी करा दी गई थी। 'आपातकाल' जैसा ही शिगूफा मध्य प्रदेश सरकार ने भी छेड़ा था। यहां बकायदा 'धमकी भरे' अंदाज में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को नसबंदी करने का टॉर्गेट दिया गया था। यह और बात है कि इसकी तुलना इंदिरा गांधी के 'आपातकाल' से की जाने लगी और विवाद बढ़ा...तब सरकार बैकफुट पर आ गई। आदेश वापस ले लिया गया...और इसकी गाज गिरा दी 'राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन' की संचालक IAS छवि भारद्वाज पर। उन्हें पद से हटा दिया गया, जबकि इससे पहले इस IAS की 'छवि' हमेशा जनमानस में लोकप्रिय रही। अब फिर से सामने आया है कि हरदा जिले के स्वास्थ्य विभाग ने 'नसबंदी अभियान' को सक्सेस करने एक नया आदेश निकाला है। यह अलग बात है कि इस बार आदेश में धमकी नहीं, इनाम देने की घोषणा की गई है। पहले जानते हैं कि आपातकाल के दौरान आखिर ऐसा क्या हुआ था कि इंदिरा गांधी सहित उनके बेटे संजय गांधी और बाकी सहयोगी देश की जनता के निशाने पर आ गए थे।

Asianet News Hindi | Published : Mar 2, 2020 10:20 AM IST

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'संजय की मम्मी...बड़ी निकम्मी' और 'नसबंदी के तीन दलाल, इंदिरा....संजय...बंसीलाल'...ये माजरा है क्या?
आपातकाल के दौरान दो नारे तेजी से वायरल हुए थे। पहला-'जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मरद गया नसबंदी में!' दूसरा-'नसबंदी के तीन दलाल-इंदिरा, संजय बंसीलाल। बता दें कि 26 जून, 1975 की रात इंदिरा गांधी ने सत्ता खोने के डर से आपातकाल की घोषणा की थी। इस दौरान जनसंख्या नियंत्रण करने पुरुषों की जबर्दस्ती नसबंदी कराई गई थी। करीब 62 लाख पुरुषों की नसबंदी की गई थी। उन्हें पकड़-पकड़कर शिविर में लाया गया था। इस दौरान कई लोगों की मौत भी हो गई थी। इस क्रूर नसबंदी अभियान का नेतृत्व कर रहे थे इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी। संजय गांधी के खास थे चौधरी बंसीलाल।
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26 अगस्त, 1927 को हरियाणा में जन्मे बंसीलाल को 'आधुनिक हरियाणा' का जनक माना जाता है। लेकिन आपातकाल के दौरान लगा एक दाग वे जिंदगीभर अपने माथे से नहीं धो पाए। आपातकाल के दौरान बंसीलाल को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी का करीबी विश्वासपात्र माना जाता था। वे दिसंबर 1975 से मार्च 1977 तक रक्षामंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने पुरुषों की नसबंदी कराने के क्रूर अभियान में पूरी भागीदारी की थी। बंसीलाल की मृत्यु 28 मार्च, 2006 में हुई थी।
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नसबंदी और बंसीलाल से जुड़ा एक किस्सा काफी चर्चित रहा है। आपातकाल खत्म होने के बाद बंसीसाल हरियाणा के दौरे पर निकले थे। वहां एक पंचायत के दौरान वे लोगों से बातचीत कर रहे थे। तभी एक युवक खड़ा हुआ। उसने सबके सामने अपनी धोती खोल दी। उसने बताया कि वो कुंवारा था, फिर भी जबर्दस्ती पकड़कर उसे शिविर में ले जाया गया और नसबंदी कर दी गई। नसबंदी के दौरान बंसीलाल और संजय गांधी को लोग एक विलेन के तौर पर देखने लगे थे।
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आपातकाल 1975-77 के बीच करीब 21 महीने लागू रहा था। इस अवधि को समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था। इसके बाद के आम चुनाव में विपक्ष ने एक नारा दिया था-'द्वार खड़ी औरत चिल्लाए..मेरा मरद गया नसबंदी में!'
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आपातकाल के दौरान पुरुषों की नसबंदी कराने का क्रूर आइडिया संजय गांधी का था। तब उनके हर कदम पर मेनका गांधी भी साथ थीं। आपातकाल में चुनाव स्थगित कर दिए गए थे। इंदिरा गांधी के सभी राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया था। प्रेस की आजादी पर पाबंदी लगा दी गई थी। इसे लेकर देशभर में जनआक्रोश फैल गया था।
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अब मध्य प्रदेश के हरदा में लालच: बताते हैं कि आपातकाल के दौरान पुरुषों को नसबंदी कराने डराने-धमकाने के अलावा प्रलोभन भी दिया गया था। यही कुछ मध्य प्रदेश में देखने को मिल रहा है। पहले स्वास्थ्य कर्मचारियों को धमकाकर टार्गेट पूरा करने को कहा गया। विवाद बढ़ने पर यह आदेश वापस लिया गया। अब प्रलोभन दिया जा रहा है। हरदा में जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) ने 28 फरवरी को एक आदेश जारी किया है। इसमें नसबंदी कराने वाले अध्यापकों को तय दिनांक से ग्रीनकार्ड वेतन वृद्धि का लाभ देने की बात कही गई है।
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मध्य प्रदेश सरकार ने ऐसे धमकाया था: 'राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन' की संचालक IAS छवि भारद्वाज ने पुरुष नसबंदी को लेकर एक विभागीय आदेश जारी किया था। इसमें कर्मचारियों को हर महीने पुरुषों की नसबंदी कराने का टार्गेट दिया था। ऐसा न करने पर उनका वेतन काटने या नौकरी पर संकट आने की बात लिखी गई थी। इस आदेश से हड़कंप मच गया था। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे आदेश की निंदा करते हुए सरकार पर 'आपातकाल' दुहराने का आरोप लगा दिया था। हालांकि विवाद बढ़ता देख, आदेश वापस ले लिया गया था। इसके बाद छवि भारद्वाज को हटा दिया था। संभवत: इस लेडी IAS की सेवा में ऐसा पहला मौका होगा, जब उन्हें ऐसे हालात का सामना करना पड़ा है।
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इसलिए लगाया था आपातकाल: आपातकाल के बीज 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में पड़ गए थे। इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट से राजनारायण को हराया था। जयप्रकाश नारायण के सबसे ताकतवर साथी राजनारायण ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर 6 साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाई थी। इससे इंदिरा गांधी ने अपने खिलाफ माना और आपातकाल की घोषणा कर दी।
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आपातकाल से पहले इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग कराया था। तब मोहम्मद अली जिन्ना के सचिव रहे मुइन उल हक चौधरी ने इंदिरा गांधी के रबर स्टाम्प कहे जाने वाले तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के साथ मिलकर असम में 20 लाख से अधिक बांग्लाभाषी मुसलमानों को बसाया था। इसका विरोध आज तक देखा जाता है।
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आपातकाल को लेकर देशभर में जनआक्रोश फैल गया था। 1977 को हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी को बुरी तरह शिकस्त खानी पड़ी थी। यह और बात है कि इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक विरोधियों को दमन करने उन्हें जेलों में ठुंसवा दिया था। आंदोलनों को कुचलने पूरी सरकारी मशीनरी लगा दी थी।
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आपातकाल के दौरान देशभर में जनअंदोलनों का दौर-सा चल पड़ा था। जेपी नारायण के ताकतवर साथी राजनारायण को इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़ा होने की प्रेरणा अपने प्रिय नेता डॉ. राममनोहर लोहिया से मिली थी। (1975 का मामला: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद बाहर निकलते हुए राजनारायण और शांति भूषण)
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