मजदूरी करके घर चलाती थी यह महिला, 3 साल पहले 4000 की एक मशीन ने बदल दी किस्मत

Published : Sep 09, 2020, 11:01 AM ISTUpdated : Sep 09, 2020, 01:06 PM IST

पटियाला, पंजाब. कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती! इस महिला ने यही साबित कर दिखाया। पटियाला के एक छोटे से गांव मवी सपां की रहने वालीं शिंदरपाल कौर की कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है, जो बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं। जिन्हें समझ नहीं आ रहा कि क्या काम करना चाहिए? हर काम की शुरुआत करनी पड़ती है। कभी मजदूरी और सिलाई-कढ़ाई करके अपने परिवार का पेट पालने वालीं शिदरपाल आज 30 से ज्यादा महिलाओं के रोजगार का जरिया बन गई हैं। ये महिला कभी दिन में 100-200 रुपए से ज्यादा नहीं कमा पाती थी, आज हर 10 दिनों में 60000 रुपए का मुनाफ कमा रही है। दो बच्चों की मां शिंदरपाल ने यह साबित किया कि अगर आप काम से जी नहीं चुराते,तो कुछ भी संभव है। 4000 रुपए कर्ज से शुरू किया था काम-धंधा...  

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मजदूरी करके घर चलाती थी यह महिला, 3 साल पहले 4000 की एक मशीन ने बदल दी किस्मत

शिंदरपाल की सक्सेस स्टोरी शुरू होती है तीन साल पहले से, जब उन्होंन बैंक से 4000 रुपए का लोन लिया था। वे माता गुजरी सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़ गई थीं। इसके बाद उन्होंने चारा काटने की मशीन खरीदी। यह काम उनका ठीकठाक चला। इसके बाद उन्होंने एक सेकंड हेंड थ्री व्हीलर खरीदी। वे और कुछ बेहतर करना चाहती थीं। इन सब कामों के अलावा उन्होंने फुलकारी और खिलौने बनाने की ट्रेनिंग ली।

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शिंदरपाल बताती हैं कि वे फुलकारी काम और खिलौनों को लेकर मेलों में जाने लगीं। उनका यह काम लोगों को पसंद आया। इससे उनकी अच्छी-खासी कमाई होने लगी। शिंदरपाल ने पैसे बचाए और एक छोटा-सा खेत खरीदा। इसे उन्होंने खेतीबाड़ी के लिए किराये पर दे दिया।

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काम-धंधे के बीच शिंदरपाल ने होटल मैनेजमेंट की ट्रेनिंग भी ले ली। उन्हें सरकारी मीटिंगों में खाना उपलब्ध कराने का काम मिलने लगा। हाल में पटियाला में हुए हेरिटेज फेस्टिबल में उन्होंने 2 लाख रुपए से ज्यादा की कमाई की। यह उनके लिए उत्साह बढ़ाने वाला हुआ।

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 शिंदरपाल उन महिलाओं में शुमार हैं, जिन्होंने रुकना नहीं सीखा। काम-धंधे के बीच उन्होंने 10वीं पास की। इस कामयाबी को देखते हुए उन्हें राज्यस्तरीय बैंकर्स कमेटी को संबोधित करने का अवसर मिला। शिंदरपाल अपने गांव में अब सुच्चा मोती महिला ग्राम संगठन नाम का समूह चलाती हैं। इससे 31 महिलाएं जुड़ी हैं।

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फिरोजपुर, पंजाब. यह हैं संतोष रानी। ये गुरुहरसहाय क्षेत्र के गांव मोहन के उताड़ में रहती हैं। संतोष ने लोन लेकर कमर्शियल वाहन खरीदा। अब ये लोडिंग-अनलोडिंग का काम करके इतना कमा रही हैं कि परिवार मजे की जिंदगी गुजार रहा है। संतोष रानी ने एक एनजीओ की मदद से आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना के तहत 5.20 लाख रुपए का लोन लेकर लोडिंग ऑटो खरीदा। अब वे और उनके पति मुख्तयार सब्जी और अन्य तरह के मटेरियल की लोडिंग-अनलोडिंग करते हैं। इससे उनकी इतनी कमाई हो जाती है कि बच्चे स्कूल में ठीक से पढ़ने लगे हैं। घर का खर्च भी आसानी से उठ जाता है। आगे पढ़िए आत्मनिर्भर किसानों की कहानियां...

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रांची, झारखंड. यह कहानी झारखंड के रांची जिले के देवडी गांव है। इसे लोग एलोवेरा विलेज के रूप में जानते हैं। यहां 2 साल पहले तक गांववाले रोटी-रोटी को मोहताज थे। फिर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की एक एक परियोजना के तहत लोगों को एलोवेरा की खेती करने को प्रोत्साहित किया गया। बता दें कि एलोवेरा का एक पौधा 15-30 रुपए तक में बिकता है। इस गांव में अब आयुर्वेद और कास्मेटिक बनाने वालीं कई बड़ी कंपनियां आने लगी हैं। कोरोना काल में सैनिटाइजर की काफी डिमांड बढ़ी है। 

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मुक्तसर, पंजाब. यह हैं फिरोजपुर जिले के गांव सोहनगढ़ रत्तेवाला के रहने वाले एडवोकेट कमलजीत सिंह हेयर। वे पहले वकालात करते थे। हर महीने इनकी इनकम करीब डेढ़ लाख रुपए महीने होती थी। लेकिन एक दिन ये सबकुछ छोड़कर अपने गांव आ गए और खेतीबाड़ी करने लगे।  आज ये अपनी पहली कमाई से कई गुना ज्यादा कमाते हैं। ये जैविक खेती करते हैं। 

 

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