देश में यहां लगता है गिद्धों का मेला, हजारों मील दूर उज्बेकिस्तान, मंगोलिया और रशिया से आते हैं वल्चर

बीकानेर (राजस्थान) :  उज्बेकिस्तान (Uzbekistan) के रेगिस्तान और मंगोलिया (Mongolia), कजाकिस्तान (Kazakhstan), रुस (Russia) की बर्फबारी से हजारों मील दूर सफर कर बड़ी संख्या में गिद्ध (वल्चर) राजस्थान (Rajasthan) के बीकानेर (Bikaner) के जोड़बीड़ में पहुंच चुके हैं। इसी के साथ विदेशी प्रजाति के बाज और चील भी हजारों किलोमीटर का सफर तय कर यहां आए है। इनमें से अधिकांश वल्चर करीब दो हजार किलोमीटर की दूरी तय करके हर साल सर्दियों में बीकानेर आते हैं, कुछ महीने यहां ठहरने के बाद वापस अपने वतन लौट जाते हैं। आइए आपको बताते हैं गिद्धों के यहां का कारण..

Asianet News Hindi | Published : Dec 26, 2021 5:57 AM IST

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देश में यहां लगता है गिद्धों का मेला, हजारों मील दूर उज्बेकिस्तान, मंगोलिया और रशिया से आते हैं वल्चर

जोड़बीड़ को देश का सबसे बड़ा वल्चर सेंटर माना गया है। पिछले 50 सालों से बीकानेर में एक ही जगह मृत पशुओं की डंपिंग की जाती है।, जो गिद्धों के लिए भोजन का सबसे बड़ा केंद्र है। खेजड़ी और जाल के लंबी टहनियों वाले पेड़ों पर सुरक्षित बैठने की जगह मिलने से हर साल यहां सैकड़ों की संख्या में आते हैं। 
 

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जोड़बीड़ में सर्प, नेवला, गोयरा, बड़ी छिपकली समेत कई प्रजाति के रेप्टाइल्स भी खूब हैं। विदेशी चील और बाज को यहां शिकार कर पेट भरने के लिए जमीन पर रेंगकर चलने वाले जीवों और अन्य वन्यजीव मिल जाते है। भोजन के साथ सर्दी के मौसम की अनुकूलता के चलते यह विदेशी पक्षी यहां खींचे चले आते हैं।
 

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इन दिनों में मंगोलिया, कजाकिस्तान और रूस में इतनी जबर्दस्त बर्फबारी होती है कि गिद्धों के लिए संकट खड़ा हो जाता है। जबकि बीकानेर में तापमान पांच से दस डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। इसी कारण गिद्ध वहां से उड़कर करीब दो हजार किलोमीटर की दूरी तय करके बीकानेर आते हैं। ये गिद्ध यहां दिसंबर और जनवरी तक ठहरेंगे। 
 

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गिद्ध की सैटेलाइट टैगिंग की वजह से पहली बार उसके स्थान का खुलासा हुआ है। बुल्गारियन प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ बर्ड के साइंटिस्ट बुल्गारिया निवासी ब्लादमीर और ब्रिटेन के जॉन बर्न साइट ने जुलाई 2021 में 60 दिन के दो गिद्धों की सैटेलाइट टैगिंग की थी। उनके पैर में एक रिंग डाली और पीठ पर GPS के साथ सोलर प्लेट लगा कर उन्हें छोड़ा था। यह टैगिंग काराकुम डेजर्ट में की गई थी।

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टैगिंग की मदद से पता चला कि कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, मंगोलिया व रूस से ये वल्चर अफगानिस्तान (Afghanistan) और पाकिस्तान (Pakistan) को पार कर भारत आते हैं। पिछले दिनों उज्बेकिस्तान से 1857 किलोमीटर की यात्रा तय करके ये गिद्ध बीकानेर तक पहुंचे थे। जिन दो गिद्धों की सैटेलाइट टैगिंग की गई थी वे उज्बेकिस्तान से रवाना हुए। इनमें एक पाकिस्तान के करांची में ठहर गया, जबकि दूसरा बीकानेर के जोड़बीड़ में आ गया। 

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बीकानेर पहुंचने वाले गिद्धों में काले रंग का सिनेरियस वल्चर सेंटर एशिया से बीकानेर आए हैं। ये दुनिया में दूसरे सबसे बड़े आकार के गिद्ध हैं। इनके अलावा लंबी गर्दन वाले हिमालियन ग्रिफन, यूरेशियन ग्रिफन भी जोड़बीड़ में है। इसके अलावा सबसे छोटा पीली चोंच वाला इजिप्शियन वल्चर भी यहां नजर आता है।

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वर्तमान की बात करें तो जानकारी के मुताबिक बीकानेर में अभी चार हजार से ज्यादा गिद्ध हैं और इतनी बड़ी संख्या में विदेशी वल्चर देशभर में सिर्फ बीकानेर में आते हैं। इसका कारण है कि इन वल्चर्स के दिमाग में यहां का मैप सेट हो गया है।। एक के बाद एक वल्चर यहां आता रहता है। अपने जीवन में कई बार वल्चर यहां आते हैं तो रास्ता समझ जाते हैं। कई दिनों की यात्रा करके ये सीधे बीकानेर आते हैं।
 

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वन विभाग की तरफ से सुरक्षा के लिहाज से यहां एक चौकी बनाया गया है। इस एरिया की दीवार बनाई गई है ताकि आवारा पशु या जानवर अंदर नहीं आ सके। इसके बाद भी आवारा कुत्ते यहां कई बार गिद्धों के लिए जानलेवा बन जाते हैं। यहां गिद्ध वॉच टॉवर भी बनाया गया है ताकि विदेशी पर्यटक इन्हें दूर से ही देख सकें। 

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जोड़बड़ अब सैलानियों का भी स्थान बनता जा रहा है। जर्मनी, इंग्लैंड, इटली और फ्रांस के अलावा अन्य देशों के टूरिस्ट यहां आते हैं। मृत पशुओं के इस केंद्र पर ये पर्यटक दुनियाभर से आए गिद्धों को घंटों तक निहारते हैं और इन्हें कैमरे में कैद करते हैं। 

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प्रवासी पक्षियों पर अध्ययन करने का सबसे आधुनिक तरीका उपग्रह टेलीमेट्री है। इसमें आधुनिक ट्रांसमीटर लगाया जाता है, जो नेविगेशन सिस्टम और सौर पैनल से लैस होता है। उसमें सेंसर भी लगे होते हैं। यह सेंसर स्थान, हवा के तापमान, ऊंचाई और उड़ान की स्पीड का डेटा भेज सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि पक्षी 10 वर्षों से भी अधिक समय अपने संकेतों को संचारित कर सकते हैं।
 

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