567 साल पुराने इस मंदिर में सुहागिनों की होती है हर मुराद पूरी
राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित है देश के सबसे पुराने मंदिरों में से एक चौथ माता मंदिर। इस मंदिर का करवाचौथ पर विशेष महत्व है। कहते हैं कि 700 सीढ़ियां चढ़कर जो भी महिलाएं देवी के दर्शन करती हैं, उनक मुराद पूरी होती है।
चौथ माता मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इस पहाड़ी की ऊंचाई करीब हजार फीट है। 1463 में मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए तालाब का निर्माण कराया गया था। इस मंदिर से नीचे का विहंगम दृश्य नजर आता है।
यह भक्ति का असर ही कहा जाएगा कि एक हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर पहुंचने 700 सीढ़ियां चढ़ने के बाद भी लोगों को थकान महसूस नहीं होती। करवाचौथ के अलावा नवरात्र पर तो यहां लाखों लोग पहुंचते हैं।
यह मंदिर किसी भव्य स्मारक से नजर आता है। मंदिर का निर्माण सफेद संगमरमर के पत्थरों से किया गया है। मंदिर की वास्तुककला राजपूताना शैली पर आधारित है। मंदिर में देवी के अलावा गणेशजी और भैरव की मूर्तियां विराजी हैं। मान्यता है कि यहां के लोग अपने यहां होने वाले हर शुभ कार्यों के लिए माता को निमंत्रण देने आते हैं। बूंदी राजघराने के समय से ही देवी को कुलदेवी के रूप में पूजने की प्रथा है।
वर्तमान चौथ का बरवाड़ा को प्राचीन काल में बाड़बाड़ा के नाम से जाना जाता था। यह रणथम्भौर साम्राज्य का ही एक हिस्सा था। यहां बीजलसिंह एवं भीमसिंह चौहान जैसे राजाओं ने शासन किया।
बरवाड़ा के पास चौरू और पचाला गांव हैं। इनके आसपास कभी घना जंगल हुआ करता था। यहां आदिवासी आकर ठहरते थे। किवदंती है कि चौरू के जंगलों में एक प्राचीन देवी की मूर्ति थी। एक बार यहां भयानक आग लगी। लेकिन मां के चमत्कार से कुछ ज्यादा बुरा नहीं हुआ। तभी से आदिवासी देवी को पूजने लगे। वे चौर माता के नाम से इन्हें पूजने लगे। कलांतर में देवी को चौरू और अब चौथ माता कहा जाने लगा।