उज्जैन. भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है यानी वे बहुत सीधे और सरल देवता हैं, जो सिर्फ एक लोटा जल चढ़ाने से भी प्रसन्न हो जाते हैं। वैसे तो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों और स्तुतियों की रचना की गई है, लेकिन इन सभी में महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya Mantra) का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र में मरते हुए व्यक्ति को भी जीवनदान देने की शक्ति है। प्रमुख त्योहारों जैसे सावन और महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2022) पर इस मंत्र के जाप से कई तरह के फायदे मिलते हैं, ऐसा धर्म ग्रंथों में लिखा है। इस मंत्र की रचना किसने और कब कि, इसकी कथा भी बहुत ही रोचक है। महाशिवरात्रि (1 मार्च, मंगलवार) के अवसर पर हम आपको इस मंत्र से जुड़ी कथा, महत्व और कुछ अन्य शिव मंत्रों के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…
मार्कण्डेय ऋषि ने की थी इस मंत्र की रचना
पौराणिक काल में मुकण्ड नाम के एक ऋषि थे, जो भगवान शिव के परम भक्त थे। शिवजी के वरदान से उन्हें पुत्र हुआ तो उन्होंने उसका नाम मार्कण्डेय रखा। लेकिन जब ऋषि को ये पता चला कि उनका पुत्र अल्पायु है तो उन्हें बड़ा दुख हुआ। बड़ा होने पर मार्कण्डेय ऋषि को ये बात पता चली तो उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करनी शुरू की और महामृत्युंजय मंत्र की रचना की। जब उनकी मृत्यु का दिन आया तो वे शिव मंदिर में बैठकर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगे। जब यमराज उसके प्राण हरने आए तो मार्कण्डेय ऋषि शिवलिंग से लिपट गए। यमराज ने उनके प्राण हरने के लिए जैसे ही अपना पाश फेंका, वहां स्वयं शिवजी प्रकट हो गए और मार्कण्डेय ऋषि की भक्ति देखकर उन्हें अमरता का वरदान दिया।
महामृत्युंजय मंत्र
ऊं हौं जूं सः ऊं भूर्भुवः स्वः ऊं त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊं स्वः भुवः भूः ऊं सः जूं हौं ऊं
अर्थ- इस मंत्र का मतलब है कि हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं।
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