मायावती की जिंदगी का सबसे दर्दभरा दिन, जब वो पूरी तरह टूट गईं थीं, वो घटना हर किसी की जुबां पर है...

लखनऊ (Uttar Pradesh) । 15 जनवरी को यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) का 65वां जन्मदिन (Birthday) है। इस मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी वो बातें बता रहे है, जो आज भी हर किसी की जुंबा पर है। जी हां, बात 2 जून 1995 की है, जो मायावती के जीवन का सबसे दर्दभरा दिन कहा जा सकता है, क्योंकि वो इस दिन को भले ही भूलकर पिछले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में सपा से हाथ मिला ली थीं। लेकिन, उस दिन यूपी की राजनीति में जो हुआ वह शायद ही कहीं हुआ होगा। जिसके बारे में आज हम आपको बता रहे हैं।

Ankur Shukla | Published : Jan 14, 2021 1:06 PM IST / Updated: Jan 14 2021, 06:45 PM IST
110
मायावती की जिंदगी का सबसे दर्दभरा दिन, जब वो पूरी तरह टूट गईं थीं, वो घटना हर किसी की जुबां पर है...

मायावती मूलरूप से गौतमबुद्ध नगर जिले के बादलपुर गांव की निवासी हैं। उनके पिता प्रभु दयाल सरकारी नौकरी में थे, जिनका पिछली साल ही निधन हो गया। बताते हैं कि वो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए दिल्ली में शिफ्ट हो गए थे। दिल्‍ली में ही मायावती और उनके भाई-बहनों ने पढ़ाई-लिखाई की थी। बाद में वो शिक्षक बन गई। हालांकि उनके प्रभु दयाल उन्हें आईएएस अफसर बनाना चाहते थे। लेकिन, बसपा संस्थापक कांशीराम के संपर्क में आने के बाद मायावती ने राजनीति की राह पकड़ ली।

210

मायावती साल 1989 में पहली बार सांसद बनी थीं, फिर 1995 में वह अनुसूचित जाति की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन इसके पहले जो, हुआ उसे वो कभी भूल नहीं पाती हैं, क्योंकि इसी साल में चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन जीती था। जिसमें एसपी को 109 और बीएसपी को 67 सीट मिली थीं। इसके बाद मुलायम सिंह यादव बीएसपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने। मगर, आपसी मनमुटाव के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इस वजह से सरकार अल्पमत में आ गई थी।

310

सपा सरकार बचाने के लिए जोड़-घटाव किए करने लगी। मायावती के जीवन पर आधारित अजय बोस की किताब 'बहनजी' के मुताबिक, अंत में जब बात नहीं बनी तो नाराज कथित सपा के कार्यकर्ता और विधायक लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए, जहां मायावती कमरा नंबर-1 में ठहरी हुई थीं। 
 

410

बताते हैं कि उस दिन कथित सपा के विधायकों और समर्थकों की उन्मादी भीड़ सबक सिखाने के नाम पर दलित नेता की आबरू पर हमला करने पर आमादा थी। किसी तरह मायावती ने अपने को कमरे में बंद किया था और बाहर से सपा के विधायक और समर्थक दरवाजा तोड़ने में लगे हुए थे। हालांकि इसी समय दबंग छवि के बीजेपी विधायक ब्रम्हदत्त द्विवेदी भी पहुंच गए थे और सपा विधायकों और समर्थकों को पीछे ढकेल दिए थे। जिन्हें खुद मायावती भाई कहने लगीं थीं 

510

बता दें कि ब्रम्हदत्त द्विवेदी संघ के सेवक थे और उन्हें लाठी चलानी भी बखूबी आती थी इसलिए वो एक लाठी लेकर हथियारों से लैस गुंडों से भिड़ गए थे। वहीं, मायावती ने भी उन्हें हमेशा अपना बड़ा भाई माना और कभी उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया।

610

मायावती बीजेपी का विरोध करती रहीं, लेकिन फर्रुखाबाद में ब्रम्हदत्त द्विवेदी के लिए प्रचार करती थीं। कहा जाता है कि जब गुंडों ने बाद में ब्रह्मदत्त द्विवेदी की गोली मारकर हत्या कर दी तब मायावती उनके घर गईं और फूट-फूट कर रोईं।

710

इस घटना को गेस्ट हाउस कांड के नाम से जाना जाता है, जिसके बाद मायावती और मुलायम सिंह के रिश्ते खराब हो गए। हालांकि गेस्ट हाउस कांड को भुलाकर 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सपा से गठबंधन तो किया। 

810

बता दें कि साल 2014 में जहां मायावती की पार्टी शून्य पर थीं, वहीं, 2019 में 10 सीटें जीतीं, लेकिन उसके बाद भी हार का ठीकरा अखिलेश यादव पर फोड़कर गठबंधन तोड़ दिया।
 

910

अब बात मायावती के राजनीतिक करियर की करें तो साल 1995 में पहली बार सीएम बनने वाली मायावती 21 मार्च 1997 को दूसरी बार यूपी की मुख्यमंत्री की कमान संभाली थी। इसके बाद साल 2001 में बसपा प्रमुख एवं पार्टी संस्थापक कांशीराम ने मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। 
 

1010

3 मार्च 2002 को मायावती तीसरी बार यूपी की मुख्यमंत्री बनीं और 26 अगस्त 2002 तक पद पर रहीं। फिर 13 मई 2007 को मायावती ने चौथी बार सूबे की कमान संभाली और 14 मार्च 2012 तक मुख्यमंत्री रहीं।

सभी फोटो-गेटी

Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos