लखनऊ। 7 महीने पहले ही उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने तैयारियां शुरु कर दी हैं। क्या योगी आदित्यनाथ एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में जनादेश लाएंगे? क्या अखिलेश यादव भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में 'साइकिल' की सवारी करेंगे? क्या मायावती का सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलाएगा जो उन्होंने 2012 में खाली की थी?
क्या चुनावी नतीजों पर महामारी के आर्थिक असर का असर होगा? क्या जाति समीकरण या विकास एक कारक होगा जो तय करता है कि लखनऊ में 5, कालिदास मार्ग पर किसका नेमप्लेट लगेगा? वे कौन से मुद्दे होंगे जो 'चुनावी युद्धभूमि उत्तर प्रदेश' पर हावी होंगे? इन और अन्य सवालों के जवाब खोजने के लिए Asianet News ने 27 जुलाई से 2 अगस्त 2021 के बीच उत्तर प्रदेश में एक सर्वे किया। जन की बात द्वारा राज्य के छह क्षेत्रों - कानपुर बुंदेलखंड, अवध, पश्चिम, बृज, काशी और गोरखपुर में किए गए सर्वेक्षण में चुनाव से सात महीने पहले मतदाताओं की नब्ज टटोली गई है। हालांकि, राजनीति में जमीनी हकीकत, गठबंधन और समीकरण चुनाव से पहले बदल जाते हैं। लेकिन सात महीने पहले यूपी का मूड कैसा है, फिलहाल की परिस्थितियां जहां सभी खड़े हैं, यह सर्वे में सामने आई है। Asianet News के सर्वे से पता चलता है कि राम मंदिर अभी तक मतदाताओं के बीच वास्तविक महत्व का मुद्दा नहीं है। हालांकि, ऐसे संकेत थे कि यह मुद्दा धीरे धीरे गति पकड़ रहा और चुनाव करीब आते प्रमुख मुद्दों में शुमार हो सकता है।