ऐसे अफसरों को दिल से सैल्यूट: IAS-IPS भाई-बहन बने डॉक्टर, दिन रात कोरोना मरीजों का कर रहे इलाज

कानपुर (Uttar Pradesh) । कोरोना की दूसरी लहर में एक आईपीएस और उनकी आईएएस बहन दोहरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। सिविल सेवा में आने से पहले डॉक्टर रह चुके भाई-बहन इस समय कोरोना के खिलाफ जंग लड़ने के लिए अपने पुराने पेशे में भी लौट आए हैं। जी हां, आईपीएस अनिल कुमार कानपुर में एडीसीपी ट्रैफिक हैं। उनकी बहन डॉ मंजू आईएएस हैं, जो राजस्थान के उदयपुर में डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट ऑफिसर हैं। दोनों भाई-बहन सिविल सेवा में आने से पहले एमबीबीएस की पढ़ाई कर डॉक्टर रह चुके हैं। जिनके बारे में हम आपको बता रहे हैं। 

Asianet News Hindi | Published : May 9, 2021 10:47 AM IST / Updated: May 09 2021, 04:21 PM IST
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ऐसे अफसरों को दिल से सैल्यूट: IAS-IPS भाई-बहन बने डॉक्टर, दिन रात कोरोना मरीजों का कर रहे इलाज

कुछ दिन कर चुके हैं प्रैक्टिस
डॉक्टर अनिल कुमार ने डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज, जोधपुर से एमबीबीएस करने के बाद कुछ दिनों तक गुरु तेगबहादुर अस्पताल, नई दिल्ली में प्रैक्टिस भी की है। वह मूलत: राजस्थान में झुंझनू जिले के अलसीसर के रहने वाले हैं। इनकी बहन डॉ. मंजू ने भी एमबीबीएस करने के बाद सिविल सेवा परीक्षा पास की। वर्तमान में राजस्थान कैडर की आईएएस अफसर हैं।

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एडीजे तक की पत्नी ने कराया इलाज
एडीसीपी ट्रैफिक डॉ. अनिल ने कानपुर पुलिस लाइन में 16 बेड का एक एल-1 श्रेणी का हॉस्पिटल शुरू कर दिया। ओपीडी में रोजाना बैठ रहे हैं। उन्होंने बताया कि एडीजे की पत्नी को कहीं इलाज नहीं मिला तो उन्होंने अपने अस्पताल में भर्ती करके ठीक कर दिया। साथ ही अब तक 18 मरीजों को अपने हॉस्पिटल में एडमिट करके ठीक किया। जबकि ओपीडी में 385 से ज्यादा संक्रमितों को स्वास्थ्य लाभ दे चुके हैं। इसमें सबसे ज्यादा पुलिसकर्मी और उनका परिवार शामिल है। 
 

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कोरोना सेल प्रभारी का बनाया गया प्रभारी
कोरोना काल में डॉ. अनिल कुमार पुलिस विभाग कानपुर को एक डॉक्टर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उनके अनुभव को देखते हुए पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने उन्हें कोरोना सेल का प्रभारी भी बनाया है।

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ऑक्सीजन ऑडिट टीम की प्रभारी है बहन
उदयपुर में डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट ऑफिसर के रूप में कार्यरत डॉ मंजू ऑक्सीजन ऑडिट टीम की प्रभारी हैं। वो जिले के एक सरकारी और चार निजी मेडिकल कॉलेज में कोविड पेशेंट की देखरेख कर रही हैं।  साथ ही 20 निजी मेडिकल कॉलेज के मरीज और ऑक्सीजन खपत की निगरानी कर रही हैं।

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