यूपी के इस मंदिर में मौत मांगने आते हैं नेपाली लोग, पुजारी से लेकर सफाई कर्मचारी तक सभी हैं नेपाली

वाराणसी(Uttar Pradesh).  भारत को विविधाताओं का देश कहा जाता है। देश में कई ऐसे धार्मिक और पौराणिक स्थान हैं जो अपनी प्राचीनता और सुन्दरता के लिए समूचे विश्व में प्रसिद्ध हैं। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में भी उन स्थानों में प्रमुख है। धार्मिक नगरी के नाम से प्रसिद्ध वाराणसी अपने अंदर कई ऐसी प्राचीनतम धरोहरें समेटे हुए है जिसको देखने लोग पूरे विश्व से आते हैं। वाराणसी में ऐसी ही एक जगह है बाबा पशुपति नाथ का मंदिर। बताया जाता है कि अगर इस पवित्र स्थान पर किसी की मौत होती है तो वह मोक्ष को प्राप्त करता है। नेपाली मंदिर के नाम से प्रसिद्ध ये मंदिर मूलतः नेपाल की धरोहर माना जाता है। यहां पुजारी से लेकर सभी स्टाफ नेपाली नागरिक ही हैं।

Asianet News Hindi | Published : Jun 15, 2020 5:19 AM IST

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यूपी के इस मंदिर में मौत मांगने आते हैं नेपाली लोग, पुजारी से लेकर सफाई कर्मचारी तक सभी हैं नेपाली

पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में स्थित पशुपति नाथ मंदिर को नेपाली मन्दिर भी कहा जाता है। यहां आज भी मोक्ष प्राप्ति के लिए नेपाली महिलाएं और पुरुष अपनी मृत्यु मांगने के लिए आते हैं। सदियों पुराने इस मंदिर को नेपाल सरकार ने 1943 में पशुपतिनाथ मंदिर का नाम दिया। ताकि बनारस में रहने वाले नेपाली नागरिकों को बाबा विश्वनाथ के साथ ही पशुपति नाथ का भी दर्शन प्राप्त हो सके। 
 

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मंदिर के बगल में ही धर्मशाला बना हुआ है जो कि पूरी तरह से नेपाल के संस्कृति की झलक है। उसी तरह लकड़ी के बालकनी और खिड़कियां ऐसी बनाई गई हैं कि काशी में ही नेपाली वास्तुकला का दर्शन हो जाएगा। यहां रहने वाली वृद्ध महिलाएं काशीवास के लिए यहां सालों से रह रही है। 
 

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सालों से रह रही वृद्ध महिलाएं व पुरुष यहां सिर्फ इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि उनका प्राण इस पवित्र धरती पर ही निकले। क्योंकि उनका मानना है कि काशी के धरती से मोक्ष की प्राप्ति होती है और यही कारण है कि वो यहां वह सिर्फ अपनी मृत्यु का इंतजार करते हैं। 
 

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पिछले 35 सालों से यहां रहने वाली कृष्णप्रिया कहती हैं कि पति के मृत्यु के बाद काशी वास की कामना हुई ,जहां विश्वनाथ के धाम में शरीर त्याग करने कामना की। यहां मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति हुई तब से आज तक अपने मृत्यु का इन्तजार कर रही हूं।

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मंदिर के महासचिव गोपाल महाराज कहते हैं कि इस मंदिर का पूरा खर्च नेपाल सरकार देखती है। मंदिर और धर्मशाला के लिए बाकायदा पुजारी से लेकर कर्मचारी नियुक्त हैं, जो सभी नेपाली नागरिक ही हैं। 

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1943 में इस मंदिर को पशुपति नाथ का नाम दिया गया और एक शिवलिंग को स्थापित किया गया। तब से आजतक यह मन्दिर यहां रहने वाले नेपाली नागरिकों के लिए नेपाल और भारत के अटूट रिश्ते को धर्म की मजबूत डोर से जकड़े हुए है । 

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मंदिर के मुख्य पुजारी रोहित महाराज का कहना है कि नेपाल के नागरिकों के लिए काशी मुख्य धर्म स्थल है। जहां आज भी नेपाली नागरिक अपने जीवन का अंतिम सांस इस धर्म नगरी में लेना चाहते हैं। 
 

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नेपाली धर्म ग्रंथों में भी काशी को मुक्ति स्थल बताया गया है। यही कारण है कि सालों से यहां ये महिलाएं अपनी मौत का इंतजार कर रही हैं। दरअसल नेपाल और भारत की संस्कृति में ज्यादा अंतर नहीं है। धर्म वही परंपराएं भी लगभग वहीं जिसके कारण नेपाल और भारत का सम्बंध हमेशा से मजबूत रहा है। 
 

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