जब घर आने वाला था निर्भया का नाबालिग 'दोषी', स्वागत में ईंट-पत्थर ले चौराहे पर बैठ गए गांववाले

बदायूं. निर्भया गैंगरेप के चारों दोषियों को कल यानि 1 फरवरी को फांसी दी जानी है। सुबह 6 बजे इन दरिंदों को फांसी दी जाएगी। सात साल पहले चलती बस में हैवानियत दिखाने वाले इन चार दोषियों में एक नाबालिग भी था। दोषियों को फांसी के फरमान के बाद उसका गांव बदायूं एक बार भी चर्चा में आ गया है। नाबालिग दोषी उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के भवानीपुर गांव से ताल्लुक रखता है। चारों दोषियों को फांसी देने पर इस गांव में भी खुशी का माहौल है लेकिन कभी यहां लोगों ने आक्रोश में आकर नाबालिग आरोपी के खिलाफ जमकर धरना दिया था। गांव वाले नहीं चाहते थे कि वो दरिंदा यहां लौटकर आए। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 10, 2020 12:40 PM IST / Updated: Jan 31 2020, 05:08 PM IST

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जब घर आने वाला था निर्भया का नाबालिग 'दोषी', स्वागत में ईंट-पत्थर ले चौराहे पर बैठ गए गांववाले
साल 2015 में नाबालिग होने के कारण पांचवे आरोपी का केस जुवेलाइन कोर्ट में चला था। जुवेनाइल कोर्ट ने दोषी साबित होने पर उसे तीन साल के लिए बाल सुधार गृह भेज दिया था। फिर उसकी रिहाई हो गई थी। तब इस आरोपी के गांव लौटने की खबरें थी। गांव में काफी गर्मा-गर्मी रही थी। भारी मात्रा में मीडिया पुलिस मौजूद रही थी। केस खुलने के बाद गांव वाले कहते थे कि वो गांव पर कंलक है।
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दोषी राजू बदायूं का रहने वाला था। यहां के लोगों का मानना है कि निर्भाया जैसे वीभत्स गैंगरेप और हत्याकांड से उनके गांव पर कलंक लगा है। वह नहीं चाहते थे कि वो आरोपी यहां आकर दोबारा से बस जाए। जिस रोज उसके गांव लौटने की चर्चा हुई सभी गांव वाले चौराहे पर बैठे नजर आए, कुछ तो उसके आते ही खदेड़ देने की फिराक में थे।
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साल 2015 में नाबालिग दोषी की रिहाई के बाद गांव पहुंचने की संभावना पर बदायूं में देश भर का मीडिया जुटा रहा। पर देर शाम तक दोषी गांव नहीं पहुंचा था। उसके यहां आने की संभावनाओं के बीच गांव में पुलिस दिन भर मुस्तैद रही। अति पिछड़े इस गांव में नजारा पीपली लाइव जैसा नजर आया। टीवी चैनलों की ओवी वैन धूल उड़ाती गांव की ओर आती रहीं। पुलिस और अधिकारी मौजूद रहे लेकिन आरोपी अपने गांव नहीं लौटा।
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उधर, निर्भया के साथ सबसे ज्यादा दरिंदगी करने वाले इस दोषी को लेकर उसके परिवार और गांव वालों की राय अलग-अलग थी। परिवार और उसके समाज के लोग चाहते थे कि वह आकर गांव में ही रहे जबकि बाकि गांववाले बगावत पर थे। दोषी छह भाई-बहनों के परिवार में सबसे बड़ा है। आठ साल की उम्र में ही वह दिल्ली चला गया था। दो छोटी बहनें और तीन भाइयों के साथ बीमार मां को दोषी का इंतजार है।
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परिवार वालों का कहना है कि अगर वह घर आता है, तो संग रहकर खेती-मजदूरी करेगा। हालांकि, उसका पिता मंदबुद्धि है। सो परिवार की उम्मीद उससे अधिक जुड़ी इुई है लेकिन गांव के अन्य लोग उसके यहां आने के खिलाफ हैं। वह उसे गांव से खदेड़कर भगा देना चाहते थे। अपनी बहन-बेटियों की सुरक्षा की चिंता उनके माथे पर लकीरें बनकर उभर रही थीं।
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वहीं उस समय गांव की प्रधान सविता देवी ने दोषी को गांव में रहने पर कोई आपत्ति नहीं जताई। उन्होंने अगर उसका चाल-चलन ठीक रहता है तो गांव में रह सकता है, अगर नहीं तो गांव वाले तय करेंगे आगे क्या करना है। हालांकि इस मामलो को सात साल हो गए हैं नाबालिग दोषी एक बार भी अपने गांव लौटकर नहीं गया है। उसके अंदर अपनी ही जन्मभूमि पर कदम रखने की हिम्मत नहीं है या वो गांववालों का सामना नहीं कर सकता है।
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