PM मोदी की वजह से लोग कर सकते हैं इस पेड़ का दर्शन, अकबर चाहकर भी नहीं मिटा सका इसे

प्रयागराज (Uttar Pradesh). संगम नगरी में चल रहे माघ मेले में रोजाना हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ आ रही है। ऐसे में आज हम आपको गंगा यमुना सरस्वती के बीच स्थित अकबर के किले के अंदर मौजूद अक्षय वट के बारे में बताने जा रहे हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयाग में स्नान के बाद जब तक अक्षय वट का पूजन एवं दर्शन नहीं हो, तब तक लाभ नहीं मिलता है। बता दें, पीएम मोदी ने साल 2018 में अक्षय वट को आम नागरिकों के दर्शन के लिए खोल दिया। किले पर सेना का कब्जा होने की वजह से आग नागरिक को इस वृक्ष के दर्शन की परमिशन नहीं थी।

Asianet News Hindi | Published : Jan 22, 2020 11:26 AM IST

18
PM मोदी की वजह से लोग कर सकते हैं इस पेड़ का दर्शन, अकबर चाहकर भी नहीं मिटा सका इसे
पुजारी अत्रि मुनि गोस्वामी कहते हैं, पौराणिक कथाओं के अनुसार जब एक ऋषि ने भगवान नारायण से ईश्वरीय शक्ति दिखाने के लिए कहा, तब उन्होंने कुछ देर के लिए पूरे संसार को जलमग्न कर दिया था। जब सारी चीजें पानी में समा गई थी, तब अक्षय वट (बरगद का पेड़) का ऊपरी भाग दिखाई दे रहा था। मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
28
पुजारी अरविंद कहते ह, अक्षय वट वृक्ष के पास कामकूप नाम का तालाब था। मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग यहां आते थे और वृक्ष पर चढ़कर तालाब में छलांग लगा देते थे।
38
जानकारों के मुताबिक, 644 ईसा पूर्व में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया। कामकूप तालाब में वो इंसानी नरकंकाल देखकर दुखी हो गया। इसका जिक्र उसने अपनी किताब में भी किया है। उसके जाने के बाद मुगल सम्राट अकबर ने यहां किला बनवाया। यही नहीं, अक्षय वट को किले के अंदर करवा लिया और कामकूप तालाब को बंद करवा दिया।
48
कहा जाता है कि अक्षय वट वृक्ष को अकबर और उसके मातहतों ने कई बार जलाकर और काटकर नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन कभी सफल नहीं हो सके। हालांकि, यह भी कहा जाता है कि अकबर ने ऐसा सिर्फ इसलिए किया ताकि वो लोगों की जान बचा सके। क्योंकि लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए वृक्ष से तालाब में छलांग लगा देते थे। जिसमें कई बार लोगों की मौत भी हो जाती थी।
58
पुजारी कहते हैं, भगवान राम और सीता ने वनवास के दौरान इस वट वृक्ष के नीचे तीन रात रुके थे।
68
अकबर के किले के अंदर स्थित पातालपुरी मंदिर में अक्षय वट के अलावा 43 देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है।
78
किले में ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित वो शूल टंकेश्वर शिवलिंग भी है, जिस पर मुगल सम्राट अकबर की पत्नी जोधा बाई जलाभिषेक करती थीं। कहा जाता है कि जलाभिषेक का जल सीधे अक्षय वट वृक्ष की जड़ में जाता है और वहां से जमीन के अंदर से होते हुए सीधे संगम में मिलता है।
88
ऐसी मान्यता है कि अक्षय वट वृक्ष के नीचे से ही अदृश्य सरस्वती नदी भी बहती है। संगम स्नान के बाद अक्षय वट का दर्शन और पूजन यहां वंशवृद्धि से लेकर धन-धान्य की संपूर्णता तक की मनौती पूर्ण होती है।
Share this Photo Gallery
click me!
Recommended Photos