बापू के लिए खास था ये शहर, यहीं दी थी झंडा ऊंचा रहे हमारा गीत की मान्यता

Published : Jan 30, 2020, 12:37 PM IST

कानपुर (Uttar Pradesh) आज राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी की पुण्यतिथि है। वे 30 जनवरी 1948 को भले ही इस दुनिया से विदा हो गए, लेकिन आज भी इस शहर में उनकी स्मृतियां जीवंत हैं। शहर के तमाम ऐसे स्थान हैं, जहां उनके चरण पड़े थे। यही नहीं, कानपुर उनके लिए इतना अहम था कि उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते यहां कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था और 'झंडा ऊंचा रहे हमारा' गीत को झंडा गीत की मान्यता मिली थी। उन्होंने कांग्रेस के राजनीतिक केंद्र तिलक हॉल की भी स्थापना की थी।  

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बापू के लिए खास था ये शहर, यहीं दी थी झंडा ऊंचा रहे हमारा गीत की मान्यता
बापू की पांचवी यात्रा 23 दिसंबर 1925 को हुई। इस मौके पर कानपुर में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। बापू इस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। श्याम लाल गुप्त पार्षद जी ने अपना गीत 'झंडा ऊंचा रहे हमारा' पेश किया। बापू की मौजूदगी में इसे झंडा गीत की मान्यता दी गई।
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कानपुर ही वह शहर है जहां कांग्रेस ने अंग्रेजी की जगह हिंदी को मान्यता दी। राष्ट्रीय अधिवेशन की पूरी कार्यवाही हिंदी में ही दर्ज की गई। इससे पहले कांग्रेस के अधिवेशन की कार्यवाही अंग्रेजी में दर्ज होती थी।
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अपनी छठी यात्रा में 22 सितंबर 1929 को बापू कानपुर आए थे। विदेशों से आ रहा कपड़ा स्वदेशी कपड़े की बिक्री में बाधक बन रहा था। कानपुर आए बापू ने कपड़ा कारोबारियों से कहा कि विदेशी कपड़े स्वदेशी वस्त्र बेचने वालों को बर्बाद कर रहे हैं, इसलिए विदेशी छोड़ स्वदेशी को बेचें और विदेशी कपड़े बेचने का पश्चाताप करें।
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सबसे पहले 31 दिसंबर 1916 को बापू औद्योगिक नगरी और क्रांति धरा कानपुर का मर्म समझने के लिए आए थे। उनकी दूसरी यात्रा 21 जनवरी 1920 को हुई थी। इसी वर्ष तीसरी यात्रा 14 अक्टूबर को हुई। उस दिन परेड मैदान में उनकी कानपुर में पहली जनसभा हुई। उस दौर में भी बापू को सुनने के लिए 40 हजार की भीड़ मौजूद थी। इस सभा का सबसे बड़ा असर शहर में खादी आंदोलन पर पड़ा और एक के बाद एक 14 दुकानें खुलीं।

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