75 साल की मां के लिए यादगार होगा गणतंत्र दिवस: विदेश की जेल से बेटे को छुड़ा लाई, भीख तक मांगनी पड़ी

Published : Jan 24, 2021, 03:49 PM IST

वारणसी (उत्तर प्रदेश). मां-बेटे का रिश्ता इस दुनिया में सबसे अनमोल होता है। कहते हैं कि एक मां अपने बेटे के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। अगर वह दुखी हो तो उसके लिए वो जमीं-आसमां एक कर देती है। ऐसी एक कहानी यूपी की वारणसी से सामने आयी है, जहां एक  75 साल की बुजुर्ग महिला अमरावती अपने बेटे को नेपाल जेल से छुड़ाकर ले आई है। आखिरकार वह अपने चार सालों के लंबे संघर्ष के बाद सफल हो ही गई। जिसके हौंसले और मेहनत को आज पूरा इलाक सलाम कर रहा है। वास्तव में इस बार का गणतंत्र दिवस इस महिला के लिए सबसे खास होगा। आइए जानते हैं इस मां की ममता की कहानी...

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75 साल की मां के लिए यादगार होगा गणतंत्र दिवस: विदेश की जेल से बेटे को छुड़ा लाई, भीख तक मांगनी पड़ी


दरअसल, महिला अमरावती का बेटा महेंद्र जो कि एक ड्राइवरी का काम करता है। चार साल पहले वह रोज की तरह  ट्रक में सब्जी लेकर भारत से काठमांडू जा रहा था। इसी दौरान अचानक उसके ट्रक से एक नेपाली शख्स जो कि बाइक चला रहा था उससे टक्कर हो गई। कुछ देर बाद ही उसकी मौत भी हो गई। इसके बाद नेपाल की पुलिस ने महेंद्र को युवक की मौत का जिम्मेदार मानते हुए वहां के जेल में बंद कर दिया।

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जब वराणसी में रहने वाली महेंद्र की 75 साल की मां अमरावती को इस बारे में पता चला तो उसका रो-रोकर बुरा हाल हो गया। बता दें कि नेपाल में हर्जाना भरकर जेल से छूटने का कानून है। लेकिन मां के पास 7 लाख रुपए भी नहीं थे कि वह अपने बेटे को छुड़वा सके। फिर क्या था, महिला अपने बेटे को छुड़ाने के की मांग को लेकर रोज अक्सर एक तख्ती लेकर वाराणसी की सड़कों पर निकल जाती। जहां आने-जाने वाले जब उसको देखते तो उसके पास रुकते और उसीक दर्दभरी कहानी सुनते।

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अमरावती ने इन चार सालों में अपने बेटे को जेल से लाने के लिए लगातार अपना संघर्ष जारी रखा। पता नहीं उसके सामने से पीएम से लेकर सीएम और  कितने अफसरों के काफिले निकल गए, लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हुई। फिर एक दिन बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के कुछ छात्रों की नजर इस महिला पर पड़ी। उन्होंने जब उसकी कहानी सुनी तो उन्होंने सामाजिक संगठन की मदद से उसके बेटे को लाने में पूरी मेहनत की।

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बीएचयू के पूर्व छात्र एक यतिंद्र पांडे ने अमरावती की मदद करने करने का फैसला किया। यतिंद्र ने नेपाल एंबेसी तक से संपर्क किया, लेकिन वहां भी कोई सुनवाई नहीं हुई। इतना ही नहीं नेपाल के नवलपरासी जेल से रिहाई के लिए जिला प्रशासन से भी मदद मांगी, वहां भी कोई बात नहीं बनी। 

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जब कहीं कोई मदद नहीं मिली तो बीएचयू के कुछ पूर्व छात्रों और सामाजिक संगठन ने महेंद्र को रिहा कराने के लिए पैसा जोड़ना शुरू कर दिया। किसी तरह से कई लोगों की सहायता से 7 लाख में से आधा पैसा एकत्रित कर सके। इसके बाद छात्रों ने नेपाल के चौधरी फाउंडेशन से संपर्क किया, जिसने हर्जाने के आधे पैसे देकर अमरावती के बेटे महेंद्र को जेल से रिहा किया गया।
 

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बता दें कि जब चार साल बाद शुक्रवार को बेटा नेपाल की जेल से छूटकर आया तो इस बूढ़ी मां की आंखों में प्यार के आंसू आए। वह अपने जिगर के टुकड़े को गले लगाकर फूट-फूटकर काफी देर तक रोती रही। इसके बाद उसने अपने बेटे को दुलारा और कहा तू कैसा है।
 

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