नई दिल्ली. भारत को गांवों का देश कहा जाता है। यहां अधिकतर जिंदगी गांवों में बसती है लेकिन गांव पिछड़ेपन और लकीर के फकीर के तौर पर भी जाने जाते हैं। गांव में अशिक्षा, गरीबी और गंदगी के कारण बदनाम हैं। प्रगतिशील शब्द भारतीय गांवों के लिए बिल्कुल नहीं बना है जहां लैंगिक भेदभाव, कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह और बड़े पैमाने पर अशिक्षा पाई जाती है। इसके अलावा भी बहुत भी बुरी चीजों के लिए भारतीय ग्रामीण क्षेत्र बदनाम हैं। पर ऐसा भी है कि शहरों में भी ऐसी समस्याएं बराबर पाई जाती हैं। पर क्या हो अगर हम आपको हाईटेक गांव के बारे में बताएं? जी हां यहां अपने देश भारत में, कुछ ऐसा गांव भी हैं जिन्होंने रूढ़िवादी विचारों को आईना दिखाया है। तो हम आपको इन्हीं पांच गांवों के बारे में बता रहे हैं जिसमें कोई बेटी के जन्म पर जश्न मनाया है तो कोई पूरी तरह हाईटेक और गरीबी से दूर है....
Asianet News Hindi | Published : Nov 6, 2019 3:08 PM IST / Updated: Nov 07 2019, 01:33 PM IST
कोयम्बटूर का ओदंतराय गांव- ओडांथुरई, कोयम्बटूर जिले का एक आत्मनिर्भर गांव है यहां किसी भी काम के लिए शहर नहीं जाना पड़ता। सारी फैसिलीटीज यहां पर हैं और ये गांव राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान देता है। भारत में पहली बार किसी गांव की पंचायत द्वारा पवन ऊर्जा परियोजना शुरू की गई है। 350 किलोवाट (किलोवाट) का संयंत्र प्रति वर्ष लगभग छह लाख यूनिट बिजली का उत्पादन करता है, जिसमें से 2 लाख तमिलनाडु बिजली बोर्ड (TNEB) को बेचा जाता है, और बाकी का उपयोग मुख्य रूप से स्ट्रीटलाइट्स और गांव में पीने के पानी के पंपों के संचालन के लिए किया जाता है। यह गांव पूरी तरह तकनीकी तौर पर समृद्ध गांव है।
हिमाचल प्रदेश का थोलंग गाँव- अक्सर सुनने को मिलता है कि गांव के लोग अनपढ़ और गंवार होते हैं लेकिन हिमाचल प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य लाहौल में स्थित एक गाँव थोलंग है जो इस बात को गलत साबित करता है। इस गांव में न केवल 100 प्रतिशत साक्षरता दर है, बल्कि सभी गांवों में सबसे बड़ी संख्या में IAS, IPS, IFS,हैं। यहां के अधिकतर लोग डॉक्टर और यहां तक कि इंजीनियर हैं। राज्य में गांव की प्रति व्यक्ति आय भी सबसे अधिक है।
गुजरात का पुंसारी गांव- हिमांशु पटेल एक ऐसे गांव में पले-बढ़े थे, जिनके पास न बिजली थी, न पानी की व्यवस्था थी और बहुत ही संदिग्ध कानून व्यवस्था थी। हालांकि, शाहर में पढ़ाई करने के बाद हिमांशु ने अपने गांव का नक्शा ही बदल दिया। उन्होंने 2006 में पुंसारी के ग्राम पंचायत चुनाव में चुनाव लड़ा और 22 साल की उम्र में गाँव के सबसे कम उम्र के सरपंच बने। हिमांशु ने गांव में दो साल के अंदर 2008 तक, गाँव में बिजली, स्ट्रीट लाइट, वॉटर सप्लाई, पक्की सड़कें और गाँव के हर घर में एक शौचालय बनवा डाले। उन्होंने कचरे से बिजली वाली मशीने भी लगवा दीं जिससे पूरा गांव रोशन रहता है।
पिपलांत्री, राजस्थान - भारत के कई हिस्सों में कन्या भ्रूण हत्या और भ्रूण हत्या आम है। हालांकि इस जघन्य अपराध के लिए कड़े कानून और कठोर दंड हैं, लेकिन फिर भी कुछ लोग ऐसा करते हैं लेकिन राजस्थान के पिपलांत्री गांव में कन्याओं के जन्म पर जश्न मनाया जाता है। यहां के सरपंच बेटी के जन्म का जश्न मनाते हैं। श्याम सुंदर पालीवाल ने गां वालों के लिए गांव में 111 पेड़ लगाकर और 18 साल तक उनका पालन-पोषण करके लड़की के जन्म का जश्न मनाने का नियम बनाया है।
हिमाचल प्रदेश का संगम गांव- हिमाचल प्रदेश के इंडो हिमालयन बेल्ट में भारत-तिब्बत सीमा के करीब स्थित संगम गांव में जानवरों की सुरक्षा के लिए जाना जाता है। इस गांव में बेहद कीमती चामुर्ती घोड़ों के लिए एक अनूठी बीमा योजना है। इन घोड़ों को पारंपरिक रूप प्रशिक्षित किया जाता है। यहां के पशुपालक घोड़ों को बिना बांधे और गले में रस्सी डाले आजाद घूमने देते हैं। हालांकि इस क्षेत्र में तेंदुओं का भी डर है।