भारत में शर्माजी-सिंहजी सहित लाखों सरनेम तो चीन में पड़ा नामों का अकाल, 30 प्रतिशत के हैं सिर्फ 5 नाम

हटके डेस्क: भारत में कई तरह के धर्म और जातियों के लोग रहते हैं। यहां हर धर्म और उनकी कम्युनिटी के हिसाब से लोगों के सरनेम रखे जाते हैं। इसमें शर्मा से लेकर सिंह, ठाकुर, और ना जाने कितने सरनेम मौजूद हैं। लेकिन भारत के पड़ोसी देश चीन में सरनेम का अकाल पड़ गया है। वहां रहने वाली जनसँख्या के पास सरनेम ही नहीं है। जो उनका पारंपरिक सरनेम था, वो चीनी दस्तावेजों में मान्य नहीं है। इस वजह से मज़बूरी में लोगों को अपना सरनेम बदलना पड़ रहा है। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि चीन में पहले 23 हजार सरनेम थे, जिसमें से अब मात्र 6 हजार ही रह गए हैं। ये खुलासा, CNN द्वारा जारी एक रिपोर्ट में सामने आई है। इस मज़बूरी के कारण पड़ा अकाल... 

Asianet News Hindi | Published : Jan 18, 2021 2:23 AM IST

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भारत में शर्माजी-सिंहजी सहित लाखों सरनेम तो चीन में पड़ा नामों का अकाल, 30 प्रतिशत के हैं सिर्फ 5 नाम


CNN द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर आप चीन जाएंगे तो वहाँ अधिकांश लोगों का नाम आपको वांग, ली, झांग, लिउ या फिर चेन मिलेगा। चीन की 120 करोड़ जनता के बीच मात्र 100 सरनेम बचे हैं। 
 

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120 करोड़ में से 30 प्रतिशत लोग, यानी करीब 43.3 प्रतिशत लोगों के बीच वांग, ली, झांग, लिउ या फिर चेन सरनेम ही मशहूर है। 2010 में हुई जनगणना के मुताबिक, यहां सिर्फ 100 सरनेम है, जिसका उपयोग लोग करते हैं। इनकी संख्या 86 प्रतिशत है। 

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बीजिंग के नॉर्मल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर चेन जियावेई के मुताबिक, लोगों के बीच पड़े इस नाम के अकाल के पीछे तीन मुख्य कारण है। चीन में अब पहले की तरह सांस्कृतिक विविधता नहीं रही। साथ ही भाषा की दिक्कत ने भी इसमें अहम योगदान निभाया। उसके अलावा जिस कारण से ये अकाल पड़ा है, वो है चीन की डिजिटल समस्या। 

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इन तीनों परेशानियों में डिजिटल समस्या को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जा रहा है। दरअसल, चीन में लोगों को अपनी पहचान डिजिटली जोड़नी जरुरी है। लेकिन चीन की भाषा में कई अक्षर मशीन पकड़ नहीं पाती। इस वजह से लोगों को अपना सरनेम बदल कर वो रखना पड़ रहा है, जिसे मशीन पकड़ती है। 

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चीन की भाषा काफी मुश्किल है। ऐसे में नामों के पड़े अकाल को पाटने के लिए 2017 में करीब 32 हजार अक्षरों को चीन के डेटाबेस में जोड़ा गया था। लेकिन फिर भी हजारों ऐसे अक्षर हैं, जो मशीन रीड नहीं कर पाती। इस वजह से लोगों के नाम मशीन में आइडेंटिफाई नहीं हो पा रहे हैं। 
 

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जब लोगों का सरनेम मशीन नहीं आइडेंटिफाई कर पाता, तो लोगों को मज़बूरी में वो नाम रखने पड़ते हैं, जिसे मशीन रीड कर लेती है। ऐसे में अब सरनेम का यहां अकाल पड़ने लगा है। एक नाम पुकारो तो हजारों लोगों की मुंडी आपकी तरफ घूम जाएगी। 

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इस बात का खुलासा होने के बाद चीन के एसोसिएट प्रोफ़ेसर चेन जियावेई ने कहा कि ये दुखद है। लोगों को अपना पारम्परिक नाम बदलने का दुःख है लेकिन अगर ऐसा ना हो तो वो सरकारी दस्तावेजों में रजिस्टर नहीं हो पाएंगे।  

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