ये है दुनिया की सबसे पहली वैक्सीन, कोरोना से पहले इस बीमारी ने मचाई थी तबाही

हटके डेस्क: 16 मार्च को नेशनल वैक्सीनेशन डे मनाया जा रहा है। भारत में आखिर 16 मार्च को ही इसे क्यों मनाया जाता है, इसका भी एक एक कारण है। इन दिनों कोरोना वैक्सीन की काफी चर्चा हो रही है। नेशनल वैक्सीन डे से एक दिन पहले यानी 15 मार्च को ही भारत में कोरोना वैक्सीन लेने वालों की संख्या 3 मिलियन पार कर गई। दुनिया में अभी तक कोरोना महामारी से मरने वालों की संख्या 26 लाख पार कर चुकी है। ऐसे में नेशनल वैक्सीनेशन डे के दौरान ही 3 मिलियन लोगों को डोज मिलना भारत के लिए बड़ी बात है। आज हम आपको इस दिन के बारे में कई जानकारियां देंगे। साथ ही कोरोना से पहले किस बीमारी ने ऐसी तबाही मचाई कि दुनिया का पहला वैक्सीन बनाना पड़ा... 

Asianet News Hindi | Published : Mar 16, 2021 6:58 AM IST

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ये है दुनिया की सबसे पहली वैक्सीन, कोरोना से पहले इस बीमारी ने मचाई थी तबाही

भारत में हर साल 16 मार्च को नेशनल वैक्सीनेशन डे मनाया जाता है।  इसे सबसे पहली बार 15 मार्च 1995 में मनाया गया था। दरअसल, इस दिन सबसे पहले पोलियो ड्राप दिया गया था। इस ओरल वैक्सीन के कारण 15 मार्च को नेशनल वैक्सीन डे मनाया जाता है। 

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1995 से शुरू हुए पोलियो ड्राप अभियान के तहत भारत ने इस बीमारी से निजात पाई। साथ ही 2014 में देश को पोलियो से मुक्त घोषित कर दिया गया। बीते कुछ समय से कई बीमारियों की वैक्सीन निकाल दी गई जिसमें कोरोना वैक्सीन सबसे लेटेस्ट है। 

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आइये अब आपको बताते हैं उस बीमारी के बारे में जिसकी वजह से दुनिया का सबसे पहला वैक्सीन बनाया गया था। आज से करीब 222 साल पहले यानी 1798 में दुनिया का सबसे पहला वैक्सीन बनाया गया था।  

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इसे बनाया था महान वैज्ञानिक एडवर्ड जेनर ने। उस समय स्माल पॉक्स ने जमकर तबाही मचाई थी। इसका वैक्सीन बनाना आसान नहीं था। इसमें कई परेशानियां आई थी। 

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जेनर ने गाय में होने वाले चेचक के मवाद से स्माल पॉक्स की वैक्सीन बनाई थी। इस मवाद को जेनर ने चेचक के शिकार एक इंसान की बॉडी में डाल दिया। इसके बाद शख्स को बुखार तो हुआ लेकिन चेचक ठीक हो गया। 

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 बाद में जब उसी शख्स की बॉडी में एक बार और चेचक का वायरस  डाला गया तो उसे इन्फेक्शन नहीं हुआ। यानी उसकी बॉडी में एंटीबॉडी बन गई थी। 

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जेनर को अपनी इस शोध के कारण काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। उनका काफी मजाक उड़ाया गया था। लेकिन जेनर ने किसी की परवाह नहीं की। उसने चुपचाप शोध पूरा किया और आखिरकार इनके वैक्सीन को मान्यता मिल गई।  

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