रंगीन सपने ले बिहार से निकलते हैं मजदूर, मात्र 75 रुपए के लिए पूरे दिन जानवरों की तरह करते हैं काम

हटके डेस्क: 8 दिसंबर को सुबह नई दिल्ली के मंडी बाजार में लगी भीषण आग में कई मजदूर जिंदा जलकर काल के गाल में समा गए। इस आग में मरने वाले ज्यादातर लोग बिहार से फैक्ट्री में काम करने आए मजदूर थे। बता दें कि एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में आठ सौ करोड़ से ज्यादा मजदूर बिना कॉन्ट्रैक्ट के फैक्ट्रीज में काम करते हैं। इनमें बाल मजदूरों से लेकर बूढ़े मजदूर तक शामिल हैं। खासकर बात अगर बिहार की करें, तो यहां से लोग अपना घर छोड़कर दूसरे राज्यों में काम करने पहुंचते हैं, जहां बेहद मुश्किल हालातों में उन्हें काम करना पड़ता है। आज हम आपको उनकी जिंदगी के कुछ पल दिखाने जा रहे हैं, जिसे देख आपको उनकी मुश्किल लाइफ का अंदाजा होगा... 
 

Asianet News Hindi | Published : Dec 8, 2019 7:58 AM IST / Updated: Dec 08 2019, 07:05 PM IST
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रंगीन सपने ले बिहार से निकलते हैं मजदूर, मात्र 75 रुपए के लिए पूरे दिन जानवरों की तरह करते हैं काम
उत्तर प्रदेश के खद्दर में रिसाइक्लिंग फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों को पूरे दिन काम करने के बदले मात्र 75 रुपए दिहाड़ी मिलती है।
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नोएडा के गैस पाइपलाइन के कंस्ट्रक्शन साइट्स पर काम करने वाले मजदूरों को काफी मुश्किल जिंदगी जीनी पड़ती है।
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कई लोग अपना घर छोड़कर दूसरी जगह काम की तलाश में पहुँचते हैं लेकिन बेरोजगारी के शिकार होकर चंद सिक्कों के लिए जानवर चराने तक का काम करने को तैयार हो जाते हैं।
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बिहार से मुंबई पहुंचे कई लोग धोबी घाट में कपड़े धोकर अपने परिवार को पालते हैं।
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चमड़े की फैक्ट्रीज में भी बिहार से पहुंचे कई वर्कर्स काम करते हैं। चूंकि उनके पास कोई डिग्री नहीं होती, ऐसे में कुछ हफ्ते की ट्रेनिंग के बाद उनसे काम करवाया जाता है। जिसके बदले में उन्हें काफी कम पेमेंट दी जाती है।
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अहमदाबाद में कई महिलाएं भी पापड़, मिर्ची और अचार बनाने की फैक्ट्रीज में काम करती हैं।
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वॉटर चेस्ट्नट, जिसे सिंघाड़ा भी कहते हैं, उसे पानी से निकालने वाले मजदूर घंटों पानी में काम करने के बावजूद बेहद कम मेहनताना पाते हैं। (तस्वीरों का इस्तेमाल कहानी को सरलता से कहने के लिए प्रतीकात्मक तौर पर इस्तेमाल किया गया है )
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