1 अप्रैल-इससे पहले कि आंदोलन कोई नया रूप लेता गोटाबाया ने इमरजेंसी का ऐलान कर दिया। इससे सुरक्षा बलों को प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने की व्यापक शक्तियां मिल गईं।
द आइलैंड(The Island) के साथ एक संक्षिप्त साक्षात्कार में अटॉर्नी-एट-लॉ पंचिहेवा(Attorney-at-Law Punchihewa ) ने समस्या के समाधान के लिए राजनीतिक, चुनावी और संवैधानिक सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। पुंचिहेवा ने जोर देकर कहा कि किसी भी परिस्थिति में हिंसा को माफ नहीं किया जा सकता है। 31 मई 1981 को जाफना पुस्तकालय में आग लगाने और जुलाई 1983 के दंगों सहित हिंसा के कृत्यों का उल्लेख करते हुए पुंचिहेवा ने कहा कि संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दलों को अब निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए या परिणामों का सामना करना चाहिए।