गोरे-कालों में भेद की लड़ाई ने पकड़ा जोर, US से लेकर यूरोप तक जानें क्यों तोड़ी जा रहीं हस्तियों की मूर्तियां

वाशिंगटन. अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद रंगभेद के खिलाफ पूरी दुनिया में विरोध प्रदर्शन का दौर जारी है। जॉर्ज के साथ हुए नस्लवादी व्यवहार के बाद से अमेरिका में अश्वेतों ने विरोध प्रदर्शन किया था। जिसके बाद यहां हिंसा की शुरूआत हो गई थी और तकरीबन 40 शहरों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया था। इन सब के बीच नस्लवाद और रंगभेद के खिलाफ लोगों ने अपनी लड़ाई जारी रखी है पर तरीका बदल दिया है। अब प्रदर्शनकारी ऐतिहासिक हस्तियों की मूर्तियां तोड़ रहे हैं। अब तक पूरी दुनिया में अब तक 45 मूर्तियां तोड़ी जा चुकी हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Jun 11, 2020 11:37 AM IST

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गोरे-कालों में भेद की लड़ाई ने पकड़ा जोर, US से लेकर यूरोप तक जानें क्यों तोड़ी जा रहीं हस्तियों की मूर्तियां

लंदन में रॉबर्ट मिलिगन के मूर्ति को प्रदर्शनकारियों ने क्षति पहुंचाई है। मिलिगन 18वीं सदी के व्यापारी थे। प्रदर्शनकारी मिलिगन को भी दासप्रथा का समर्थक मानते हैं। 

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ब्रिटेन में नस्लवाद-रंगभेद के खिलाफ आवाज उठा रहे प्रदर्शनकारियों ने तो ऐसी 60 मूर्तियों की लिस्ट बनाई जिन्हें वे तोड़ना चाहते हैं या खराब करना चाहते हैं। लीड्स में क्वीन विक्टोरिया के स्टैच्यू पर पेंट स्प्रे कर उसे खराब कर दिया गया। 
 

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बेल्जियम के ब्रसेल्स में प्रदर्शनकारियों ने राजा लियोपोल्ड की मूर्ति को नुकसान पहुंचाया है। लियोपोल्ड को भी दास प्रथा को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है।
 

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ब्रिटेन में प्रदर्शन कर रहे लोगों ने रानी विक्टोरिया की मूर्ति को खराब कर दिया। मूर्ति को थोड़ा नुकसान भी पहुंचा है। रानी विक्टोरिया पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया था।

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रंगभेद के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों का आरोप है कि ये जिन ऐतिहासिक लोगों की मूर्तियां हैं, वो सभी गुलामी और दास प्रथा को बढ़ावा देते थे। साथ ही नस्लवाद और रंगभेद का समर्थन करते थे। सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका और ब्रिटेन की मूर्तियों को पहुंचा है। 

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बोस्टन में महान खोजकर्ता क्रिस्टोफर कोलंबस की मूर्ति को उखाड़ फेंका। रंगभेद के खिलाफ आवाज उठा रहे लोगों का कहना है कि कोलंबस ने अमेरिकी मूल के लोगों की सामूहिक हत्या कराई थी। 

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एडिनबर्ग में रॉबर्ट डंडास की मूर्ति को पेंट स्प्रे कर खराब कर दिया गया। रॉबर्ट डंडास के पिता हेनरी डंडास भी दास प्रथा के काम से जुड़े थे। ब्रिटेन की संसद में उन पर महाभियोग की कार्रवाई हुई थी। 

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मार्टिन लूथर किंग की हत्‍या के बाद इतनी ज्‍यादा हिंसा
पिछले दिनों अमेरिका में बिगड़े हालात के बाज खबरों में कहा गया कि यह पहली बार है जब 1968 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या के बाद से इतने सारे अधिकारियों ने नागरिक अशांति को देखते हुए एक साथ ऐसे आदेश पारित किए हों। कहा गया कि मार्टिन लूथर किंग की हत्या किए जाने के बाद इतनी भयंकर हिस्सा देखने को मिली है। 

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क्या है मामला?
कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था। इसमें एक अश्वेत शख्स जॉर्ज फ्लॉयड जमीन पर लेटा नजर आ रहा है और उसके गर्दन के ऊपर एक पुलिस अफसर घुटना रखकर दबाता है। कुछ मिनटों के बाद फ्लॉयड की मौत हो जाती है। वीडियो में जॉर्ज कहते दिख रहे हैं, प्लीज आई कान्ट ब्रीद (मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं)। यही उनके आखिरी शब्द थे। अब अमेरिका में प्रदर्शनकारी आई कॉन्ट ब्रीद का बैनर लिए विरोध कर रहे हैं।

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कौन था जार्ज फ्लॉयड?
जॉर्ज फ्लॉयड 46 साल के थे। उनका जन्म उत्तरी कैरोलीना में हुआ था। वे ह्यूस्टन में रहते थे। लेकिन काम के सिलसिले में वह मिनियापोलिस आ गया। फ्लॉयड मिनियापोलिस के एक रेस्टोरेंट में सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर काम करता था। 5 साल से जॉर्ज उस रेस्टोरेंट में काम कर रहे थे। वे मालिक के घर पर किराए से रहते थे। उनकी 6 साल की बेटी भी है। जॉर्ज की पत्नी के मुताबिक, उन्हें मिनियापोलिस काफी पसंद था। वे इसलिए यहां रह रहे थे।
 

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