छोड़ आए हम वो गलियां: Taliban शासन में जीना भी कोई जीना है, 50 लाख अफगानी मातृभूमि से भागने की तैयारी में

Published : Aug 28, 2021, 10:05 AM ISTUpdated : Aug 28, 2021, 10:12 AM IST

काबुल. Afghanistan पर Taliban ने कब्जा भले कर लिया हो, लेकिन नागरिकों के दिलों पर 'शासन' करना मुश्किल दिखाई दे रहा है। संयुक्त की राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी UNHCR (U.N. refugee agency UNHCR) ने शुक्रवार को एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। इसमें कहा गया कि इस साल के आखिर तक करीब 50 लाख अफगानी अपनी मातृभूमि छोड़कर दूसरे देशों में बस सकते हैं। UNHCR ने इन अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों से सुरक्षा चाहने वाले ऐसे लोगों के लिए अपनी सीमाएं खुली रखने की अपील की है।

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छोड़ आए हम वो गलियां: Taliban शासन में जीना भी कोई जीना है,  50 लाख अफगानी मातृभूमि से भागने की तैयारी में

शरणार्थियों( Refugees) के लिए UN के उप उच्चायुक्त(Deputy U.N. High Commissioner for Refugees) केली क्लेमेंट्स(Kelly Clements) ने कहा कि कुछ हजार अफगानी रोज ईरान में प्रवेश कर रहे हैं। जबकि व्यापारी(traders) लगातार अफगानिस्तान छोड़कर पाकिस्तान जा रहे हैं।

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क्लेमेंट्स ने जिनेवा न्यूज ब्रीफिंग(Geneva news briefing) में कहा कि संख्या के लिहाज से इस क्षेत्र में करीब 500,000 नए शरणार्थियों के लिए तैयारी कर रहे हैं। यह सबसे खराब स्थिति है। 

क्लेमेंट्स ने कहा कि UNHCR अगले 4 महीनों में आधे मिलियन अफगान शरणार्थियों के ईरान, पाकिस्तान और मध्य एशिया के देशों में पहुंचने की प्लानिंग कर रही है।

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क्लेमेंट्स ने बताया कि शरणार्थियों के लिए UN के उच्चायुक्त फिलिपो ग्रांडी ( U.N. High Commissioner for Refugees) ने यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन (European Commission President Ursula von der Leyen) और अन्य दाताओं (donors) के साथ इन लोगों के आश्रय और देखभाल के लिए आर्थिक मदद पर चर्चा की है। क्रेडिट: The Associated Press

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तालिबान भले ही अफगानियों को देश में रोकने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जिन लोगों ने उसका पुराना शासन देखा है, वे उस पर भरोसा नहीं कर रहे हैं और जल्द से जल्द अफगानिस्तान से निकलना चाहते हैं।

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गुरुवार शाम को आतंकवादी संगठन ISIS ने काबुल के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर आत्मघाती हमला किया था। इस हमले के बाद से लोग और डरे हुए हैं। क्रेडिट: Punit Paranjpe/AFP

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अफगानिस्तान के लोगों को शरण देने के लिए दुनियाभर के मानवाधिकार कार्यकर्ता और विभिन्न संगठन आवाजें उठा रहे हैं। हालांकि अभी कुछ ही देशों ने इसकी स्वीकृति दी है।

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